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१०, वर्ष २६, कि. १
अनेकान्त
सोमप्रभ भी इनमे थे। (प्रस्तुत नाटक की नायिका सुलो- माली, मन्थरक एवं मन्दर प्रादि तीनों विद्याधरों ने भगवान चना राजा प्रकम्पन की पुत्री थी। नायक जयकुमार ऋषभदेव के प्रति अपनी भक्तिभावना प्रकट की है । वस्तुत. महाराज सोमप्रभ का पुत्र था। ) जब भगवान् ऋषभ- यहां महाराज प्रकम्पन, प्रतिहार, कञ्चुकी पौर रत्नमाली देव ससार से विरक्त होकर प्ररहन्त अवस्था को प्राप्त प्रादि की दृष्टि स्वयं नाटककार की ही है । इस प्रकार, हए थे और उनके बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती गज्य सिंहासना. नाटककार ने ऋषभदेव के विविध रूपों की स्तुति करते रूढ़ थे तब सुलोचना का स्वयंवर हुमा । महाकवि हए उनके प्रति अपनी उत्कृष्ट भक्तिभावना प्रकट की है । हस्तिमल्ल ने विक्रान्तकौरव के मगलाचरण में आदि तीर्थ
उन प्रादि तीर्थंकर ऋषभदेव के चरणकमल समस्त कर भगवान् ऋषभदेव की वन्दना में इसी रूप में उनका
देवो के द्वारा पूज्य है।' वे तीनों ज्ञान के घारक है। स्मरण करके जगत् के कल्याण की कामना की है : "जिन
उन्होंने युग के प्रारम्भ मे अभिषेक कर, 'तुम राज्य करो' भगवान् ऋषभदेव ने पृथ्वी पर प्रसि, मसि प्रादि की वृत्ति
इस प्रकार जिन्हे प्रबोधित किया था, इसीलिए जो प्रकट की (कर्मभूमि के प्रारम्भ में कल्पवृक्षो के नष्ट होने
'कुरुराज' नाम से प्रसिद्ध हुए थे तथा जिन्होने प्रजा पर विद्या, कृषि प्रादि छह कर्मों का उपदेश देकर ग्राजी
मे कुशल-मगल की प्रवृत्ति की थी। भगवान् ऋषभदेव विका का माधन बतलाया ), जिनके पुत्र भरत लोक मे
ने पहले प्रमि, मषि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य इन सर्वश्रेष्ठ सम्राट् हुए हैं और इन्द्रो के मुकुटो की मणियों
छह वनियों को और अन्त में मोक्षपद के मार्ग को दिखा(कलगियो) से जिनके चरणकमलो की प्रारती उतारी गई
कर जिस युग को अन्धकार-रहित किया, वह युग कृतयुग थी, वे प्रथम जिनेन्द्र हर्षपूर्वक मदा भारी कल्याण करे" ।'
कहलाता है। प्रात्मशुद्धि के लिए लोग उनका स्मरण हरिवंश पुराण में भी ऋषभदेव के प्रति को गई स्तु
करते है।' अभिषेक, स्थापन, पूजन, शानि एव विसर्जन इन तियों में कहा गया है कि वे मति, श्रुति एव अवधि इन तीनों
५ प्रकार के उपचारो मे निपुण भव्य जीव जगत् के कल्याण सर्वोत्तम ज्ञान रूपी नेत्रों से सुशोभित है। भरतक्षेत्र में
के लिए उनकी पूजा करते है। उन परमेश्वर की पूजा उत्पन्न होकर उन्होने तीनो लोको को प्रकाशित कर
सब प्रकार से कल्याण करने वाली है एवं शुभदानी है। दिया।'
कैलास के शिखगे को पवित्र करने वाली एवं सावधान महाकवि हस्तिमल्ल उनके जगतपूज्य, जगत्कल्याण- गणधरो से युक्त भगवान ऋषभदेव की समवसरणाकर्ता, पापनाशक, दानादि के महात्म्य के प्रतिष्ठापक एव भूमि पापो का नाश करने वाली है।' युग के प्रारम्भ मोक्षदायी स्वरूप का पुन पुन म्मरण करते है । सपूर्ण मे जब लोग दानादि के माहात्म्य से अनभिज्ञ थे, तब नाटक मे काशीराज प्रक.म्पन, प्रतीहार चुकी और रत्न- ग्रादि तीर्थकर ने दानादि के माहात्म्य की प्रतिष्ठा की १. प्रसिमषिमुखा वृत्तियन क्षिती प्रकटीकृता,
कुरूराज इति प्रतीतनामा कुशलादानमवतंयत् प्रजानाम् ।। भरतमहिवस्सम्राडु यस्यात्मजो भुवनोत्तर ।
वही,३७१। सुरपम्कुटीकोटी नीगजिताघ्रिमरोरुह,
५. असिमषिकृषिविद्याशिल्पवाणिज्यवृत्तीः । प्रथमजिनपः श्रयो भूयो ददातु मुदा सदा ॥
शिवपदपदवीमायन्नतो दर्शयित्वा । वही, ४.१७ । - विक्रान्त कौरव, १-१.
६. वही, ५.१५।
७. पचोपचारचनुराः परमेश्वरस्य २. हरिवशपुराण, पृ. १२२, ८, १६६ ।
कुर्वति सर्वजगदभ्युदयाय पूजाम् । वही ६६ । ३. समस्तदेवाचितपादपकज पितामहश्चास्य पुनः पिता
८. हेमागद - सर्व शुभोद भगवदभ्यहणपुरःसरतया । ___मह विक्रान्त कौरव, ३ ५५ ।
चौखम्बा से प्रकाशित, वही, पृ २५२ । ४. अभिषिच्य युगोद्यमे विधाम्ना कुरूगज्य त्वमिति- ६. समवसरणभूमि पूनकैलाशमौलि प्रणिहितगणनाथा.
प्रबोधितो यः। पस्थिता भूतमर्तु ॥ वही, ४-१०६ ।