Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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गौतमको उसके पांच सौ शिष्यों सहित दीक्षा देकर उसे अपना प्रथम शिष्य बनाया। ___इन्द्रभूतिकी दीक्षाकी सूचना नगरमें बिजली की तरह फैल गई। यह सुन अग्निभूतिको भी क्रोध आया और वह अपन दिग्गज भाईको एक साधारण वैरागीफी मायाजालले छुड़ाने के हेतु अपने पांचसौ शिष्यों सहित उस समवसरणमें श्रा पहुंचा । उस पर भी वहीं बीती जो इन्द्रभूतिके साथ हुई थी। उसे भी उसी प्रकार सम्बोधित कर भगवानने उसके मन का “कर्म कोई पदार्थ है कि नहीं" यह संशय निवारण किया। तब तो अग्निभूतिको भी भगवानकी सर्वज्ञता म्वाकार करनी पड़ी और वह भी अपने पांचसौ शिष्योंके साथ दीक्षित हो भगवान का दूसरा शिष्य हो गया ।
इस प्रकार वायुभूति आदि इतर अ.ठ प्रकांड पंडित क्रमशः अपनी-अपनी शंकाओं का समाधान करने हेतु अपने शिष्यों सहित भगवान के समवसरणने आये । सर्वज्ञ भगवान महावीरने उनको सव शंकाए स्याद्वद सिद्धांतके अनुसार वेद ऋचाओं के मही-सही अर्थ द्वारा समाधान कर दी। तब तो उनकी प्रचुर विद्वताका घमंड तापञ्चरकी तरह उतर गया। वे अ.ने-अपने शिष्यों सहित जैन धर्नमें दीक्षित हो गय । जिसका विस्तारपूर्वक विवरण शास्त्रोंमें उपलब्ध है।
अब तो उक्त ग्यारहके ग्यारह प्रचंड पंडित अपने ४४०० शिष्यों सहित भगवान महावीरके प्रमुख शिष्य अर्थात गणधर बन गये । तदनन्तर भगवानने भी इन्हीं शिष्यों द्वारा 'अहिंसा परमो धर्म:' का अमृतमयो अपूर्व शांतिदायक सन्य सिद्धान्न देश देशानरा में फैलाना प्रारंभ कर दिया ।
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