Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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को मिलते ही उसने उनके दर्शन करने की तैयारी की। राजपुत्रोंने भी यह संदेश सुना । वे भी प्रभु के दर्शन करनेको राजा श्रेणिकके साथ पधारे । भगवानके समीप आकर उन्होंने बड़ी श्रद्धा, भक्ति और विनय सहित प्रभुकी बन्दना की । फिर प्रभुने उन्हें सम्यक्त्व का तत्व समझाया; जिसे सुनकर राजकुमार अभयने तो उसी समय श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया और मेघ कुमार, जो राजा का जेष्ठ पुत्र था, वैराग्य भावसे परिल्पावित हो गया।
घर पर आकर मेघ कुमार अपने माता पितासे चोला 'मेरा मन अब संसार में नहीं लगता, संसार तो मुझे बहुत संतापकारक प्रतीत होता है, मुझे आज्ञा दीजिये तो मैं भगवान महावीरकी शरण जाकर, दीक्षा गृहण कर, आत्मा संशोधन करूं ।' राजाको यह बात सुनकर बहुत अचंभा हुआ कि भगवानके एक ही दिन के उपदेशने राजपुत्रके मनमें वैराग्यका घर कर लिया। फिर तो राजा ने राजकुमारको बहुतेरा समझाया । उन्होंने एक दिन का राज्य उसे देकर, उसकी महिमा एवं सुखका प्रलोभन दिखाकर उनके चित्त की वृत्तियोंको संसार-सुखकी ओर खींचनेके कई प्रयास किये; परन्तु वे सब निष्फल हुए । मेघ कुमारकी वैराग्य भावना ज्यों की यो सुदृढ़ बनी रही । तब तो राजाको उपे दीक्षा ग्रहण करनेकी अनुमति देनी पड़ी । तत्पश्चात् मेघ कुनार प्रभुके पास आये और अपने आन्तरिक विचार उनके सन्मुख प्रगट किये । भगवानने भी उसके परिणामोंकी रूप रेखा परखकर उसे दीक्षा दे दी।
रात्रिमें नव दीक्षित मुनि मेधकुमारको उस स्थानपर सोना पड़ा, नहांसे उनके पूर्व दीक्षित साधुओंके आने-जानेका मार्ग था। मुनियोंके बाहर जाने मानेमें अनेक बार मेघ मुनिको उनके पैग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com