Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ अम्बडचरित्रम् // 70 // श्री इत्युक्ते च तथाऽकार्षी-द्राजा यावदधोऽभवत् / दुष्टेन योगिना तावत् हत्वा क्षिप्तः स पावके // 60||||| द्वात्रिंशलक्षणो राजा सुवर्णपुरुषोऽभवत् / तं गृहीत्वा मठीमध्ये मुमोच मम सन्निधौ // 61 // आदेशः बी ततो विद्याप्रभावेण गुप्तमार्गेण यो मठीम् / चालयित्वा जलस्योवं रतिया पार्श्वतः स्थितः॥६२॥ समेतो मम भाग्येन पितुर्वैरमवालयत् / सनाथा नाथ ! चाभूवं तवापूर्ववलं महत् // 63 // अम्बडेन ततः पृष्टं वृत्तान्तस्तावकः श्रुतः / हे भद्रे ! मूलवृत्तान्तं कुण्डलस्यावगच्छसि // 64 // तदा रत्नवती प्राह ममैवागच्छतः पथि / योगिना कथितं काली-देवताराधिता मया // 65 // प्रसन्नीभूतमनसा ददौ मे स्वर्णकुण्डलम् / प्रभावोऽस्य कथितो यद् गगने यदि मुच्यते // 66 // चन्द्रवत् पृथ्वीपीठे तेजः सृजति सर्वतः / श्रुत्वेति सर्ववृत्तान्त-मम्बडोऽभूत् स्वरूपभाक् // 67 // दीप्तमम्बडवीरस्य रूपं दृष्ट्वा व्यचिन्तयत् / न सामान्यो महासत्वः कन्या तं प्रत्यभाषत // 68 // स्वामिन् ! त्वमेव मे भर्ता हर्ता मे सङ्कटस्य च / मां स्वीकुरु स्वयं देव ! यथा वलितवस्तुवत् // 6 // // 78 // गान्धर्वेण विवाहेन कन्यां रत्नवी मुदा / अम्बडः परिणिन्ये च सा पति प्रत्यवोचत // 70 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116