Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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उससे संसारके अत्याचार एवं अनर्थोंका दीर्घकालके लिये अन्तहो जावेगा । ऐसी महान आत्माके आने से संसार भरमें सुख और शान्तिकी वृद्धि होगी। वह भव्य अस्मिा जगत् पूज्य होगी और संसारके संतप्त जीवों को कल्याणका मार्ग बतावेगी।
इस प्रकार स्वप्न विशारदोंके वचन सुनकर राजा और रानी हर्षके मारे मनही मन फूल उठे। पश्चात् उन्होंने स्वप्न पाठकों को श्रानन्द पूर्वक बहु मूल्य भेद देकर विदा किया। प्रसबके दिन ज्यों ज्यों निकट आने लगे राजा सिद्धार्थके राज्य में धन, धान्य और राजाका सन्मानभी चारों ओर उत्तरोत्तर बढ़ने लगा।
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