Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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चन्दनवाला और मेघ कुमार आदि की दीक्षा
जब भगवान को केवल ज्ञान प्रात हो गया और अापा पुरीमें इन्द्रभूति, अग्निभूति आदि तेजस्वी पंडितोंने अपनी हार स्वीकार करके प्रभुकी शरण गही तब तो उनके अगाध अत्मवल तप और तेजकी महिमा दिशा विदिशाओं में फैलते फैलते कोशाम्बी पहुंची जहां चन्दनबाला रहती थी। .
चन्दनवालाने यह प्रतिज्ञा कर ही ली थी कि प्रभुको केवल ज्ञान होने पर दीक्षा गृहण करूंगी । तदनुसार वह भी अपनी कुछ सहेलियोंके साथ प्रभु के पास पहुंची और उनसे अपनेको दीक्षित कर लेनेकी विनम्र प्रार्थना की । प्रभुने अपने ज्ञानसे उसकी अन्तरात्माको पहिचान र उसे दीक्षित कर लिया। उसके साथ अन्य महिलाओंने भी दीक्षा ग्रहण की । भगवानने चन्दनबालाको सही साधियोंकी मुखिया, ऐसा पद प्रदान किया।
उस समय और भी नर नारियोंने श्रावक और श्राविकाओं का व्रत धारण किया । इस प्रकार साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघकी स्थापना हुई। इसके बाद प्रभुके द्वारा गणधर भी उत्पाद, व्यय और ध्रुव, इस त्रिपदीके ज्ञानसे प्रतिबोधित किये गये । उसीके आधार पर फिर गणधरोंने 'द्वादशांगी' की उत्तम रचना की।
वहांसे विहारकर रास्तेमें कई स्थानों पर जगतके दुःखी जीवों को अपने अमृत उपदेश द्वारा शान्ति पहुंचाते हुए प्रभु एक दिन
राजगृहमें पधारे । प्रभुके आगमनका संदेश वहां के राजा श्रेणिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com