Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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भगवान ध्यानस्थ हो गये और छै मासी तपका आराधन आरंभ कर दिया ।
'यहां पर जो उपसर्ग भगवान को हुए हैं उनका वर्णन करते हृदय कांपता है, धैर्य दहल जाता है, लेखनी रोती है, प्रकृति अस्तित्व शून्य बन जाती है, परन्तु भगवानके अविचल वैराग्य, आदर्श संयम, अद्भत तपोबल उत्तम भावना आत्मकल्याणका निश्चल वृत उन सम्पूर्ण उपसर्गों को तुगर पोड़ित और बेफाम कर देता है। यह है अविचल दृढ़ता की संगीत कसौटी और अनुपम सत्याग्रह का नमूना ।'
जब प्रभु ध्यानस्थ हो छै मासी तप कर रहे थे उस समय देवराज इन्द्रने अपनी सभामें भगवान के संयम, तप और चरित्र बलकी बहुत प्रसंशा की । यह सुनकर सभाका एक संगम नामका देव प्रभुके विरुद्ध ईर्षालु होगया । वह सोचने लगा कि 'देव सभामें मृत्यु लोकके शरीरधारी आत्माकी इसनी प्रसंशा कदापि वाञ्छनीय नहीं । मैं अभी वहां जाता हूं और महावीरको हरतरह से उसके तप, संयम, शोल और सदाचारमें परास्त कर देवराज इन्द्र के इस कथन का खंडन करता हूं जिससे उन्हें भी किसीकी मिथ्या प्रसंशा करनेका देव सभामें साहस न हो।' इस प्रकार गन्दले विचार मनमें आतेही भगवानको परास्त करने के हेतु वह संगमदेव वहां आया जहां प्रभु ध्यानस्थ तपस्या कर रहे थे।
प्रभुके शान्त, अचल निष्काम और लोकोपकारी शरीरको देखकर संगमका ईर्षामान दुगना होगया। उसीक्षण उसने प्रभुको ध्यानसे डिगाने के लिये अपनी मायासे घटाटोप धूलिकी बहुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com