Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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यह देख प्रभुने अपनी शान्ति मुद्राके प्रभावसे उस ज्वालाके प्रति शान्त होजानके लिये अपना खुला हाथ उंचा किया । प्रभुकी ठंडी दृष्टि के प्रभावसे वह ज्वाला उसी क्षण शान्त हो गई और गोशालाभी भस्म होजाने से बच गया ।
भगवानकी शान्त इष्टिका यह चमत्कार देख उस तपस्त्रीको बहुत अचंभा हुआ। वह शीघ्र भगवान के पास आया और अपनी तपस्या से भगवान की तपस्या को बलवती पा उनके गुणोंकी प्रसंशा करने लगा। उसकी तप शक्तिका गर्व तो जाता रहा और उसके स्थानपर उसके हृदयमें भगवानके प्रति भक्ति भाव जागृत हुआ । वह उसी समयसे भगवानका भक्त हो गया।
उस तपस्याके यहां से चले जाने के बाद गोशालाने भगवान से पूछा ' भगवन ! यह तेजो लेश्या किस प्रकार प्राप्त होती है ?' तव बोले कि छै माहतक बेले बले तप और सूर्यके सन्मुख आतापना करे, और पारणेके दिन एक मुठी उड़द और चुल्लू भर पानी पीकर रहे तो तेजोलेश्या प्राप्त होती है।
. भगवानके इस प्रकार वचन सुन गोशालाभी उतत तप करने में जुट गया । छैमाह तक उका कथित तपस्या करके उसने तेजोलेश्या प्राप्त करली । तेजालेश्या प्राप्त होनेके बाद उसने उसका दुरुपयोग करना प्रारंभ किया। अपने स्वभावानुसार जगह जगह वह मनुष्योंको भांति भांतिके कष्ट पहुंचाने लगा । पश्चात भगवान पार्श्वनाथके सन्तानिक कुछ शिष्यों द्वारा उसने 'अष्टांग निमित्त' का ज्ञान प्राप्त कर लिया । अवतो गोशालाको दो प्रचन्ड शक्तियां प्राप्त होगई जिसके कारण वह अपनेको जिनेश्वर कहने लगा।
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