Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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और युक्तियुक्त रूपसे दे डाला । जिसे देखकर, वहां जो लोग उपस्थित थे, वे हर्षयुक्त आश्वर्यावित हो गये। और वह ब्राह्मण भी विचार मग्न होगया। फिर उस ब्राह्मणने निम्नलिखित दस विषयों के प्रश्न और किये जो बहुतही जटिल और पेचीदा थे। मगर राजकुमारने उन सब प्रश्नों को बात की बातमें युक्तियुक्त सुलझा दिया । वे प्रश्न इन विषयोंसे संबंध रखते थे। (१) संज्ञा सूत्र (२) परिभाषा सूत्र (३) विधि सूत्र (४) नियम सूत्र (५) प्रतिष्ठा सूत्र (६) अधिकार सूत्र (७) अतिदेश सूत्र (5) अनुवाद सूत्र (६) विभाषा सूत्र और (१०) निपात सूत्र ।। ___ कहते हैं भावी भगवान महावीर से निकले हुए इन्हीं प्रश्नों के स्पष्टीकरणने आगे चलकर एक वृहत व्याकरणका रूप धारण किया । यही जैनेन्द्र व्याकरण के नामसे प्रचलित हुआ और फिर इसीका अनुकरण जैनाचार्य मुनि शकटायन और पाणिनीने भी किया।
तत्पश्चात् ब्राह्मणरूप इन्द्रने महावीरकी भूरि भूरि प्रसंशा की और कहाकि यह बालक निकट भविष्य में संसारमें एक बड़ाही विचित्र महारुपुष सिद्ध होगा। प्रखर बुद्धिमत्ता रखते हुए अभिमान रहित इस बालकके लक्षण ऐसे जान पड़ते हैं कि यह अपनी विद्या
और बुद्धिसे संयम, सत्य, त्याग और अहिंसा का सुन्दर पाठ संसारको सिखाकर, दुखी जीवों के तापको मिटाकर, शान्तिका राज्य स्थापित करेगा । इतना कहकर ब्राह्मण तो अपने स्थानकी
ओर चला गया और उपाध्याय जी राजकुमार महावीरको साथले राजाके पास गये । राजाने उचित सन्मान दे उपाध्यायजी से राजकुमारकी शिक्षाके विषयमें पूछा । उत्तरमें उपाध्यायजी ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com