Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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इतना विचार मनमें आतेही वह सुदृष्ट देव अपना बदला लेनेको उस नाव पर लपका। उसने नावके पास जाकर एक भयंकर गर्जनाकी । उस गर्जना से जितने मनुष्य नावमें बैठे हुए थे, वे सब भयभीत हो गये किन्तु भगवान महावीर ज्योंके त्यों धैर्यता से बैठे रहे । फिर वह देव भगवानको सम्बोधन कर बोला 'कि अरे तू अब अपने पूर्वजन्मका खाता चुका; अब मेरे चुंगल से तू जिन्दा नहीं बच सकता; तूनेभी विना कारण मेरे प्राण लिये थे सो अब तू भी अपने प्राण देनेको तैयार हो जा।'
इतना कहकर उसने अपनी मायाले एक बड़े वेगकी आंधी छोड़ी। पानीकी लहरें जोर-जोरसे उछाल लेने लगी। झाड़ टूटटूटकर गिरने लगे । नाव बीच नदी में भयंकरता से ऊपर नीचे जाने लगी । मल्लाहने भी घबराकर अपनी पतवार छोड़ दी। पानी की भीपण भराहट से सबके होशवाश उड़ गये। नावके डूबजाने में कोईभी कसर नहीं दिखती थी । परन्तु इतनी भयंकरता का दृश्य देखते हुए भी भगवान महावीर जराभो न घबराये । प्रभुका अलौकिक साहस और धैर्य देखकर सबके सब अपनी करुण दृष्टि उन्हीं की तरफ लगाये अपने अपने इष्ट देव को याद करने लगे।
इस भयभीत दृश्यको सम्बल और कम्बल नामके देवभी देख रहे थे। ये देवभी उसी जातिके थे जिस जातिका सुदृष्ट था। भगवान पर यह आपत्ति देख ये देव तुरन्त प्रभुके पास आये और सुदृष्टको मार भगाया और उसकी कुल माया दूर करदी। तबतो सबके जीव में शान्ति आयी । नाबभी पार लग गई और सब लोग प्रभुके प्रभावकी प्रसंशा करते हुए नावसे पार उतरे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com