Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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के प्रहार सहन करने पड़े । बस एक ही रातकी इस वेदनाने मेष मुनिके विचारोंमें परिवर्तन कर दिया। उनका मन संयमसे हट गया । वे सोचने लगे कि 'प्रातःकाल ही प्रभुके सन्मुख जाकर मैं इस व्रतको त्याग दूंगा।' प्रातःकाल होते ही मेघमुनि भगवानके पास आये और रात्रिका सब वृतांत सुनाकर संयम व्रत छोड़ देने की अपनी इच्छा प्रकट की । तब प्रभु बोले 'देवानुप्रिय रात्रिकी इस छोटी सी वेदनासे तुम इतने व्याकुल हो गये; तुम अपने पूर्व भवकी बात यात याद करो। 'तुमने पूर्व भवमें क्षणिक उत्तम क्षमा एवं दयाके कारण उच्च गतिका बांध बांध लिया था । यदि यह बात तुम्हें स्मरण हो जावे तो तुम संयमब्रत छोड़नेके बदले संसारको संयमकी ओर खोचनमें लग जाओगे तब तो मेघ मुनि हाथ जोड़कर भगवानसे अपने अपूर्व भयकी बात बताने के लिए प्रार्थना की।
मेष मुनिकी यह भावना देख प्रभु बोले 'भव्य मेषकुमार ! पूर्व भवमें तू एक हाथी था । तेरा नाम मेरुप्रभ था । तू विंध्याचल के बनप्रदेशमें हाथिनियोंका यूथपति बनकर रहता था। एक दिन उस बनमें भयंकर आग लगा, तब तूने अपनी कुल हथिनियोंको साथ लेकर उसी बनके एक जलाशय के निकट लाकर उन्हें विश्राम दिया । अग्नि की चालासे दूसरे बन के प्राणी भी भागकर तेरे विश्राम स्थानमें घुस आये । उस समय पड़ोसकी आंचके कारण तेरे बदन में कुछ खुजली चली, तब अपने बदनको खुजलाने के लिए तूने अपना एक पांव ऊपर उठाया, इतनेमें ही एक भयातुर खरगोश तेरे उस उठाये हुए पैरके नीचे आकर बैठ गया। यह सोचकर कि 'अब यदि पांव नीचे रखा तो यह प्राणो दबकर मर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com