Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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चलायमान कर देनेवाले उपसर्गों और संकटोंको शान्तता पूर्वक सहन कर और अपने अविचल सत्य द्वारा उनपर विजय प्राप्त कर प्रभुने वहां से विहार कर दिया ।।
नोट-इस पाठसे सत्याग्रहकी कड़ी परीक्षाका अनुमान होता है । इसमें जो उत्तीर्ण होते हैं उनके आगे संसारकी भारीसे भारी शक्तियां झुक जाती हैं और अन्तमें विजय श्री उनकी दासी वन जाती है। यह है सच्चे वीरों की वीरताकी उज्ज्वल चमक का जीवित उदाहरण ।
भगवानका अभिग्रह और चन्दनवाला
इस प्रकार विचरते हुए भगवानने अपना ग्यारहवां चातुर्मास वैशाली में किया और वहांस कई स्थानोंको अपने चरण कमलों द्वारा पवित्र करते हुए कोशाम्बी में पधारे ।
उस समय वहां राजा शतानीक राज्य करता था, उसकी रानी भृगावती थी। उसी नगरीमें धनावह नामका एक सेठ रहता था, जिसकी मूला नामकी कलहकारिणी ईर्षालु स्त्री थी।
इस नगरीमें आकर प्रभुने बड़ा ही कड़ा अभिग्रह धारण किया, जिसमें कई बातोंका समावेश होता है, उन्होंने निश्चय किया कि अब तो (१) अहार किसी राजकन्याके हाथसे ग्रहण करना (२) वह राजकन्या बिकी हुई होना (३) उसके पैरों में वेड़ियां पड़ी हों (४) उसका सिर मुंडा हुआ हो (५) जो तीन दिनके उपवाससे युक्त हो (६) उड़दके बाकुले अहारमें देवे (७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com