Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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धनभद्र ने उन आठों स्त्रियोंको अपनी बहन कहकर उसी समय तज दिया और शालिभद्र की ओर जा पहुंचे।
शालिभद्र के यहां पहुंचकर उससे कहा 'कायर ! जब वैराग्य का ही अन्तिम आश्रय हो चुका तो एक-एक स्त्री क्या छोड़ता है। मैं तो आज ही आठोंका परित्यागकर तुम्हारे पास आया हूं। चलो ! शुभकार्यमें देर क्यों ?' वहनोईके वचन सुन शालिभद्र भी उसी क्षण नीचे उतरे और दोनों ने भगवानकी शरणमें आकर दीक्षा ग्रहण कर ली। थोड़े दिन ही बाद धनभद्र तो मोक्ष सिधारे और शालिभद्र सर्वार्थ सिद्धि में देव गति पाये ।
ग्रहस्थ और विरोधी हिंसा कौणिक और चेड़ा राजाका युद्ध
प्रभु महावीर स्थान-स्थानमें धर्मोपदेश देते हुए और श्रेणिकादि राजाओंकी रानियोंको दीक्षित करते हुए चम्पानगरीकी ओर पहुंचे । उन दिनों राजा कौणिक वहां राज्य करता था। उसकी माताका नाम काली था; प्रभुके आगमनका समाचार सुन उसने पूछा 'भगवन् ! मेरा लड़का कालीकुमार संग्राममें गया हुआ है उसका कोई समाचार मालुम नहीं हुआ इसलिए उसकी कुशलक्षेम जाननेकी मरी तीव्र अभिलाषा है कृरावर उसे कहिए।'
सर्वज्ञ भगवान बोले 'कि उसका तो शत्रुके ओरसे आये हुए एक ही बारणमें शरीरान्त हो गया' यह सुनकर काली माता मूछित हो गई । कुछ समयके बाद वह होशमें आयी और बोली भगवन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com