Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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नोट-जैन योग शास्त्रमें शुक्ल ध्यान ध्याते समय कायोरसंग ( काउसग्ग) करते वक्त दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर केन्द्रित किया जाता है पश्चात् ध्यान मग्न होते हैं।
ग्वालों की करता
कुमार गांवके एकान्त स्थानमें जब भगवान खड़े खड़े ध्यानमें मग्न थे उस समय एकाएक कुछ म्बाले अपने बैलोंको चरानेके लिये वहां निकल आये। थोड़ी देरके बाद ग्वालोंको कुछ कामके लिये वहांसे अन्यत्र जाना पड़ा । उन्होंने विचार किया कि यह मुनि यहां खड़ा खड़ा अपने बैलों को देखता रहेगा। इसे जताकर अपन लोग अपना कार्यकर आवें । ऐसा सोचकर उन्होंने प्रभुको जतलाकर बैलोंको वहीं चरते हुए छोड़ दिया और अपने कार्यके लिये चले गये। परन्तु भगवान तो ध्यानस्थ थे। उन्हेंतो किसी भी बातका प्रयोजन न था । कुछ देरके बाद बैल वहांसे चरते चरते इधरउधर चल दिये । पश्चात् ग्वाले अपना काम करके लौटे और वहां आकर देखा तो उन्हें बैल नहीं दिखे। तबतो उन्होंने बैलों को ढूंढना आरंभ किया । बहुत देर तक ढूढ़नेके बाद जब बैल उन्हें नहीं मिले तो वे क्रोधित हो हताश से हो गये और वहां श्राये नहां प्रभु महावीर थ्यानमग्न खड़े हुए थे। वहां आकर देखा तो बैल प्रभुके पास ही चर रहे थे। इसपर सवालों को बहुत संदेह हुआ । वे सोचने लगे कि हो न हो इसी ध्यानी पुरुषने हमको इतना त्रास दिया । यह चोरमी हो सकता है क्योंकि यदि हम इतनी खोज अथवा जांच पड़ताल न करते तो संभव है कि यह हमारे बैलोको चुराले जाता। इसलिये इसे मारकूटकर यहांसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com