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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
कहने का अभिप्राय यही है कि सत्य के अभाव में मनुष्य जीवन निस्सार और खोखला है । जब तक जीवन में सत्य का आविर्भाव नहीं होता, मनुष्य कार्यक्षेत्र अथवा धर्मक्षेत्र, किसी में भी सफलतापूर्वक कदम नहीं रख सकता । सामाजिक क्षेत्र में जिस प्रकार सत्यवादी पुरुष सर्वदा सम्मान, प्रतिष्ठा एवं प्रशंसा प्राप्त करता है, उसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी असत्य का त्याग करने पर अनेकानेक पापों से अपने जीवन को बचाता हुआ चलता है । असत्य भाषण का मूल कषाय होता है और जहाँ कषाय होता है वहाँ हिंसा, चोरी, कुशील तया परिग्रह रूप सभी दोष पाये जाते हैं। सत्य के पालन से ही इन सबसे बचा जा सकता है। इसीलिये विचारकों ने कहा- "सत्य ही जीवन है।" .
___ अब पुस्तक के चौथे कोने पर लिखी हुई बात सामने आती है। वहाँ लिखा था-'Conduct is life. अर्थात्-'आचरण अथवा चारित्र्य ही जीवन है।"
इस वाक्य में निहित रहस्य को हमें बड़ी गम्भीरतापूर्वक खोजना चाहिये। इससे तात्पर्य है कि मनुष्य के शरीर में जीवन कायम रखने के लिये रक्त हो, संसार की स्थिति को समझने के लिये ज्ञान हो और वह सत्य की महिमा को भी मानता हो किन्तु इनका उपयोग वह जीवन में करता हो तो उस ज्ञान और जानकारी से क्या लाभ उठाया जा सकता है ? ___आप एक हलवाई की दुकान पर जायें और दुकान में रखी हुई मिठाइयों के नाम, गुण और कीमत आदि का पूर्ण विवरण जान लें, किन्तु अगर उन पदार्थों को आप चखें ही नहीं तो उन समस्त मिष्ठान्न पात्रों की जानकारी आपके क्या काम आएगी ? कुछ भी नहीं। .. ___ इसी प्रकार अनेकानेक पोथियों को आपने कण्ठस्थ कर लिया, पाँचों महाव्रतों और बारह अणुव्रतों के महत्त्व को समझ लिया, धर्म के विभिन्न अंगों का भली-भांति ज्ञान कर लिया। किन्तु अगर उन सबको अपने आचरण में अर्थात् क्रिया में नहीं उतारा तो वह सब ज्ञान और जानकारी उसी प्रकार व्यर्थ जायेगी, जिस प्रकार सम्पूर्ण खाद्य पदार्थों के विषय में जानकारी करके भी उन्हें न खाने पर आपकी भूख ज्यों की त्यों बनी रहेगी। स्पष्ट है कि ज्ञान का क्रियात्मक रूप ही आचरण है और उसके अभाव में कोरा ज्ञान निरर्थक है ।
इस विषय में मेरे गुरु महाराज ने एक बार बताया था कि एक व्यक्ति उनके पास दीक्षा ग्रहण करने के इरादे से आया। बोला-"भगवन् ! मैं अब अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहता हूँ अतः कृपा करके मुझे दीक्षा दीजिये।" ___गुरुदेव ने उससे कहा-"भाई ! दीक्षा लेना चाहते हो यह तो बहुत अच्छी बात है, मैं इससे इन्कार नहीं करता किन्तु साधु बनने के पश्चात् पूर्णतया
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