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अजमेरके शास्त्र-मएडारसे
पुराने साहित्यकी खोज
१.
__ (जुगलकिशोर मुख्तार, 'युगवीर' )
रिचय-पद्यका क्रमशः एक साथ दिये हैं और अजमेरवाले गुटकेमें पहले अन्यत्र दर्शन
दो पद्योंको देकर बीचमें दो पद्य अन्य दिये हैं और फिर
नं. ५ पर उक्त तृतीय पधं दिया है। बीचके दो पद्य समन्तस्वामी समन्तभद्रके प्रात्म-परिचय विषयक पहले दो
भद्रके श्रात्म-परिचयसे सम्बन्ध नहीं रखने । उनमेंसे एक तो ही पद्य मिलने थे-एक 'पूर्व पाटलिपुत्र-मध्यनगरे भेरी मया
समन्तभद्रकी स्तुतिको लिए हुए अकलंकदेवकी अष्टशतीका ताडिता' और दूसरा 'कांच्या नग्नाटकोऽह' । तीसरा पद्य
'श्रीवर्धमानमकलंकमनिन्द्यवंद्य' नामका पद्य है और दूसरा आजसे कोई बारह वर्ष पहले स्वयम्भूस्तोत्रकी प्राचीन
जिनेन्द्रकी स्तुतिको लिए हुए 'ये संस्तुता विविधभकप्रतियोंका अनुसन्धान करते समय मुझे दिल्ली पंचायतो
समन्तभद्रः' नामका पद्य है । मध्यके ये दोनों मन्दिरके एक अतिजीर्ण-शीर्ण गुटके परसे उपलब्ध हुआ था,
पद्य उक्र तृतीय श्लोकके अनन्तर लिखे जाने चाहिये जिसपर मैंने २ दिसम्बर सन् १६४४ को 'समन्तभद्रका एक
थे किन्तु लेखकादिकी किसी भलसे वे मध्यमें संकलित हो और परिचय पद्य' नामक लेख लिखकर उसे अनेकान्त
गये हैं। दो एक भलें इस तृतीय पद्यके लिखने में भी हुई हैं। के ७३ वर्षकी संयुक्त किरण ३-४में प्रकाशित किया था।
जैसे कि 'भिषगहमह' के स्थान पर भिषगमहमहं', 'मांत्रिका' उस पद्यस स्वामीजीक परिचय-विषयक दस विशेषण खास
के स्थान पर 'मंत्रिकाः' और 'मिद्धमारस्वतोह' की जगह तौरसे प्रकाश में आये थे और जो इस प्रकार हैं-आचार्य,
'सिद्धमारस्वतोयं' का लिम्वा जाना । ये सब अशुद्धियां साधा२ कवि, ३ वादिराट्, पण्डित(गमक), ५ दैवज्ञ (ज्योतिर्विद्),
रणतया लेखककी असावधानीका परिणाम जान पड़ती हैं और ६ भिषक् (वंद्य), ७ मान्त्रिक (मन्त्र विशेषज्ञ), तान्त्रिक
इसलिए इन्हें कोई विशेष महत्व नहीं दिया जा सकता(तंत्र विशेषज्ञ), ६ अाज्ञासिद्ध और १० सिद्धसारस्वत ।
दोनों प्रतियों में तीनों पद्य एक ही हैं। वह तृतीय पद्य इस प्रकार है:आचार्योऽहं कविरहमहं वादिराद पण्डितोऽहं
अन्तमें पाठकोंसे निवेदन है कि यदि उन्हें प्राचीन
गुटकों श्रादिका स्वाध्याय तथा अवलोकनादि करते दैवज्ञोऽहं भिषगहमहं मान्त्रिकस्तान्त्रिकोऽहम् ।
समय समन्तभद्रके श्रामपरिचय-विषयक उक्त तृतीय पद्य राजन्नस्यां जलधिवलयामेखलायामिलायामाज्ञासिद्धः किमिति बहुना सिद्धसारस्वतोऽहम् ।।
या इन तीनोंके अतिरिक्त अन्य कोई पद्य दृष्टिगोचर हो तो यह पद्य भी पूर्वतः उपलब्ध दो पद्योंकी तरह किसी '
वे उससे मुझे सूचित करनेकी जरूर कृपा करें। नगर-विशेषकी राजसभामें राजाको लक्ष्य करके कहा गया है। २. समन्तभद्रका भावी तीर्थकरत्व इस पद्यकी उपलब्धि अभी तक दिल्ली के उन शास्त्र-भंडारके माणिकचन्द-ग्रन्थमालामें प्रकाशित रत्नकरण्डश्रावकाअतिरिक्त अन्य कहींक भी भण्डार आदिसे नहीं हो रही थी। चारकी प्रस्तावनाक साथ स्वामी समन्तभद्का इतिहास लिखते अन्यत्र उसकी खोजके लिए मेरा प्रयत्न बराबर चालू था। समय मैंने 'भावी तीर्थकरत्व' नामक एक प्रकरण लिखा था हर्षकी बात है कि गत भादों मासमें अजमेरके बड़ाधड़ा और उसमें समन्तभद्रके भविष्यमै तीर्थकर होनेके सूचक पंचायती मन्दिरके शास्त्र-भण्डारका निरीक्षण करते हुए एक प्रमाणोंको संकलित किया था । उन प्रमाणों में एक प्राचीन प्राचीन गुटके परसे मुझे उक्त पद्यका दूसरी बार दर्शन हुअा गाथा भी निम्न प्रकारसे थी:है । यह गुटका वि० सं० १६०७के भाद्रपदमासकी सुदि अहहरी णवपडिहरि चक्किचउक्कं च एय बलभहो। नवमीको लिखा गया है और इसमें भी उन पद्य स्वयम्भः सेरिणय समन्तभद्दो तित्थायरा हुंति णियमेण ॥ स्तोत्रके अन्तमें दिया हुआ है। दोनों गुटकोंकी इस विषयमें गत भादों मासमें उपलब्ध हुए अजमेरके पंचायती मंदिरइतनी ही विशेषता है कि दिल्लीवाले गुटकेमें तीनों पद्य स्थित शारे भण्डारके एक गुटकेका निरीक्षण करते हुए हाल