Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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गोशाला का पुनर्मिलन
और
पश्चाताप
भगवान महावीरके कथनानुसार तप करके गोशालाने 'तेजो लेश्या' प्राप्त करही ली थी और उसे 'अष्टांगनिमित' की सिद्धि भी प्राप्त हो चुकी थी जिसका वर्णन हम पहले कर आये हैं । इन्हीं दो शक्तियों द्वारा वह अपने 'आजिविक सिद्धान्त का प्रचार करता चला जा रहा था और अपने को चौबीसवां तीर्थकर कहता था। तेजोलेश्या से तो वह अपने विरोधियों को भयभीत बनाया हुआ था और अष्टांगनिमित से वह भूत और भविष्यकी बातोंको बता देता था इसीसे वहुतसे लोग उसके अनुयायी बनते चले जाते थे क्योंकि 'चमत्कारको नमस्कार' वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। जहां कहीं वह जाता वहां ही वह अपने को अरिहंत करता तथा उसकी प्रतिष्ठा भी उसी प्रकार होती थी।
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