Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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एक दिन किसी पर्वोत्सबके कारण गांवमें खीर पूड़ी वगैरः के पकवान घर-घर में बने । संगमने लोगोंसे इसका कारण पूछा
और उसका भी दिल खीर खाने को ललचाया । वह उसी समय अपनी माताके पास आया और रोते हुए मातासे खीर मांगी। अपने दीन हीन बच्चे की ऐसी दशा देख और अपनी गरोबी पर पश्चाताप कर उसकी छाती भर आई। वह रोती हुई अपने प्रिय चालकका मुख चूमकर बोली 'बेटा ! दुर्दिन की मारी हुई आज मेरे पास एक पैसा भी नहीं है। परन्तु संगम भोला था वह तो खीर-खीर करके जोर-जोर से रोने लगा। तब तो पड़ोसियों को मां बेटे की दीन हीन दशा पर तरस आया और उन्होंने उस बच्चे के लिये खीर का सामान जुटा दिया । माताने खीर बनाकर बच्चेको परोस दिया और आप किसी दूसरे काममें लग गई। इतने में ही वहां आहार-पानी के लिये एक मुनिराजका आगमन हुआ। वे एक मास के उपवास धारी मुनि थे। आज ही उनके पारणे का दिन था । बालक ने ज्योंहि मुनि को देखा तो उसके मन में भी धनी लोगों के समान मुनिको अहार कराने की इच्छा उत्पन्न हो गई। तुरन्त उसने मुनिमहाराजको बुलाया और अपनी थाली की आधी खोर लकीर पाड़कर मुनिजीको देने का निश्चय कर लिया। ज्योंही उसने अपनी थाली को आधी खीर मुनिके पात्र में डालनेको थाली टेढ़ी की त्योंही सारी खीर उनके पात्र में जा गिरी । तब बालक का मन और भी हर्षायमान हुआ। वह सोचने लगा कि लोग तो बुलाबुलाकर मुनिको भोजन कराते हैं तब भी वे नहीं लेते मगर
आज मेरे भाग्य प्रबल है कि सारी खीर मुनि महाराजने गृहण कर ली । मुनिजी तो लहर चले गये परन्तु संगम खाली थाली ही चाटता रहा । थोड़ी बाद संगम की माता आ गई। तब तो वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com