Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha

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Page 131
________________ १३३ तबसे स्थान-स्थानमें उनकी शंका और प्रभुके उत्तरका उल्लेख पाया जाता है। गौतमस्वामीने समय-समय पर अपनी शंकाओं का निराकरण भगवानसे कराया है। इन्हीं प्रश्नोंकी संख्या कल्पसूत्र में छत्तीस हजार बताई हैं, जो आद्यन्त भगवती सूत्र में एकचित वर्णन की गई हैं जिन्हें पढ़कर आधात्मिक जगत् अचंभेमें पड़ जाता है। गोशालाके निधन हो जाने के पश्चात् गौतमस्वामीने भगवान से पूछा, 'प्रभु ! तेजोलेश्यासे वे दो मुनि और गोशाला मृत्यु पाकर कौन कौन सी गतिको प्राप्त हुए हैं सो कहिये।' प्रभुने उत्तर दिया कि गौतम ! 'पहले मुनि सर्वानुभूति तो आठवे स्वर्गमें देवरूप जाकर जन्मे हैं और दूसरे मुनि सुनक्षत्र अच्युत नामक देवलोकमें देव हुए हैं । गोशाले का जीव भी अन्त समय सुपरिणामोंके योग्यसे अच्युत स्वर्गमें गया है । अन्तमें वे सब मानव भव प्राप्त कर अपने सम्पूर्ण कर्मोंका क्षय करके मुक्ति पावेंगे।' गौतमस्वामी प्रभुद्वारा दीक्षित होने पर प्रभुके प्रथम गणधर हुए। ये चार ज्ञानधारी मुनि चौदह पूर्वधारी विद्यानिधान जिनजिनको प्रतिबोध करके दीक्षा देते वे सब केवल ज्ञान प्राप्त कर लेते थे परन्तु भगवानके ऊपर मोहनी कर्मके वशमें स्नेह होने के कारण खुदको केवल ज्ञान प्राप्त नहीं होता था। एक समय (गौतमस्वामीने) भगवानकी देशनामें ऐसा सुना कि आत्मलब्धि द्वारा जो अष्टापद तीर्थकी यात्रा करे सो उसी भव में मोक्ष पावे । अष्टापद बत्तीस कोस लंबा ऊंचा पर्वत है। वहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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