Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेशः प्राह सा प्रथमा विद्यां गृह्णातु सिद्धिकारिणीम् / शृण्वत्र नगरस्वामी राजा विमलचन्द्रकः // 66 // तस्यास्ति विमला राज्ञी पुत्री वीरमती तयोः। केनचित्त्वमुपायेन पूर्व परिणयाशु ताम् / / 67 // उदहामि ततस्त्वां च प्रमाणमिति सोऽवदत् / विद्यां सिद्धिकरीं मह्य देहि तामप्यच्च सा // 6 // | तां विद्यामम्बडो नीत्वा दत्तां बोहित्थकन्यया / अत्याजयच्चस्रस्ताः छागीरूपं वशीकृताः // 6 // अम्बडस्य वचः कृत्वा प्रमाणं ताश्च सर्विकाः / वशीभूता गृहं जग्मु-रम्बडोऽगात्पुरान्तरम् // 170 // क्रीडार्थं वीक्ष्य गच्छन्तं हयारूढं चतुष्पथे। अजीचके नराधीशमम्बडो विद्यया तया // 71 // अम्बडोऽपि तथा कृत्वा स्वयं च जग्मिवान वने। को जानाति जनाकीर्णे राजमार्गे तथाविधे // 72 // तावता तुमुलो जातो नगरे तत्र सर्वतः / कटिरे कुटिलं कस्य बपुरे कौतुकं महत् // 73 // अजीभूतो भुवो भर्ता वार्ता सर्वत्र विस्तृता / किं कर्त्तव्यधियो लोका राजवर्गो विशेषतः // 7 // सर्वोऽपि लोको मिलितः सशोकः, सराजलोको हृदये सशङ्कः / तद्गोत्रिभीत्या नगरप्रतोलीं, दत्त्वा स्वसूत्रं कुरुते गृहस्य // 7 // // 53 //

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