Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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गोशाला
मंखली नामक एक चित्रपट दिखानेवाला और उसकी गर्भवती स्त्री एक समय शखण ग्राममें पहुंचकर बहल नामके ब्राह्मणकी गोशालामें ठहरे । वहां उसकी गर्भवती स्त्रीको पुत्र पैदा हुआ। वह बालक गोशालामें जन्मा था इसलिये उसके माता पिताने उसका नाम गोशाला रख दिया। समय पाकर गोशाला बड़ा हुआ । उसने भी अपने पिताका धंधा करना प्रारंभ किया। गोशाला बहुतही चालाक और विचित्र स्वभाव वाला था। थोड़े दिनके बादही वह अपने माता-पितासे अलग हो गया और अपनी श्राजीविका चलाने लगा। एक दिन गांव गांव फिरते फिरते वह राजगृहमें आ निकला वहीं भगवानभी विराजमान थे। इस समय भगवानकी तपस्यका एक मास पूरा हुआ था और दूसरा दिन पारणे का था। दूसरे दिन पारण के लिये भगवान अहार निमित्त रवाना हुए । प्रभुको भिक्षार्थ आये हुए देख विजय सेठने श्रद्धा
और सत्कारके साथ भगवान को निरवध अहारदान दिया । अहार लेतेही देवताओंने वहां कनक रत्नादि पांच द्रव्योंकी वर्षाकी यह समाचार बिजलीकी तरह सारे शहर में फैल गया। गोशालाने भी यह बात सुनी । वह उसी समय भगवानको ढूंढ़ता हुआ विजय सेठके यहां आया और उक्त कथित पूर्ण वृतान्त सचाईके साथ अपनी आंखों देखा । वह सांचने लगा कि 'यह भिक्षु 5 साधारण भिक्षुकके समान नहीं है। यह कोई पहुंचा हुआ महापुरुष है । अगर मैं भी इसका शिष्य हो जाऊं तो कभी न कभी मेराभी भाग्य उदय हो जायगा' । ऐस, मनमें ठानकर वह गोशाला प्रभुके सन्मुख आया और भगवानके विना 'हां' व 'ना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com