Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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कुछ दिन बाद वह फिर भगवानसे अलग हो गया और इन दो सिद्धियों द्वारा वह लोगोंको 'आजीविक सिद्धान्त' का उपदेश देने लगा । अपनी सिद्धिमों का प्रभाव दिखाकर वह अपने को चौवीसवां तीर्थकर कहने लगा । अवतो भोले-भाले लोग इसकी माया जाल में फंसने लगे और उनकी संख्या भी काफी तादाद में बढ़ गई।
इधर भगवान को केवल ज्ञान न होने के कारण म.नस्थ होकर ही रहना पड़ा, क्योंकि तीर्थकर विना पूर्णज्ञान प्राप्त किये धर्मावदंशही नहीं देते । इसी समय जब भगवान छछस्त अवस्थामें ही थे तब भाजीविक समाज की संख्या भगवान महावीरके अनुयायियों की अपेक्षा किञ्चित अधिक होगई । परन्तु उसके सिद्धान्त
अपूर्ण और नितान्त निवल होने के कारण नाम शेष रह गये । इसीलिय आज आजीविक समाज का एक भी अनुयायी नजर नहीं आता ।
नोट- अष्टांग निमित्तका ज्ञान प्रायः वह ज्ञान है जिसके श्राधार से जन्म-मरण, हानि लाभ, सुख-दुख आदि बातोंको मनुष्य तत्काल बता सकता है । संगमदेव द्वारा उपसर्गों की वर्षा
और
अनुपम-सत्याग्रह शान्तता और वीतराग भावसे अनेकानेक उपसर्गाको सहते हुए प्रभु पेढाणा ग्राममें पधारे। वहां पहुंचकर एक उपवनमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com