Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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मंद और सुगंधित वायुका संचार होने लगा। ऋतुराज वसंतने प्रकृतिको सुगंधित और स्वादिष्ट पुष्प एवं फलोंसे आच्छादित कर दिया । जिधर देखो उधर अ.नन्द और हर्षका साम्राज्य प्रसारित होने लगा । सर्वत्र सुन्दर निमित्त और शुभ शकुन स्वाभाविक प्रवर्तने लगे। ऐसी फूली फली मनोहर आनन्द युक्त बसन्तका वह शुभ दिन ईस्वी सन् ५६६. वर्षके पूर्वका चैत्र मासके शुक्ल पक्षकी तेरेसका था जिस समय चन्द्र हस्तोत्तरा नक्षत्र में था और अन्य ग्रह अनायास उच्च स्थान पर विराजमानथे उस समय रानी त्रिशलाके गर्भसे सिंह लक्षणवाले, स्वर्णके समान कान्तियुक्त, दिव्यरूप राशि पुत्र रत्नका जन्म हुआ।
जिस रात्रिमें भगवानका जन्म हुआ उसी रात्रिमें दैविक गतिसे राजा सिद्धार्थके कोप भंडारादि के धन धान्य, वस्त्राभूषणादि में विपुल वृद्धि हुई । दुःखिया प्राणीगण सहसा सुखका अनुभव करने लगे । चौसठ इन्द्र और असंख्य देवी देवताओंने सुमेरुगिरि पर भगवान का जन्म महोत्सव मनाया । दूसरे दिन राजा सिद्धार्थ ने पुत्र जन्मकी खुशीमें दीन गरीव याचकों को ऐच्छिक दान दिया । जिन मन्दिरों में जगह जगह बहुमूल्य द्रव्यादि से पूजा रचाई; बन्दीखानेसे कैदियोंको छुड़वाया; नगरमें तोल और माप बढ़ाया और नानाप्रकारके महोत्सव करवाये । तीसरे दिन चन्द्रसूर्य दर्शन, छट्टे दिन रात्रि जागरण और ग्यारवें दिन अशुचिकर्म दूर करवाया । बारवें दिन बारसा महोत्सव करके जाति एवं सगे संबंधियों को भोजन वस्त्राभूषण पुष्पमालादिसे सत्कार किया;
और पुत्र जन्मके बाद अपने राज्यमें सर्व प्रकार की अनोखी वृद्धि होनेके कारण अपने पुत्र का नाम श्री वर्द्धमान रक्खा । तत्पश्चात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com