Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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नोट-धर्मके मुख्य चार प्रकार होते हैं (१) दान (२) शील या [ ब्रह्मचर्य ] (३) तप और (४) भावना इनमें से प्रत्येक की महिमा शास्त्रकारोंने अलग अलग बतलाई है । दान की अपूर्व महिमाका उल्लेख इस पाठमें किया गया है। यों तो संसारमें अनेक प्रकारके दान धर्म किये जाते हैं परन्तु सुपात्र दान के बराबर कोई दान नहीं हो सकता । सुपात्र को दान देने और उसकी तप्त आत्माको शान्ति पहुंचानेमें देवताओं तकको खुशो होती है और उससे प्रभावित हो वे दानीके यहां द्रव्य वर्षा कर देते हैं । इस समय भी दान पुण्यकी महिमा किसी संकट के
आड़े आती है। फिर यदि महान योगी आत्माओं को देकर द्रव्यसे भंडार भरपूर होवें इसमें अचंभा ही क्या है।
राजदण्ड
विहार करते करते भगवान और गोशाला जव चोराक ग्राममें पहुंचे तो वहां कुछ राजकर्मचारी गुप्तरूपेण चोरोंका पता लगा रहे थे। उनके मनमें साधु वेषधारी भगवान और गोशालाके प्रति शंका उपस्थित हुई । इसी संदेहमें उन्होंने भगवान और गोशाला को पकड़ लिया। उन्हें पकड़कर वे लोग ग्रामके अधिकारी के पास ले गये । अधिकारीने भी कर्मचारियों की बातों में आकर उन्हें चोर ही समझा और बिना किसी प्रकार की पूछतांछ कियेही हुक्मजारी कर दिया कि इनके हाथ पांव खूब जकड़कर बांधके बना सिढ़ीके कुएमें डालदो। इतना हुक्म मिलते ही सिपाहियों ने उन्हें बांधकर निर्दयता से एक कुएमें ढकेल दिया। भगवान पर तो इसका कुछभी असर नहीं हुआकिन्तु गोशाला चिल्ला-चिल्लाकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com