Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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भावार्थ-जानने योग्य सम्पूर्ण विश्वको जिसने जान लिया,
संसार रूपी महासागरकी तरंगे दूसरी पारतक जिसन देखली, जिसके वचन परस्पर अविरुद्ध, अनुपम और निर्दोष हैं, जो सम्पूर्ण गुणों का भंडार और साधुओं द्वारा वन्दनीय है, जिमने राग द्वेषादि अठारह शत्रुरूपी दोषोंको नष्ट करदिया है, और जिसकी शरण में सैकड़ों लोग आते हैं ऐसा कोई पुरुष विशेष या महान आत्मा है उसे मेरा नमस्कार हो; फिर चाहे वह शिव हो, ब्रह्मा हो, विष्णु हो, बुद्ध हो अथवा बर्द्धमान (महावीर) हो।
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