Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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अपने स्वप्नों का फल निश्चित कर लिया था तो भी इन स्वप्नों का संदेह उसने राजा सिद्धार्थ को देना उचित समझा ।
प्रातः काल होते ही रानी त्रिशला अपने सदन से राजा सिद्धार्थ के शयनागार में गई और राजा को अपने स्वप्नों का पूर्ण वृतान्त कह सुनाया। राजा स्वयं शास्त्रज्ञ था । स्वप्नों का वृतान्त सुनतेही उसने रानी त्रिशलाके समानही स्वप्नोंके फलोंका प्रभाव जान लिया था । फिरभी अति पुलकायमानहो शीघ्रही शौच, मुखमार्जन, व्यायाम, विलेपन और स्नानादि से निवृत होकर, सुन्दर, आभूषण, वसनादिसे सुसज्जित राजा सिद्धार्थ राजसभामें पधारे ' फिर उन्होंने स्वप्नशास्त्र विशारद पंडितों को बुलौवा भेजा। राजज्ञा शिरोधार्य पंडितगण भी राजसभामें आये । राजाने भी उन्हें आदरपूर्वक योग्यतानुसार श्रासन दिये। फिर विनयपूर्वक एकके बाद एक पूर्व कथित स्वप्नौका उनके सम्मुख वर्णन किया और उनसे इन स्वप्नोंका फल निरूपण करने के लिये कहा ।
इस प्रकार राजाका सन्देश सुन स्वप्नशास्त्र विशारदोंका मुखिया बोला कि राजन् । स्वप्नशास्त्र में स्वप्नों की संख्या ७२ प्रकारकी बतलाई गई है। उनमें से ३० स्वप्न बहुतही शुभ फलके देने वाले होते हैं इन्हीं तीसोंमें से १४ या १६ स्वप्न उस रमणी रत्नको दिखते हैं जिसकी गोदसे किसी तीर्थकर या चक्रवर्तीकी उत्पत्ति होती है । रानी त्रिशलाको तो उक्त सब स्वप्न एकसाथही दृष्टिगोचर हुए हैं । इससे प्रत्यक्षजान पड़ता है कि आपके राज्यमें लक्ष्मी और गौरवको निःसंदेह विस्तार होगा। महारानीके गर्भाधानका समय पूर्ण होनेपर उनकी कोक्षसे एक महान पराक्रमी सर्वगुण सम्पन्न चक्रवर्ती सम्राट अथवा तीर्थकर का जन्म होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com