Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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बाकुले सूपमें हों (८) जिस समय वह कन्या अहार दे तो उसका एक पांव देहलीके बाहर और एक भीतर हो और () जिसकी आंखोंसे अश्रुधारा बहती हो ।
इस प्रकार अभिग्रह धारण कर भगवान प्रतिदिन कोशाम्बी नगरी में जाते परन्तु उक्त प्रकारकी योजना कहीं भी प्राप्त न होती। ऐसा करते-करते पूर्ण चार माह व्यतीत हो गये परन्तु कहीं भी अपने अभिग्रह अनुसार भोजन प्राप्त नहीं हुआ । यह बात बस्ती के राजा, मन्त्री वगैरहको मालूम हुई तबतो नगर में भारी चिंता फैल गई । बड़े-ज्योतिषियोंने भी भगवानके अभिग्रह को मालूम करनेका प्रयत्न किया मगर वे सफल न हुए। चार मास पूर्ण हो जानेपर भी अभिग्रह सफल न हुआ। जबतक दूसरी ओर क्या-क्या घटना घटी है उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
उस समय नगरी चम्पावती में राजा दधिवाहन राज्य करते थे । उनकी धारिणी नामकी पतिव्रता रानी थी। उनकी महाशीलवती बसुमति नामकी कन्या थी । ये तीनों ही प्राणी पूर्ण धर्मात्मा थे; रात दिन जिनेश्वर पूजनमें बिताते और मोक्षके मार्गका साधन करते थे । एक दिन अचानक ही उनपर आपत्तियोंका पहाड़ टूट पड़ा । कोशाम्बीका राजा शतानीक किसी कारण चम्पावतो के राजा दधिवाहनसे क्रुद्ध हो गया। वह अपना सैन्य-दल लेकर दधिवाहनपर चढ़ आया । युद्ध होनेपर दधिवाहन हार गया और नगर छोड़कर भाग निकला । शतानीकने राजधानीमें प्रवेश कर लुट मचा दी। उसी लूटमें एक सुभट दधिवाहनकी पतिव्रता रानो धारिणी और कन्या बसुमतिको उड़ा ले गया रास्तेमें उस सुभटने रानी धारिण के प्रति अपनी दुईच्छा प्रगट की। रानीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com