Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेश: // 4 // अग्रेऽपि सिंहः पुनरेष पुष्करी सर्पः पुनः पक्षयुतो विशिष्यते / आम्रः परं मञ्जरितस्तथाऽभवत् महाबलः शक्तिवरेण नागडः // 7 // | नागडोऽपि ततो गत्वा समये बलवत्तरे / महिषासुररूपेण भद्रावली व्यनाशयत् // 8 // | बभूव तत्क्षणं सूर्य-मण्डलं मुत्कलं तदा / चन्द्रावल्यास्तथा तेन विहितं मानमद्दनम् / / 81 // | तस्या मातुर्बलं भग्नं क्षीरान्माद्यति पटुकः / चन्द्रावल्ल्यबला जाता नागडश्चन्द्रमग्रहीत् // 2 // ततो गत्वा हसंस्तस्या रोहिण्यास्तं समर्पयत् / तत्सङ्गात् हर्षिता सैव नागडो नीतवान् सुधाम् // 8 // | अमृतं पायितः शक्तः सजोऽभूदम्बडस्तदा / पृष्टसूर्येण वृत्तान्तं सर्वे तस्य न्यवेदयत् / / 84 // तुष्टः सूर्यो वरं दद्या-दहो अम्बडसत्ववान् / केनचिजीयसे नैव पुनर्विद्यां गृहाण भो // 8 // | एकेन्द्रजालिनी विद्या द्वितीयाऽऽकाशगामिनी / अम्बडाय ददौ विद्ये सूर्यो हि फलदो महान् // 86 // | शतशर्करवृक्षस्य फलं वाञ्छितदायकम् / आनाय्य नागडेनैत-दम्बडस्य समर्पयत् / 87 // ऋद्धिवृद्धिसुखं राज्यं प्रमाणं तत्फलस्य च / निगद्य नागडेनार्कात् स्वस्थाने तं व्यमोचयत् // 8 // // 4 //

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