Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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गये । अनार्य देशको लाटदेशभी कहते थे। वहां के लोग बहुत क्रूर और घोर हिंसक थे । ताड़ना, मारना और भांति भांतिके कष्ट पहुंचाना ये तो उनके प्रतिदिनके कार्य थे। ऐसे क्रूर और अविवेकी मनुष्यों को अपने आदर्श स्वभावसे सीधी राह पर लाने के लिये और अपने कर्मोंकी निर्जरा के हेतु ही भगवानने अपना नवमां चतुर्मास अनार्य देशमें किया ।
जव भगवान अनार्य देश ( लाट देश ) में पहुंचे तो वहां के लोगोंने कौतूहलवश उनपर डंडे चलाना और गंदली गालियां देना शुरू कर दिया । उनपर कोई धूल फेंकता, कोई कुत्ते छुछलता
और कोई कोई नानार्तिध पीड़ा पहुंचाकर खुशी मनाते थे । भरावान इन सब बातोंको बिना द्वेष आनन्दपूर्वक सहते जाते थे। जब प्रभु किसी खंडहरमें ध्यान करने के लिये जाते तो वहां के पड़ोसी उन्हें धक्का मुक्का मारकर निकाल देते थे। इतनाही नहीं कहीं कहीं तो प्रभुको थप्पड़ों और धूमोंका भी स्वागत करना पड़ता था । नानाप्रकारसे शारीरिक दण्ड देते समय जब वे लोग भगवानसे उनका परिचय पूछने और मौन या ध्यानके कारण प्रभुके मुखसे वे कुछ न सुनते तबतो उनके क्रोधकी सीमा न रहती। वे उन्हें ढोंगी अथवा पक्का चोर समझ उनपर कोड़ोंकी मार बरसाने लगते और कहीं कहीं उन्हें जकड़कर बांध भी देते थे । परन्तु भगवान तो इन सब परीसहोंको प्रसन्न वदन सहन कर लेते
और कभी कोई खंडहर मिल जाता तो वहीं ध्यान मग्न हो जाते थे। इस अनार्य देशमें कड़ाके की ठंडमें और गर्मीके दिनों में पूर्ण तप्त चट्टानों पर कई दिनों तक ध्यान मग्न रहते देख मानव हृदय कंपायमान हो जाता था । परन्तु भगवान अपने कर्मोंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com