Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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अब उन १६ कम्मलोंके ३२ टुकड़े कर माता भद्राने शालिभद्रकी एक-एक स्त्रीको एक-एक टुकड़ा ओढ़ने को भिजवा दिया । सासकी भेजी हुई वस्तुका अपमान न हो यह समझकर उन बहुओंने उन्हें एक रात्रिको तो अोदा और दूसरे दिन सवेरे अंगमें चुभनेके कारण उन्हें बाहर फेंक दिया । सबेरे ज्योंही झाड़नेवाली झाड़नेको आई त्योंही उसकी दृष्टि इन कम्मलोंपर पड़ी, वह उन्हें बटोरकर घर ले गयी। और दूसरे दिन उनमेंका एक कम्मल अोढ कर राजा श्रेणिकके दरबार में झाड़ने के लिए गई । इस कम्मलको झाडनेवालीके अंगपर देख राजाको बहुत ही अचम्भा हुआ । वह वह मन ही मन सोचने लगा कि ओह ! ओह ! जिन कम्मलोंको मैं न खरीद सका उन्हें एक झाड़नेवालीने ले लिया। क्या मेरे राज्यमें मुझसे भी धनाढ्य लोग रहते हैं। इस माइनहारीको बुलाकर पूछना चाहिए । इतना विचार मनमें आते ही राजा ने उसे बुलाया और पूछा कि यह कम्मल तूने कहां से पाई ? उसने सब बात जैसी हुई थी कह सुनाई । उसकी बात सुन राजा की इच्छा हुई कि मेरी नगरी में इतना धनाढ्य सेठ रहता है उससे अवश्य मिलना चाहिये।
यह सोच राजा श्रेणिक अपने मंत्रियों के साथ शालिभद्र के भवनकी ओर रवाना हुआ। सूचना पाकर सेठानी भद्रा राजाके स्वागतार्थ रवाना हुई । अपने द्वार पर राजा श्रेोण को देख अपने
और अपने पुत्र के भाग्यकी मन ही मन सराहना करने लगी। उसने पूर्ण सामग्रीके साथ राजाका स्वागत किया तत्पश्चात् उसने नम्रता पूर्वक राजाको भवन में प्रवेश करने के लिये संकेत किया । ज्योंही राजा श्रेणिकने पहले मंजिल में प्रवेश किया तो उसकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com