Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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होता था, कहीं गोमेध यज्ञमें लाखों गौएं होम दी जाती थीं और कहीं-कहीं नरमेध यज्ञमें सैकड़ा मनुष्य व बच्चों का बलिदान होता था, और इसे ही सच्चा धर्म बतलाया जाता था।
भगवान महावीरने अपने ज्ञान द्वारा एवं अमोघ शक्तिसे इस हृदय विदारक अवस्थाको समूल नष्ट करनेका उपदेश देना प्रारंभ किया। उन्होंने बतलाया कि खूनका दाग खूनसे ही धोनेसे साफ नहीं हो सकता, इसी प्रकार अधर्मको मिटानके लिये अधर्म ही करनेसे धर्म कदापि नहीं हो सकता। उन्होंने दर्शाया कि सुख
और शान्ति का मार्ग वही हो सकता है जिसे प्राणी मात्र चाहें । प्राणी मात्रको, चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो, अमीर हो या गरोव हो, पशु हो या पक्षी हो, कीडा हो पतंगा हो सबको अपनी-अपनी जान प्यारी है और सवही अपनी अपनी अवधितक जीवित रहना चाहते हैं। इसी अवस्थाको कायम करने और भारत व्यापी बनाने में भगवान महावीरने "अहिंसा परमो धर्म:" का दिव्य उपदेश अपनी गगन भेदी बुलंद आवाजसे देना प्रारंभ कर दिया । और जीवमात्रों के लिये प्रजातंत्रवादकी उत्तम नींव डाली जो आजकल अंशतः मनुष्यमात्रतक सीमित रह गयी है । भगवानकी ऐसी अनोखी करुणा, धनता, दया और आत्माके अमर धन एवं सत्य के वितरण करनेकी चर्चाको देख, सुन और अनुभवकर जन समुदाय, उनकी शरणमें आकर अपने जीवनको ‘सत्यं शिवम् सुन्दरं' के अलौकिक प्रकाशसे प्रकाशित करनेको, उमड़ पड़ा।
सर्वज्ञ भगवानने, विना जाति भेद, ऊंच नीच, पशु-पक्षी सत्रही शरणागत प्राणियोंको सत्य का सतस्वरूप बतलाया जिसका
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