Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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क्रियाओंमें संलग्न रहने लगे । एक समय जब कुण्डकौलिक सामायिक कर रहे थे तब इनके दृढ़ निश्चय की परीक्षा करने के लिये एक देव आकर बोला "हे कुण्ड फौलिक ! तू गौशाला प्ररूपित नियतिवाद के सिद्धान्त पर क्यों नहीं चलता जो होने वाला है वह तो होकर ही रहेगा; व्यर्थ के क्रिया काएडों द्वारा कष्ट उठानेसे क्या फायदा है इत्यादि' तब तो कुण्ड कौलिकजीने कहा “देव ! तेरा कहना कदाचित् ठोक भी हो, परन्तुं जो बात प्रत्यक्ष है उसे प्रमाण की क्या जरूरत है, यम और नियमादिमें यदि कुछ नहीं है तो तुझे यह देव ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई।" तब देव बोला "मुझे तो विना ही यम नियमादिके देवगति प्राप्त हुई है।" कुण्ड कौलिकजीने उत्तर दिया कि “यदि ऐसा ही है तो जगतके अनेकों जीव जो कुछ भी धर्म-कर्म नहीं करते वे सबके सब देव क्यों नहीं बन गये।" इस पर देव चुप होकर वहां से चला गया और कुएड फौलिक अपने धर्म कर्ममें और दृढ़ बन गया।
इस प्रकार भगवान महावीरने अनेक पुरुषोंको श्रावक धर्मका उपदेश दिया और उन्हें मुक्तिके मार्गपर अग्रसर कर दिया । इन्हीं श्रावकों द्वारा बनवाये हुए चित्ताकर्षक विशाल मन्दिर एवं पुरातन पाठगृह और बिंबादि अनेक स्थानों में आज भी भारतवर्षमें वर्तमान हैं और जिनका विस्तारपूर्वक वर्णन स्थान-स्थान पर जैनशास्त्रों में उपलब्ध है।
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