Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् // 10 // सान्निध्येन च योगिन्याः सिद्धिसाध्यविशेषतः / प्रसन्नो भूय वेतालो मत्पितुः कोशमर्पयत् // 37 // पिता तस्योपवेशाय चूडामणिनृपार्पितम् / ददौ सिंहासनं प्रीत्या प्रीतिरादानदानतः // 38 // सप्तम यतः ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति / भुङ्क्ते भोजयते चापि षड्विधं प्रीतिलक्षणम् // 36 // आदेश: पिता तस्मै ददौ भुक्त्यै द्वात्रिंशदिवसान बलीः / सन्तुष्टोऽजनि वेतालोऽवश्यं दानेन सर्वतः // 140 // k योगिनीवचनात् स्वर्ण-नरं कोशे मुमोच सः / तथैवामुद्रयत्कोशं सश्रीकं मत्पिता पुनः // 41 // एतच्च सकलं वृत्तं राजन् ! विक्रमसिंहकः / द्वात्रिंशन्मितमातृणां मुखेन ज्ञातमस्ति मे // 42 // / कालेऽगाद्योगिनी स्वर्गे प्रायः प्राणा विनस्वराः / अविनस्वरमेकं हि धर्मरूपं यशो वपुः // 43 // यतः-यशः शरीरं भुवने निवेश्य, स्वगं गताः पुण्यशरीरभाजः। तेषां महद्भूतमये शरीरे, गतेऽपि का हानिरहो प्रदिष्टा // 44 // जीवंतस्स इह जसो कित्ती मुयस्स परभवे धम्मो / सुगुणस्स य निगुणस्स य अयसो अकित्ती अहम्मो य // 4 // अतिक्राम्यति यं कालं विना गोरखयोगिनीम् / अमातृकमिवापत्यं मत्पिताऽभूदनाथवत् // 46 // // 12 // यस्याः प्रसादतो लक्ष्मी-रियती प्राप्तवान् पिता। सा कथं विस्मृतिं याति स्मारयेत्तद् गुणाश्च ताम् // 47 // KI

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