Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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श्रीवर्द्धमान ( भगवान महावीर ) दूजके चन्द्रमाके समान वृद्धि पाने लगे।
नोट-दैविक गतिसे धनकी वृद्धि शात्रोंमें इस प्रकार बताई गई है कि जब कभी महान आत्माओं का जन्म होता है तब उनकी पूर्व पुन्याईके योगसे देवता लोग अपनी दैविक शक्ति से जमीनमें गड़ा हुआ तथा ऐसा धन, जिसका कोई मालिक न हो, लाकर उनके कोष या भंडार भर देते हैं।
बाल्यावस्था और बल
भगवान महावीर की बाल्यावस्थाके विषयमें बहुत कम उल्लेख पाये जाते हैं । परन्तु कल्पसूत्रादि ग्रंथोंसे जो कुछभी थोड़े बहुत उपलब्ध हैं उससे भगवानकी बाल्यावस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। जब भगवानका जन्म महोत्सव सुमेरू पर्वत पर देवताओंने मनाया था, तथा साढ़े सात वर्षकी अवस्थामें बालक्रीड़ा के समय प्रभुने अपने बलका परिचय दिया था उसीका संक्षिप्त वर्णन हम करते हैं।
भगवानकी दिव्य कान्ति, तप, तेज, उत्तम प्रतिमा और अगाध शक्ति अलौकिकही थी । पूर्वकथित जन्मोत्सव मनाते समय मेरूगिरि पर जब देवता लोग भगवानको क्षीरोदकसे स्नान करा रहेथे तब इन्द्रको सन्देह हुआ कि भगवानतो इतने छोटेसे हैं, इतने पानीसे स्नान करानेसे कहीं प्रभु बह न जावें । तीन ज्ञानके धारी प्रभुने अपने अवधिज्ञानसे इन्द्रके सन्देहको जान लिया। उसका भ्रम निवारण करने के हेतु भगवानने अपने पांव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com