Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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सुदृष्टदेव का उपसर्ग पूर्वभव का बदना
अनेकानेक स्थानों में विहार करते हुए एकदिन भगवान सुरभीपुरकी ओर पधार रहे थे । मार्ग में गंगा नदी पार करके सुरभिपुर जाना पड़ता था । जब भगवान गंगानदिके किनारे पहुंचे तो मल्लाहकी दृष्टि उनके शान्त और मनोहर मुख मंडल पर पड़ी । वह ऐसी छवि देखकर एकदम प्रसन्न हो उठा और भगवानसे विन्ती करने लगा कि ' प्रभु !' आप नावपर पधारिये मैं आपको उसपार उतार कर अपने को कृतकृत्य समभूंगा । भगवानने उसकी प्रेमसनी वाणी स्वीकार करली और नावपर सवार हो गये । मल्लाहने नाव खेना आरंभ करदिया ।
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इधर गंगानदी के किनारे एक ' सुदृट नामक' देव रहता था वह पूर्वभव में एक सिंह की योनि में था। वह सिंह बिना कारण ही पूर्वभव में ' त्रिपृष्ट वासुदेव' नामक शरीरधारी भगवान महावीर द्वारा शिकार हो गया था । उसे इस समय भगवान से अपने पूर्वभव का बदला लेनेकी सृभी। वह मनही मन सोचने लगा कि ' अपने बलके गर्व में आकर इन्होंने निष्कारण ही मेरा वध किया था, अतः इस अवसर पर इनसे बदला लेना अच्छा है अब मैं भी इन्हें जीवित न रहने दूंगा।' कर्म की सत्ता सबसे बलवान होती है । जो जैसे कर्म करता है उसे उसका बदला अवश्य चुकाना पड़ता है। कर्म की इससत्ता के आधीन होकर कोईभी कर्जदार अपना कर्जा चुकाए बिना ऋण मुक्त नहीं हो सकता, चाहे वह राजाहो अथवा रंक, ऊंचहो या नीच, तीर्थंकर हो या अवतार-कर्म अपनी शासन सत्ता एकसी चलाते हैं ) ।
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