Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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इधर उधर घूमते-घूमते एक दिन प्रभु महावीर श्रावस्ती की ओर जा पधारे । वहां गोशाला भी आया हुआ था। उसके अष्टांग निमित्त ज्ञान की चर्चा चहुं ओर फैल रही थी। लोग भी धड़ाधड़ उसके शिष्य बन रहे थे । प्रभु की आज्ञासे गौचरी को आये हुए गौतमस्वामी ने सुना कि यहां कोई गोशाला आया हुआ है जो अपने को सर्वज्ञ 'जिन' कहता है। वे तुरन्त प्रभुके पास लौटकर गये और उनसे पूछा भगवान , क्या गोशाला सचमुच 'सर्वज्ञ जिन है। भगवान बोले, 'वह तो मंखली पुत्र अजिन है। बहुत दिन पहले वह मेरे द्वारा ही दीक्षित और शिक्षित हुआ है। परन्तु पूर्वकृत कर्मानुसार उसका स्वभाव ही वैसा है। अष्टांग निमितके योगसे उसकी प्रसिद्धि फैल रही है पर वह अरिहन्त नहीं है।' यह सुन गौतम स्वामी की शंका समाधान हो गई।
एक दिन गोशालाकी भेट आनन्द मुनिसे हो गई। उसने आनन्द मुनिको कहा 'मुनि ! देखो तुम्हारे गुरु मुझे तो मंखली पुत्र कहते हैं और आप धर्माचार्य बनते हैं। तुम्हारे गुरुको दूसरे की निन्दामें धर्म दिखता है परन्तु उन्होंने मेरी तेजोलेश्याका प्रभाव नहीं देखा है जो उन्हें बातकी बातमें भस्म कर सकती है। अगर वे मुझसे शत्रुता करेंगे तो उन्हें और उनके अनुयायियों को उसका फज चखना पड़ेगा।' यह सुन आनन्द मुनि प्रभुके पास आये
और प्रभुसे सब हाल कह सुनाया और पूछा 'भगवान् क्या उसकी तेजोलेश्या में इतनी शक्ति है कि वह सर्वज्ञोंको भी भस्म कर सकता है अथवा वह अपनी केवल बड़ाई ही मारता है ?' इसपर प्रभुने उत्तर दिया कि 'अरिहन्तों के सिवाय सचमुच उस लेश्या में इतनी
शक्ति है कि वह चाहे जिसे भस्म करदे । अतः सब मुनियों से कह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com