Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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तो अग्निमें धरनेसे ये साफ होती हैं। यहां विज्ञानवेत्ता लोग विचार करें कि उस समय भारतमें वस्तुओंके परस्पर विपरीत गुणों का समावेश कैसा किया जाता था। कम्मलोंकी कीमत सुन कर राजा अवाक हो गये और उन्हें लेनेसे इन्कार कर दिया । तब तो व्यापारी लोग उदास हो गये और शहर के बाहर पनघटपर डरा डाल दिया।
सेठ शालिभद्रकी पनिहारिया पानी भरने को पनघट पर आई और परदेशी व्यापारियों को उदास देख उनसे पूछा, 'भाई तुम लोग कौन हो और क्या व्यापार करते हो। तुम्हारे पर इतनी उदासी क्यों है ?' तब तो उन पनिहारियों से उन्होंन आद्यन्त सब कहानी सुनाई । व्यापारियों की बात सुनकर पनिहारियों ने कहा 'भाई उदास होने की कोई बात नहीं है। इस नगरमें सेठ शालिभद्र की माता भद्रा बहुत धनाढ्य और दयालु हैं उनके पास चलिये । वे तुम्हारे सब कम्मल लेलेवेंगी।'
___यह सुन व्यापारियोंके हृदयमें आशाके फूल फूले और वे उन पनिहारियों के साथ भद्रा सेठानीके यहां आये। उन्होंने अपने कम्मल
और उनके गुण सेठानोजीके सामने बतलाये । कम्मलोंके अद्वितीय गुण सुन माता भद्राने पूछा कि 'हे व्यापारियो ! ऐसे कितने कम्मल आपके पास हैं।' व्यापारियोंने उत्तर दिया 'माताजी ! ऐसे कम्मल तो हमारे पास १६ हैं। माता भद्राने उनसे बत्तीस मांगी क्योंकि शालिभद्रकी तो बत्तीस स्त्रियां थी। परन्तु उन लोगोंके पास ३२ कम्मलें न होनेके कारण भद्राने उन सोलहों कम्मलोंको खरीद लिया और व्यापारियों को मुंह मांगा मोल चुकाकर बिदा किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com