Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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को बढ़ने देना तो घोर हिंसाकी वृद्धि करना है जिसे जैन धर्ममें महान पापका हेतु माना है। कसाइयोंके आधीन होकर निरपराधी जीवोंका बिना कारण वध करना जैनियोंके लिये महान हिंसा एवं अधर्म है । परन्तु अपराधी शत्रु अथवा किसी आततायीको उचित दण्ड देकर दममें दम रहते जीवमात्रको शांति पहुंचाना और दुनिया को अभीत बनाना जैनियोंका परम धर्म है । अहिंसा वीरोंका सबल और अभेद्य शस्त्र है। इसी शस्त्र के द्वारा संसारमें अपूर्व शांति कायम रह सकती है जिसका प्रत्येक प्राणी अनुभव करता है। इसका तिरस्कार होते ही अशांति की प्रचण्ड ज्वाला भभक उठती है । इसीलिए विश्वशांतिके महान उपासक इस शताब्दिके राष्ट्रपिता महात्मा गांधीने भी इसी प्रबल शस्त्र 'अहिंसा' का सहारा लिया जो अनुकरणीय है।
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