Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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'स्वामी ! यह क्या हुआ ।' प्रभुने कहा- 'ध्यानस्थ मुनि प्रसन्नचन्द्रको इसी क्षण केवल ज्ञानकी प्राप्ति हुई है। देवता लोग उसी की खुशी मना रहे हैं।'
सत्याग्रही सेठ सुदर्शन और अर्जुन माली
कई स्थानोंपर विचरते हुए एक बार फिर भगवान राजगृहीमें पधारे । भगवानके पधारनेकी सूचना मिलते ही सारा नगर आनन्द से उमड़ उठा। उस नगरीके सुदर्शन सेठकी इच्छा भी प्रभुके दर्शनार्थ जागृत हुई । उनका मन भगवानके प्रति प्रेम और भक्ति से भर गया। वे तुरन्त ही अपने माता-पिताके पास आये और प्रभु के दर्शनके लिए जानेकी आज्ञा मांगी। माता-पिताने उनकी विनती अस्वीकार कर दी । वे बोले- 'बेटा ! अर्जुन मालीके शरीरमें एक असुर प्रवेश कर गया है। वह गांवके बाहर घूमता फिरता है और प्रतिदिन छै पुरुष और एक स्त्रीका प्राण अपहरण करता है । यही कारण है कि राजाने भी अकेले शहरके बाहर जानेकी मनाई कर दी है। इसलिए तुम यहींसे प्रभुकी वन्दना कर लो। वे सर्वज्ञ हैं तुम्हारी भाव भक्ति और वन्दनाको वे अवश्य स्वीकार कर लेंगे।' परन्तु सत्य और प्रेमपर डटा हुआ मनुष्य ऐसी भारुताकी बात ही कैसे सुन सकता है । सेठ सुदर्शन तो अहिंसा, सत्य, प्रेम और भक्तिसे सने हुए थे, वे अपने हृदयमें प्रभु-भक्तिको स्थान दे चुके थे । भयके लिए उनके साहसी हृदयमें जगह ही न थी। सत्य, भक्ति को लेकर मस्त-प्रभु चरणोंके दर्शनार्थ पिताकी आज्ञा लेकर सेठ सुदर्शन भगवानकी ओर चल पड़े। वे मन ही मन सोचने लगे कि सत्यकी महिमा और आत्मशक्तिके आगे शारीरिक राक्षसी शक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com