Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RELAWARE - श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-क्रमाङ्कः 120 // अहम् / / ॥श्री मणिबुद्ध्याणंदहर्षकर्पूरामृतसूरिभ्यो नमः / / पूज्यपादाचार्यप्रवर श्री-मुनिरत्नसूरीश्वरविरचितं // अम्बड-चरित्रम् // सम्पादक: संशोधकश्च तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेव श्री विजयकपूरसूरीश्वर पट्टधर-हालारदेशोद्धारक-पूज्याचार्यदेव श्रोविजयामृतसूरीश्वर-पट्टधरः पूज्याचार्यदेव श्रीविजयजिनेन्द्रसूरीश्वरः। सहायकः रासंगपुर (हालार) निवासी-शाह देवचन्द रायमल (नाइरोबी) सपरिवारः प्रकाशयित्री-श्री हर्षेपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) वीर सं० 2510 वि० सं० 2040 सने 1984 : प्रतयः 750 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ મ: મહેરા: पृष्ठम् કwiferश्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला રાણાવાવ-શાંતિપુરી (સૌરાષ્ટ્ર) muuuuumowuuwwwww લાભ લેનાર રાસંગપુરવાળા હાલ નાઈરોબી નિવાસી શાહ દેવચંદ રાયમલભાઇએ તેમના પૂજ્ય પિતાશ્રી રાયમલ સુરાભાઈ તથા પૂજ્ય માતુશ્રી ડેમતબેન તથા ધર્મપત્ની સ્વર્ગસ્થ શ્રી સંતકબેનના શ્રેય મરણાર્થે તેમના ધર્મપત્ની અ. સૌ. પાનીબેન તથા સુપુત્ર રતિલાલ, સૂર્યકાન્ત, સુરેશ, જીતેન્દ્ર, 6 પ્રવીણચંદ્ર તથા પુત્રવધૂઓ જયા, પ્રફુલા, પ્રફુલ્લા, નૂતન ? તથા સુપુત્રીએ સવિતાબેન તથા જ્યોતિબેન આદિ પરિવાર સહિત આ ગ્રંથ પ્રકાશિત કરાવી લાભ લીધેલ છે. પ્રથમ: द्वितीयः तृतीयः ચતુર્થ: sઝઃ મુત્ર :गौतम आर्ट प्रिन्टर्स नेहरू गेट बाहर થાવર (ાબ૦) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अल्प वक्तव्य मानव जन्मनी प्राप्तिनी सफलता धर्मथी छे. जे जीव धर्मवासित जीवन बनावे के तेनुआ जीवन तथा भावि जीवन उज्ज्वल बने छे. भलभला महारथीओ पण धर्म बिना पांगला छे. धर्म प्राप्त था ते साचा शूरवीर बने छे. अनेक विद्यादिनो मालिक अम्बड सम्पदानी सिद्धि प्राप्त करे छे छतां तेना जीवननी साची सिद्धि प्रभु महावीरदेव पासेथी धर्म प्राप्त थता मेलवे छे. तेनु अद्भुत जीवन आ श्री अम्बड चरित्रमा वर्णवायु छे. आ चरित्रनी रचना चन्द्र-पौणमिक गच्छीय श्री.समुद्रघोषसूरि म. ना शिष्य श्री मुनिरत्नमू. म. ए करी छे. आ चरित्रने वीर कथा पण नाम आप्युछे. चरित्रना बीजा श्लोकमा बत्रीशपुत्रिकानी उत्पत्ति साथे जणावी छे अने अंतिम श्लोकमां 'द्वात्रिंशन्मितपुत्रिकादि चरितं यद् गद्येनपद्येन तत्' एम जणाव्यु के तेमज अम्बड तेनी बत्रीश स्त्रीओनु वर्णन के पण पुत्रीओनी कथा नथी तेथी अम्बडनी स्त्रीओ एजे व्यंतरी बनेली सिंहासन उपर बेसे छे ते वत्रीशपुत्रिकानी कथा छ अथवा स्वतन्त्र रचना सम्भवे छे. अम्बड चरित्रमा 7 आदेश छे. ____ अम्बड चरित्रकर्ता श्री मुनिरत्नसू . छे. तेमणे अममस्वामी चरित्र सं०१२२५मां रच्यु छे. तेमज श्रीमुनिसुव्रत चरित्र पण रच्युछे. तेमणे उज्जयिनीना राजा नरवर्मा राजानी सभामा विद्याशिव वादीने हराव्यो हतो बालकवि जगदेव मन्त्रीनी विनंतिथी उपरोक्त अममचरित्र रच्युछे. नरवर्मा राजाए श्री समुद्रघोषसू. तथा श्री जिनवल्लभसू. ने सन्मान आप्यु हतु अने ११६१ना लेख मले छे. सं० 1160 अंते स्वर्गवास पामेल छे. ग्रन्थकार श्री मुनिरत्नसू. तेनी सभामा विजय वरेला अने १२२५मा अममचरित्र रच्युछे एटले ते तेमनो सत्ता समय गणाय. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ चरित्र उपरथी उपकेश गच्छीय सिद्धसू. हर्षसमुद्रसू. शिष्य श्री विनयसमुद्रे सं०१५मां अंबड चोपाइ, सं. १६३६मा आगमगच्छीय श्री मंगलमाणिके अम्बड कथानक चोपाइ तथा सं० १८००मां श्री भाव उपाध्याये अम्बड रास रच्या छे. आ चरित्र सं० १९७७मा श्री आत्मानन्द जैन सभा अम्बाला तरफथी पूर्व प्रगट थयु हतुं. प्राचीन साहित्य प्रकाशन योजनामा लाभ लेवानी सुश्रावक देवचन्द रायमल सपरिवारने नाईरोबीथी भावना थइ ते अनुमोदनीय छे. हजारो ग्रन्थोनु पुनः प्रकाशन जरुरी छे ते माटे आवी भावना सौ भाविकोने जागे तो कठिन काय पण सरल बनी जाय. सं० 2040 जेठ वद 5 सोमवार -जिनेन्द्रसूरि जैन उपाश्रय, ओसवाल कोलोनी, जामनगर ॥शुद्धिपत्रकम् // पृष्ठं पंक्तिः अशुद्ध शुद्धम् | पृष्ठं पंक्तिः प्रशुद्धम् शुद्धम् ऽग 25 12 तन्त्रयम् / तत्त्रयम् जनन्या जनन्या च 253 क्रियमणे क्रियमाणे क्वचि क्वचिद् 0 स्यैष स्यैषा 128 कैसासेऽपि कैलासेऽपि आसन्नं आसनं चमचके चमच्चके / विधरिह विधिरिह ऽगात् سه هے Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // कविकुलकिरीट पू. आ. श्रीविजयलब्धिसूरीश्वरगुरुभ्यो नमः पूज्यपादाचार्य प्रवर श्री मुनिरत्नसूरीश्वरविरचितं // अम्बड-चरित्रम् // - - धर्मात् सम्पद्यते लक्ष्मीः धर्मादूपमनिन्दितम् / धर्मात् सौभाग्यदीर्घायुः धर्मात्सर्वं समीहितम् // 1 // धर्मस्योपरि सम्बन्धः क्षत्रियस्याम्बडस्य च / द्वात्रिंशत्पुत्रिकोत्पत्ति-विनोदाय वितन्यते // 2 // जम्बूद्रीपेत्र भरते, क्षेत्रे श्रीवासपुर्यपि / तत्र विक्रमसिंहो राट्, सिंहवत् यस्य विक्रमः // 3 // सभायामन्यदा राज्ञः, समासीनोऽस्ति भूपतिः। पुमानेकः समायातः, प्रणम्योवाच साञ्जलिः॥४॥ शृणोतु कौतुकं राजन् , श्रोतव्यं सदृशं भवेत् / एका गोरखयोगिन्याः वर्तते ध्यानकुण्डिका // 5 // 8 गोरक्ष Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 2 // अधस्तस्या महानेको, भाण्डारो भवति श्रियाः / अनेकविधमाणिक्यः रत्नहैमसमन्वितः // 6 // नृपः पप्रच्छ तं कोशमगम्यं चर्मचक्षुषाम् / कथं त्वमेव जानासि योऽभवत् ज्ञानगोचरः॥७॥ परं कथय भोः कस्त्वं ? किनामा कस्य नन्दनः / कुतः स्थानात् समायातः, सर्व निगद मूलतः // 8 // उवाच स च साश्चर्यं राजन् विज्ञपयाम्यहम् / दृष्टप्रत्यक्षभाण्डार-स्तस्यादिः श्रूयतामिति // 6 // स्वामिन् रथपुरादेतो भवदर्शनहेतवे / अहं कुरुबको नाम्ना मत्पिता क्षत्रियोऽम्बडः // 10 // आजन्म निर्द्धनः सोऽपि धनार्थी भुवि सर्वतः / मन्त्रतन्त्रौषधी धातु-धमनं कुरुते भ्रमन् // 11 // न प्राप्नोति परं कुत्र लवलेशमपि श्रियाः। वेत्ति जीवो विना भाग्यं नैव लाभोदयः क्वचित् // 12 // || यतः–नहि भाग्यं विना लक्ष्मीविद्या नाऽभ्यसनं विना / न सन्तोषात्परं सौख्यं मुक्तिर्नोपशमं विना // 13 // अम्बडो गुणवानस्ति चातुर्येण गुणैरपि / लक्ष्मीवान श्लाध्यते लोके गुणविद्याधिका श्रियः // 14 // यतः-अर्थसञ्चयकर्तृणि भाग्यानि पृथगेव हि / गुणाः खलु एव न गुणा भूतिहेतवः // 15 // "मूरखडा टपावइटार पंडितडा पालाई पुलाई / तूझकूटु किरतार गोटीलेपरीअटतणे ? // 16 // // 2 // Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् बुभुक्षिाकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते / न छंदसा केनचिदुद्भुत कुलं, हिरण्यमेवाजय निष्फलाः कलाः // 17 // वयोवृद्धास्तपोवृद्धाः ये च वृद्धा बहुश्रुताः / सर्वे ते धनवृद्धस्य द्वारे तिष्ठन्ति किङ्कराः॥१८॥ कषांचिनिजवेश्मनि स्थितवतामालस्यवश्यात्मनां / दृश्यन्ते फलिता लता इव फलैरामूलचूलं श्रियः॥ अन्येषां व्यवसायसाहसवतां क्षोणीतले गच्छता मब्धि लङ्घयतां खनी खनयतां तं नास्ति यभुज्यते // 11 // इत्थं सर्वत्र भूपीठे धनार्थी सोद्यमो भ्रमन् / ययौ धनगिरौ शैले यत्र गोरख(गोरक्ष)योगिनी // 20 // मातृवत् वीक्ष्य तां नत्वा तदने समुपाविशत् / सुविनीतस्तया ज्ञात्वा पुत्रवत् सोऽपि जल्पितः // 21 // कस्त्वं किमर्थमायातः, किं नामेति निशम्य च / सोऽवक रथपुरायातो निःस्वोऽहमम्बडः श्रिये // 22 // मातृमातदरिद्रोऽस्मि धनार्थी क्षत्रियान्वयः / वाञ्छितं त्वयि दृष्टायां त्वन्मनो मयि वत्सलः // 23 // यतः-विरला जानन्ति गुणान् विरला पालंति निद्धणा नेहा / विरला परकजकरा परदुःखे दुखीआ विरला // 24 // // 3 // Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 4 // जगाद योगिनी भव्य-शकुनेन समागतः / त्वं भविष्यसि लक्ष्मीवान् सप्तादेशान्विधेहि मे // 25 // अम्बडः प्राह हे मात-रादेशं दिश मेऽधुना / तयोक्तं भो विना सत्त्वं कृतं कायें न सिद्धयति॥२६॥ K यतः साहसीआ लच्छी हवइ, नह कायरपरिसाण / काने कुण्डल रयणमय, कजलपुण नयणाण // 1 // सीह न जोइं चंदवल, नवि जोइ घणऋद्धि / एकलडो बहुआं भिडई जिहां साहस तिहां सिद्धि // 2 // .. एकाग्रमनसः सिद्धिः तवास्ति यदि साहसम् / तदा कुरु ममादेशं प्रसन्नमानसोऽवदत् // 27 // उवाच योगिनी तत्र दृष्ट्वा साहसिकं तकम् / शृणु भो दिशि पूर्वस्यां गुणवर्द्धनवाटिका // 28 // तस्यां विविधवृक्षायां वृक्षोऽस्ति शतशर्करः। समानय फलं तस्य तथेत्यानम्य सोऽचलत् // 26 // गच्छतः पथि तस्यागात् कमण्डलुपुरं पुरम् / तस्मिन् सरोवरे प्राप्ते-श्वाम्बडः पश्यतीदृशम् // 30 // वहमाना जलं कुम्भैः नरा नार्य इवानिशम् / अश्वारूढा स्त्रियो यत्र पुरुषा इव कौतुकम् // 31 // विपरीतमिति प्रेक्ष्य नरं कमपि पृष्टवान् / अहो स्वरूपमेतस्य पुरस्य दृश्यतेऽसमम् // 32 // स्त्रीणां कार्य नराः कुर्यः पुरुषाणां स्त्रियः पुनः / तेनोक्तं तिष्ठ मौनेन स्त्रियः श्रोष्यन्ति साम्प्रतम् // 33 // // 4 // Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः अनीदृशं करिष्यन्ति तस्य न स्यात्प्रतिकिया। अहो विलोक्यते कालो मौनं सर्वार्थसाधनम् // 34 // यतः-मुश्च 2 पतत्येको मा मुश्च पतितं द्वयम् / तावुभौ पतितौ दृष्ट्वा मौनं सर्वार्थसाधनम् // 35 // अम्बडः प्राह निःशङ्क स्त्रियः प्रकृतिकातराः। अहो तासां किमातङ्कः कि करिष्यन्ति सत्त्विनाम् // 36 // अन्योऽभाषत हे पान्थ समायातोऽसि यद्यपि / स्वयं ज्ञास्यसि द्रम्माणां भेदयिष्यन्ति गौरिव // 37 // k एवं तेन कथां कुर्वन् पश्यत्येकां स्त्रियं पथि। व्रजन्ती राजचिह्नश्च गाढं तां वीक्ष्य विस्मितः // 38 // यतः-दीसह विविहचरीअं जाणिजइ सजणदुजणविसेसो / अप्पाणं च कलिजइ हीडीजिइ तेण पुहवीए // 36 // वर्णिनी तुरगारूढा वर्ण्यमाना च बन्दिभिः / छत्रचामरसंयुक्ता स्वामिन्येषा पुरस्य किम् ? // 40 // जलपुट्रलकं बद्ध्वा शीर्षे कृत्वा वजन्त्यपि / काचित् वृद्धा तदा ज्ञात्वा तं विस्मितमजल्पयत् // 41 // अरे वैदेशिकागच्छ नरं किं पृच्छसि स्फुटम् / समेहि मामके गेहे यत्सर्वं कथयाम्यहम् // 42 // तदाम्बडो भयभ्रान्तो धृत्वा सत्त्वं तया समम् / गतोऽपश्यत्तदावासं सुरावासमिवोन्नतम् // 43 // एका स्त्री मण्डपे तस्य सुरूपा नवयौवना / सूयबिम्बचन्द्रबिम्ब-राहुमङ्गलनामभिः // 44 // X कुर्वन्ती कन्दुकैः क्रीडां दृष्ट्वा सोऽपि चमत्कृतः। तदा जानन महाश्चर्य यावतिं प्रष्टुमिच्छति // 15 // // 5 // Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम आदेशः वृद्धया जल्पितस्ताव-दहो अम्बडनामकः / भवान् गोरखयोगिन्या प्रेषितो ज्ञातमस्ति मे // 46 // अम्बड शतशर्करवृक्षस्य फलग्रहणाय गच्छसि / न लभेथाः फलं यावत् तावत् क्रीडितुमर्हसि // 47 // चरित्रम् एषा चन्दावली पुत्री मद या रमते मुदा / जाने निःस्वस्य का क्रीडा रमस्व सममेतया // 48 // & प्रमाणमिति यो रन्तु-मासीनो जल्पितस्तया। रमिष्यसे मया सार्द्ध-मेतैः सूर्यादिकन्दुकैः // 4 // यस्यैवं रममाणस्य हस्तादेः कोऽपि कन्दुकः। पतिष्यति यदा भूमौ तदा तेनैव हारितम् // 50 // करोति हारको जेतुः पादसेवां सुनिश्चितम् / प्रतिज्ञामिति कृत्वा म कथयामास तां प्रति // 51 // त्वं दास्यसि यदा दाणं रमिष्येऽहं त्वया सह / प्रमाणमिति कृत्वाऽसौ तत्र रन्तु प्रवर्तितौ // 52 // चन्द्रावली च भेदज्ञा यदा भास्करकन्दुकम् / उल्लालयेत् तदा घस्रः स्यान्निशाचन्द्रकन्दुकात् // 53 // उल्लालितौ यदा राहुः मङ्गलौ कन्दुको ततः। अन्तरे प्राप्स्यतः स्थैर्य-मेतस्याः शक्तिरद्भुता // 54 // अम्बडो वीक्ष्य साश्चर्यं तया दत्तैकदाणकः / करे विलोकते यावत् गृहीतं सूर्यकन्दुकम् // 55 // | गतचेष्टो भवेत्तावत् किरणैराकुलस्तदा / उल्लालितो रवियोग्नि प्राप्तमूर्छाम्बडान्वितः // 56 // Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः मृतप्रायोऽम्बडः सूर्य-मण्डले व्योम्नि तस्थुषि / तदा प्रमुदिता रात्रि-चन्द्रवत् सूर्यलाञ्छनात् // 57 // उपसूर्य तदोपेतो नागडः सारथिःर्दुतम् / दिष्टयाद्य वीक्षितः स्वामी चिरं यः परवानभूत् // 5 // भव्येन वीक्षितु लग्नः काष्यँ कि रविमण्डले / पश्येद्यदन्तरे कोऽपि पुमान मूर्छाङ्गतो हहा ! // 51 सुधामहं समानीय कृपया जीवयाम्यमुम् / दधावे नागडः शीघ्र सो ययौ चन्द्रमण्डले // 60 // न पश्येत्तत्र राजान-ममानं दधती शुचम् / पृष्टवान् भ्रातृजायां स कथं रोदिषि रोहिणी // 61 // गतः कुत्र मम भ्राता चन्द्रमा तव वल्लभः / रुदन्ती प्राह सा गाढं बाढं भूम्यां स पीडयते // 62 // चन्द्रावल्ल्या गृह सोऽस्ति शृणु देवर नागड। अमुल्यां मुद्रिकास्थाने दासीयं रक्षतीदृशम् // 63 // K अगुल्या पीडयन्नित्यं गाढसङ्घट्टनेन तम् / पृथक् मुञ्चति रात्रौ सा भर्ता मे पीड्यतेऽन्यथा // 6 // भतु दुःखं प्रिया वेत्ति तेन रोदीमि नागड ! / गृह्णामि तव दुःखानि तस्य कष्टं निवारय // 65 // भर्तारं मे समानीय हे देवर समर्पय / नागडः प्राह हे भदे ! मा रोदीः सुस्थिता भव // 66 // त्वरितं तव भद्रं मेलयिष्यामि रोहिणि / नागडः कथयित्वेति ययौ चन्द्रावलीगृहम् // 6 // Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 8 // यावद् गृहसमीपेऽग तावता ददृशेऽनया / नागपाशेन बद्धोऽसौ हाहाकारोऽभवत्तदा // 8 // || चन्द्रावल्या जनन्या भदावल्या विहस्य यत् / जल्पितं रे कृतं भव्यं मुखमर्कटिका ददे॥६॥ तदा कोलाहले जाते दधावे नागडस्वसा / अपश्यद् भ्रातरं बद्धं या सर्पदुष्टशृङ्खला // 7 // क्षिप्रं तीक्ष्णक्षुरप्रेण छित्त्वा तं नागपाशकम् / सोदरं मुत्कलं चक्रे भगिनी भ्रातृमोहिता // 71 // बद्धोऽपि छुट्टितः सिंहो नागडो मुत्कलोऽभवत् / ततश्च कोपसाटोपं सर्पवत्कृतफूत्कृतिः // 72 // कथयित्वेति रे दासि ! त्वं मां हससि यन्त्रितम् / अधावत् दन्तपेषेण दुष्टभदावली प्रति // 73 // भद्रावल्या कृतं शक्त्या सूर्यमण्डलपीडनम् / सूर्येण सभयं ज्ञातं सा नागडेन रोषिता // 7 // सुतः किरणवेगोऽपि प्रेषितो नागडं वद / विरोधो नैव कर्तव्यो एतया शक्तिरूपया // 7 // यतः-अनुचितकर्मारम्भः स्वजनविरोधो बलीयसी स्पर्द्धा / प्रमदाजनविश्वासो मृत्युद्वाराणि चत्वारि // 76 // अत्रागत्य भवान् शीघ्र-माराधयतु नागड। शक्ति कुण्डलिनी विद्यां यत्कायं तव सिद्धयति // 7 // ततः पश्चात् समागत्य नागडोऽसाधयच्च ताम् / शक्तिरूपो वरो दत्तः तया देव्याऽस्य तुष्टया // 7 // | // 8 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेश: // 4 // अग्रेऽपि सिंहः पुनरेष पुष्करी सर्पः पुनः पक्षयुतो विशिष्यते / आम्रः परं मञ्जरितस्तथाऽभवत् महाबलः शक्तिवरेण नागडः // 7 // | नागडोऽपि ततो गत्वा समये बलवत्तरे / महिषासुररूपेण भद्रावली व्यनाशयत् // 8 // | बभूव तत्क्षणं सूर्य-मण्डलं मुत्कलं तदा / चन्द्रावल्यास्तथा तेन विहितं मानमद्दनम् / / 81 // | तस्या मातुर्बलं भग्नं क्षीरान्माद्यति पटुकः / चन्द्रावल्ल्यबला जाता नागडश्चन्द्रमग्रहीत् // 2 // ततो गत्वा हसंस्तस्या रोहिण्यास्तं समर्पयत् / तत्सङ्गात् हर्षिता सैव नागडो नीतवान् सुधाम् // 8 // | अमृतं पायितः शक्तः सजोऽभूदम्बडस्तदा / पृष्टसूर्येण वृत्तान्तं सर्वे तस्य न्यवेदयत् / / 84 // तुष्टः सूर्यो वरं दद्या-दहो अम्बडसत्ववान् / केनचिजीयसे नैव पुनर्विद्यां गृहाण भो // 8 // | एकेन्द्रजालिनी विद्या द्वितीयाऽऽकाशगामिनी / अम्बडाय ददौ विद्ये सूर्यो हि फलदो महान् // 86 // | शतशर्करवृक्षस्य फलं वाञ्छितदायकम् / आनाय्य नागडेनैत-दम्बडस्य समर्पयत् / 87 // ऋद्धिवृद्धिसुखं राज्यं प्रमाणं तत्फलस्य च / निगद्य नागडेनार्कात् स्वस्थाने तं व्यमोचयत् // 8 // // 4 // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चरित्रम् प्रथम आदेशः // 10 // N | साधयित्वेति ते विद्य इन्द्रजालस्य विद्यया। अम्बडः शिवरूपेण चन्द्रावल्या गृहेऽगमत् // 8 // आपतन्तं शिवं ज्ञात्वा यथारूपं वृषध्वजम् / चन्द्रावली तमभ्येत्य नत्वेति स्तुतिमातनोत् // 10 // वं रुद्रस्त्वं शिवः स्वामी स्वमीशो वृषभध्वजः। पार्वतीरमणो देवः ! सुखं देहि महेश्वर ! // 11 // ममाद्य सफलं जन्म ममाद्य पावनं गृहम् / इति भक्तिवत्रः प्रोच्याऽनमत् चन्द्रावली शिवम् // 12 // तावता रोदितु लग्नो रोदसीपुरमीश्वरः / उवाच चकिता चन्द्रा स्वामिन् ? किं तव रोदनम् // 13 // त्वं हर्ता विश्वकर्ता त्वं त्वमेव परमेश्वरः / तव दुःखं कृतं केन मर्तुमिच्छुः स एव कः // 14 // शिवः प्राह स कोऽप्यस्ति यो मे दुःखकरो जने / अवक् चन्द्रावली देवं कथं रोदिषि सोऽवदत् // 15 // शृणु चन्द्रावलि ! प्राण-प्रिया मे पार्वती मृता। तस्मादोदिमि यत्पत्नी-दुःखं जानाति राघवः // 16 // मा कृथाः दुःखमीदृशं मादृशं कार्यमादिशः। हरः प्राह ममैव त्वं कलत्रं भव शाम्भवी // 17 // शिवस्य वचनं श्रुत्वा साऽह देवाऽस्मि मानवी / अपवित्रा भवद्योग्या कथं भव ! भवाम्यहम् // 18 // यूयं देवा श्रहं नारी पूतापूतकुयोगता / बलीव॰ष्ट्रयोाय-स्ताहक सङ्गम भावयोः // 11 // // 10 // Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 11 // हरः प्रोवाच हे भद्रे ! योग्याऽसि भवती मम / भवतु मे भवानीव दास्यामि तव कामितम् // 10 // परं त्वं दृश्यसे भक्ता तदा मे वचनं कुरु / चन्द्रावल्या ततो मेने प्रमाणं हरभाषितम् // 1 // स प्राह ते विवाहाय कैलासे गम्यते तदा / संस्कारा यदि मुच्यन्ते मानवीयास्त्वया पुरा // 2 // जगौ चन्द्रावली देव ! समादिशतु सोऽवदत् / कर्त्तव्यं वपनं मूनि मुखं कज्जलय स्वयम् // 3 // शटितात्रुटितन्येवं वस्त्राणि परिधेहि च / बधा न(ते)पादयोर्लोह-शृङ्खलां खलु वर्णिनि ! // 4 // कुरुष्व राप्तभारोह मोहं मयि दधासि चेत् / इत्थं कृत्वा सुखं भुक्ष्व सुलभं दुर्लभाद् भवेत् // 5 // // ईश्वरो लभ्यते भर्ता मृत्तमातृकया मया। चिन्तयित्वेति सोत्कण्ठं चन्द्रावल्या तथा कृतम् // 6 // | कन्या कुत्सितवेषेण क्षिप्यते वर्ण के जने। विवाहे वरवेलायां तद् पं सुभगं भवेत् // 7 // क्षणमात्रं क्वचिद् गत्वा मध्याह्न पुनरागमत् / ईश्वरो वृषभारूढ श्राकाशे सुप्रकाशके // 8 // | चन्द्रावल्या महेशस्य विवाहे मिलिता जनाः। पश्यन्ति तत्र सयोगं वर्णयन्ति परस्परम् // 6 // धन्या चन्द्रावली कन्या शिवस्थाङ्गिभोगिनी। पार्वतीस्थानके जाता कैलाप्तगिरिवासिनी // 110 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 12 // | स्वयंवरसमायातो वरः कैलासनायकः / इति लोकवचः श्रुत्वा यावदूवं विलोकयेत् // 11 // तस्या मुण्डितशीर्षाया अधस्थायास्तदा शिवः / त्रिवारं घातयेन्मूनि नभस्थो वृषभक्रमः॥१२॥ दृष्ट्वा हसन्ति ते लोकाः कौतुकाकुलचेतसः। चन्द्रावली ललज्जे सा चन्द्रिता चन्द्रमौलिना // 13 // | प्राह चन्द्रावली स्वामिन् ! किं त्रपाकारि मण्डितम् / न नावसरः सोऽपि तथा हन्ति पुनः पुनः।।१४॥ | तदा सा रोदितु लग्ना नारीणां रोदनं बलम् / रोदं रोदमभिव्योम व्योमकेशं न पश्यति // 15 // अपश्यन्ती महादेवं विलक्षा भाविनं वरम्। सा मार्जारीव चकिता पतिता शिककादिह // 16 // तादृशं हसितं लोकः अदृष्टे वृषभध्वजे / श्रभूचन्द्रावली क्षिप्र-मूनि लिङ्गाङ्गभागिनी // 17 // कैसासेऽपि कदा यातो वराकी केन वञ्चिता। वारं 2 हसन्तो हि स्वस्वस्थानं गता जनाः॥१८॥ कृकलासी पणिकायां पतिता मूढचेतना। धूर्तेन धर्षिता बाटं दर्शयेत् किं मुखं निजम् // 11 // गतं दुग्धं गता मूषी किं मार्जारि निरीक्षसे / अगाद् गृही पयो लात्वा मूषिका दरमाविशत् // 120 // धूर्तस्य मिलितो धूर्तश्चन्द्रिका तेन चन्द्रिता / मौनेन विस्मिता तस्थौ समेतस्तावदम्बडः // 21 // | // 12 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 13 // ऊर्च चन्द्रावली ! स्पष्टं पश्यतु त्यजतु त्रपाम् / क्रीडायै वारको देयो जितं सूर्यस्य मण्डलम् // 22 // इत्यम्बडेन जल्पन्त्या तेन ज्ञापितवृत्तया। तयोपलक्षितः प्रोचे रे रे गर्दभ ! किं कृतम् ? // 23 // रे निष्ठुर ! कथं लोक-समक्षं च विगोपिता। त्वदीयं चेष्टितं सर्वं श्रुत्वा तत्सोऽम्बडोब्रवीत् // 24 // विरूपं चण्डि ! मावादीः स्मारय स्वकृतं पुरा। अहमुल्लालितस्तच्च, विस्मृतं सूर्यमध्यगः // 25 // रे मूढ ! त्वं न जानासि, करिष्ये नूतनं पुनः / तव रूपव्रतस्यैव-मिदमुद्यापनं हि यत् // 26 // अरे अजल्पिता तिष्ठ समुत्तिष्ठ रमस्व किम् ? / आसीना सभयं रन्तु पुनस्तेन समं तथा // 27 // सूर्यस्य वरसान्निध्या-दम्बडेन जितं तदा / चन्द्रया हारितं देवा-त्सेवां मे कुरु सोऽवदत् // 28 // सैवं प्रोवाच हे देव ! चरणौ शरणं तव / मां वृणीष्व तथा सोऽपि व तां लोकसाक्षितः॥२१॥ परिणीय स तां पश्चात् पप्रच्छ नगरस्य च / स्वरूपं विपरीतं तत् साऽवदच्छणु वल्लभ ! // 30 // इदं शक्तिमयं शक्तिः स्थापितं पुरमीदृशम् / अम्बडः प्राह हे कान्ते ! को विद्यानुभवस्तव // 31 // K उवाच सैवमाकाश-गामिनी चित्तकामिनी / आकर्षणी पुनस्तुर्या विद्यारूपविपर्यया // 32 // // 13 // Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् द्वितीय आदेशः एता विद्याचतस्रोऽहं जानामि कामितप्रदा। त्वदीयं नाथ ! सर्वस्वं तवास्मि वशवर्तिनी // 33 // तत्र स्थित्वा कियत्कालं चन्द्रावल्या समन्वितः। गृहीत्वा स्वर्णरत्नादि स्वस्थानं सोऽम्बडोऽगमत् // 34 // मी अग्रे गोरखयोगिन्याः फलं मुक्त्वा ननाम ताम् / तया प्रसादितः सोऽपि स्वपुरे सुखमन्वभूत् // 35 / / // इति श्री अम्बडकथानके गोरखयोगिनीदत्तप्रथमादेशः सम्पूर्णः // ॥अथ द्वितीयादेशः॥ कियत्यपि गते काले गोरक्षाभिधयोगिनीम् / नत्वा द्वितीयमादेशं ययाचेऽम्बडसाहसी // 1 // साऽऽचख्यौ दक्षिणस्यां हि दिशि मध्ये महार्णवम् / हरिवन्धाभिधद्वीपे योगी कमलकाञ्चनः // 2 // आनयान्धारिकां तस्य नीत्वाऽऽदेशं नमोऽध्वना। तद्वीपस्य समीपेऽगात् अम्बडः पश्यति स्म तम् // 3 // प्राकारकपिशीर्षाली प्रतोलीदारराजितम् / अनेकभवनोत्तङ्ग विपणिश्रेणिशोभितम् // 4 // तं दृष्ट्वाऽचिन्तयत् सोऽपि योगिनः स्थानकं कथम् / लभ्यते कार्यसिद्धयर्थं तदुद्याने गतोऽम्बडः // 5 // // 14 // Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् गोरखयोगिनिवचनविशेषि गढमढमंदिर सुदर देखी। द्वितीय योगी थानक लही सइ किम गिउवन भीतरि चीतइ ईम // 6 // आदेशः तत्रैकः कोऽपि पुरुषः संमुखस्तेन जल्पितः / अहो अम्बड ! भूयोभि-दिनैस्त्वं कथमागतः // 7 // अम्बडो विस्मयं पाप किं कार्य ते मया समम् / तमर्थं वेत्ति तेनोक्तं योगी कमलकाञ्चनः // 8 // क्षणमात्रं भयभ्रान्तस्तच्छ त्वा धृतसाहसः / कृत्वा रूपं महत् सोऽपि गतवानुपयोगिनम् // 1 // तावदन्धारिका लग्ना रोदितुगाढमेव च / कथितं योगिनाऽन्धारि ! कथं रोदिषि साऽवदत् // 10 // पश्य धूर्तः पुमानेष मां गृहीतु समागतः / तेन रोदिमि सोऽवादीत् को गृह्णाति सतो मम // 11 // | न ग्रहीष्यति कोऽपि त्वां मा रोदीरिति सोम्बडः / स्वरूपं तादृशं दृष्ट्वा स्वचेतसि चमत्कृतः // 12 // ___ यतः-भवितव्यं भवत्येव नालिकेरफलाम्बुवत् / गच्छत्येव हि गन्तव्यं गजभुक्तकपित्थवत् // 13 // I XI इत्थं ज्ञात्वा स्थितः सोऽपि योगिना जल्पितोऽम्बडः। श्रीमद्गोरखयोगिन्या प्रेषितोऽसि वरं भवेत् // 14 // K एवं कुशलिनी सा स्यात् प्रसादात् तव साम्प्रतम् / सेवकेन समं तेन वल्लार्थ प्रेषितोऽम्बडः // 15 // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 16 // | अम्बडस्तद्गृहे यातस्तावत्ते तस्य योगिनः / कागी नागी कलत्रे द्वे तमायातं जजल्पतुः // 16 // अम्बड| हे अम्बड ! समेहि त्वमस्मदीया स्वसा च या। तस्या गोरखयोगिन्याः कुशल वर्त्तते सदा // 1 // / / द्वितीय चरित्रम् आदेशः | तेनोक्तं सुखिनी सा स्यात् भव्यभावात्ततस्तया। भोजनं कारितः सोऽपि रसवत्या विशेषतः॥१८॥ | | मुग्धत्वादम्बडो यावद्भुक्त्वा तत्र समुत्थितः / तावता कुर्कुटो जातो भ्राम्यतीतस्ततोऽङ्गणे // 11 // / | भूत्वा मार्जाररूपेण ते दे भापयतो मुहुः। इत्थं खेदयतो नित्यं ताभ्यां विडम्बितोऽम्बडः // 20 // एवं कदर्यमानं तं दृष्ट्वा योगी जगौ हसन् / पचारयन् त्वयान्धारी ग्रहीता कुर्कुटाम्बड ! // 21 // / वचःशस्त्रेण तेषां स पीड्यते सर्वदाऽन्यदा। योगिना कथितं कान्ते ! वराकः क्वापि मुच्यताम् // 22 // | ताभ्यां मार्जाररूपेण दन्तैर्नीत्वा ततो वने। कम्पमानः क्वचिन्मुक्तः स्वार्थं कृत्वा च ते गते // 23 // हसन्ति योगियोगिन्यौ नायाति पुनरम्बडः। अन्धारिके ! सुखं तिष्ठ सोऽपि भव्यो विगोपितः॥२४॥ | कुर्कुटः कालवदनः कालं नयति कानने / अशक्तः सोऽपि किं कुर्या-जीवन भद्राणि पश्यति // 25 // यतः-अशक्तः कुरुते कोपं निर्धनो मानमिच्छति / अगुणी च गुणद्वेषो पृथिव्यां लकुटत्रयम् // 26 // | // 16 // Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् द्वितीय आदेशः // 17 // अशुभस्य कालहरणं कालेन क्षीयते शुभम् / मा चिन्तां कुरुते तात ! कालः कालो भविष्यति // 27 // भानुश्च मन्त्री दयिता सरस्वती गता मृता सा नृपकौतुकेन / वाराणसीं प्राप्य पुनश्च लब्धा जीवन् नरो भद्रशतानि पश्यति // 1 // कुर्कुटः पर्यटैस्तत्र तृषाक्रान्तोऽन्यदाऽभवत् / पश्यन् जलाश्रयं वापी दृष्ट्वान्तः प्रविशन मुदा // 28 // तत्र यावत्पपौ नीरं सातस्तावदम्बडः / आत्मरूपं यथाभूतं वीक्ष्य चेतसि हर्षितः // 26 // भाग्येनाटमटीन्याया-नीरं लेभे मयेप्सितम् / गृहीत्वा तत्कियत् पार्श्वे निरगात्पुनरम्बडः // 30 // इतस्ततो वने भ्राम्यन शेते तिष्ठति गच्छति / अर्द्धरात्रेऽन्यदा काचित् शुश्राव रुदती स्त्रियम् // 31 // का रोदिति विमृश्येति तद्रोदनानुसारतः। तस्याः पार्वे गतः सोऽपि त्वं कथं कात्र रोदिषि // 32 // जगौ सगदगदं साऽथ सम्बन्धं शृणु मे नर ! / पत्तनं रोलगपुरं तत्र हंसनृपोत्तमः // 33 // तस्याभूत् श्रीमती राज्ञी राजहंसी तयोः सुता / वरयोग्यां नृपो दृष्ट्वा तद्विवाहममेलयत् // 34 // अहो पृथ्वीपुराधीशो हरिश्चन्द्रनरेश्वरः / महीचन्द्रसुतस्तस्य ज्ञातव्यो वर एव सः // 35 / / 2 // 17 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय अम्बड चरित्रम् आदेशः // 18 // अथ लग्नदिने तत्र पत्तने सेनयान्वितः। सर्वविवाहसामग्र्या सोऽपि सोत्सवमागमत् // 36 // धवले गीयमाने च विस्तृते मङ्गलस्वरे / वाद्यषु वाद्यमानेषु तोरणे वर आययौ // 37 // | उच्चरन्ति द्विजा वेदान् समये तत्र कन्यका / नारीभिर्गोत्रवृद्धाभिः कृतमङ्गलमजना // 38 // सर्वाभरणसम्पूर्णा विवाहोचितचीवरा। नीयमाना मातृगृहे हस्तमेलापके तदा // 3 // युग्मम् / | अग्रे परिदधौ कन्या सूर्यदत्तं च कञ्चकम् / अपूर्व तं ग्रहीतु सा जहे दुष्टेन केनचित् // 40 // यो व्रजन् व्योममार्गेण बलाद् गृह्णाति कञ्चकम् / न मुञ्चति परं कन्या तेनात्यन्तं कदर्थिता // 41 // पापिना तेन कोपेन क्षिप्ताधो भुवि सोऽगमत् / श्रहो जानीहि सैवाहं पतिता तेन रोदिमि // 42 // | देवो मेऽद्यापि किं कर्ता हर्ताऽभूत् सर्वसम्पदः / कथ्यते कस्य दुःखं च चिन्तितं कार्यमन्यथा // 43 // यतः-जन जाणइ मनि अप्पणइ मनवंछित पूरेसु / देव भणइ रे जीवडा हुँ पण अवर करेसु॥४४॥ अवली करणी दैवनी जे नरपति जु कोइ / आरंभिउं जिरहइ अवर अचींतिउ होइ // 45 // | अम्बडः प्राह हे भद्रे ! मा रोदीभविता। सूर्यकञ्चुकवृत्तान्तं ममाग्रे कथयाधुना // 46 // // 18 // Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् द्वितीय आदेशः // 16 // अथ सा प्राह हे साधो ! पितृभ्यां शैशवेऽन्वहम् / पण्डितायाः सरस्वत्या मुक्ताऽध्येतु तदन्तिके // 47 // भव्येन पाठयेत्सा मां राजपुत्र्या विशेषतः / अपरं पुत्रिका सप्त पौराणां व्यवहारिणाम् // 48 // एवमष्टो मिथः कन्याः सस्नेहा इव सोदराः। वयं ता लेखशालिन्यः पठामस्तत्र सर्वदा // 4 // तास्तिष्ठन्ति दिवारात्रौ तस्या मातुरिवौकसि। अन्यदा जागरारात्रौ स्थिता पश्यामि चेष्टितम् // 50 // मध्यरात्रौ सरस्वत्याश्चतुःषष्टीयमण्डलम् / मण्डितं तत्र योगिन्यः चतुःषष्टिः समागताः // 51 // प्रवृत्ताः स्वेच्छया रन्तु तया पण्डितयाऽकथि। मातुः प्रसाद कुर्वन्तु सिद्धिं ददतु मेऽधुना // 52 // K प्रथमं कथितं ताभिः पण्डितेऽस्माकमेव हि / देहि मे प्राणपिण्डानि सिद्धिं दमो यथा वयम् // 53 // | पण्डिता प्राह युष्माकं कल्पिता अष्ट कन्यकाः। गृहन्तु विधिवत्सर्वाः प्राहुस्ताः शृणु सेविके // 54 // चतुर्दश्यां सनैवेद्या मध्याह्न रविवासरे। कल्पनीया इमाः सर्वाः कथयित्वेति ता ययुः // 55 // | तच्च सर्व श्रुतं दृष्टं मया जागरमाणया / सञ्जाता भयभीताऽहं कन्याभिः कथितं प्रगे // 56 // // ईदृशी दृश्यसे दीना कथं राजसुतेऽधुना। तत्पृष्टा रात्रिवृत्तान्तं कथयामास तत्पुरः // 47 // | // 16 // Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् द्वितीय आदेश: // 20 // | किं कर्त्तव्यं तदा यत्र वाहरा तत्र धाटिका / पण्डिता यदि वैरूप्यं चिन्तयेत् कस्य कथ्यते // 58 // प्रोक्तं ताभिरुपायो हि क्रियते जीवितस्य किम् / न तु पीडयति ज्ञातं शुभं प्रायेण यत्नतः // 56 // सर्वे जीवाः सुखाकाङ्क्षाः सर्वेऽपि दुःखभीरवः। सर्वे विभ्यन्ति मरणात् सर्वेऽपि जीवितप्रियाः॥६॥ मयोक्तं मत्पितुः पूर्व हंसराज्ञो निगद्यते / पश्चादाराध्यते सूर्यो यथाविघ्नं प्रशाम्यति // 61 // प्रमाणमिति सर्वाभि-स्ताभिरुक्ता नृपौकसि / अहं गत्वा नृपस्याग्रे तस्या वृत्तमचीकथम् // 62 // श्रुत्वा तच्चेष्टितं दूनः पण्डिताया अपण्डितम् / आदिदेश नृपः क्रुद्धस्तद्विघाताय सेवकान् // 63 // मयोक्तं पुनरप्येवं तात ! मा मार्यतामियम् / ब्राह्मणी शक्तिरूपा हि ब्रह्महत्या न सौख्यदा // 6 // विमृश्य क्रियते कार्य प्रपञ्चेन हि सिद्धयति / देवसम्बन्धिविघ्नानि प्रतिकार्याणि दैवतैः // 65 // अन्यथा पण्डिता क्रुद्धा भवन्तं मारयिष्यति / आराध्यते यदा सूर्यस्तदाऽस्माकं जयो भवेत् // 66 // . वारयित्वेति राजानं सूर्य आराधितस्ततः / सोऽपि तुष्टो ददौ मह्य विघ्नहदिव्यकञ्चकम् // 6 // ताभ्यश्च सप्तकन्याभ्यो गुटिकाः सप्त सोऽर्पयत् / शृण्वन्तु विधिमेतेषां गुरुगम्यं फलप्रदम् // 6 // // 20 // Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय आदेशः | यदा सा मण्डयेकाले चतुःषष्ठीयमण्डलम् / परिधत्तेऽन्तरे गत्वा योगिन्यर्पितसाटिकाम् // 6 // अम्बड पर्यधाः कञ्चुकं कन्ये पराभिः सप्तभिस्तदा / रक्षणीया मुखे सप्त गुटिकाः कुशलप्रदा // 70 // चरित्रम् साटिकां परिधायैषा कञ्चुकं वीक्ष्य तत्क्षणम् / पतिष्यति पतन्त्याया नेतव्या साटिका द्रुतम् // 71 // || // 21 // मरिष्यति स्वयं सैव युष्माकं कुशलं भवेत् / भक्षयिष्यन्ति योगिन्यो यास्यन्ति प्रीणिताश्च ताः // 72 // इत्युक्त्वाऽर्कस्तिरोभृतस्ताः सर्वा हर्षितास्तदा / व्रजन्ति लेखशालायां पठनाय भयोज्झिताः // 73 // अन्यदा कथयामास पण्डिता बालिका प्रति / युष्माकं सङ्कटं किन्तु पश्यामि दूयते मनः // 7 // प्राहुस्ताः पण्डिते मात-रस्माकं कुरु शोभनम् / सा जगाद करिष्येऽहं युष्माकं विनवारणम् // 7 // बीततो रविदिने सर्वाः कन्या आकार्य मण्डले / तया नैवेद्यसंयुक्ता वयं तत्रोपवेशिताः // 7 // / अस्मान् तत्रैव संस्थाप्य मन्त्रेण कल्पनां व्यधात् / पूजाहोमादिकं कृत्वा मध्येगेहं गता च सा // 77 // यावत्तां साटिकां सज्जा परिधातु भवेत्तदा / कञ्चुकः सूर्यवाक्येन मया परिदधे दु तम् // 7 // अपराभिमुखे क्षिप्ता गुटिका तावता च सा / साटिकां परिधायागात् कञ्चुकं वीक्ष्य मिप्रिये // 7 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड द्वितीय चरित्रम् आदेशः आकृष्य साटिकानीता योगिन्यो जगृहुश्च ताम् / शृङ्गण शृङ्खलोत्तीर्णा जयोऽस्माकं बभूव च // 8 // | अनेनैव प्रकारेण कंचुकश्वटितो मम / कथयित्वेति सम्बन्धः प्रवृत्ता रोदितु पुनः // 1 // अम्बडः प्राह मारोदीनिजरूपमदर्शयत् / राजहंसी चमञ्चक्रे न सामान्यपुमानसौ // 2 // // 22 // |निशीथे मम दुःखस्य विभागी भाग्यवानभूत् / वरमेनं विचिन्त्येति भाग्यलब्धं वृणोम्यहम् // 8 // अद्य लग्नदिनं विद्धि वृणु मां देव ! साऽवदत् / ज्ञात्वा तस्या अभिप्रायं स्त्रीचक्रे तां तदाऽबडः // 4 // तयोरजायत प्रीति-रत्यन्तं तिष्ठतो वने / दुःखं च विस्मृतं सर्वं रागः स्याचित्तचोरकः // 8 // . अन्यदा राजहंसी सा क्रीडती स्वेच्छया वने / चखाद मुग्धभावेन फलं वृक्षस्य कस्यचित् // 86 // तावत्सा रासभी जाता भुत्कुर्वन्त्यम्बडान्तिकम् / आगतां तादृशीं दृष्ट्वा सोऽपायत् वापिकाजलम।।८७॥ स्वरूपं बिभ्रती राज-हंसी स्माह निजं पतिं / प्रभावं वारिणां वाप्या कथं जानातु वल्लभ ! // 8 // R अम्बडः पूर्ववृत्तान्तं कथयामास तत्पुरः / साऽपि तस्यैव वृक्षस्य पत्युः फलमदर्शयत् // 1 // उपलक्ष्य फलं नीत्वा सोऽपि पप्रच्छ ता प्रिये ! / साटिका क्वास्ति सा पाह-देव रोलगपत्तने // 10 // K 1 // 22 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय आदेशः गम्यते तत्र सावादीत् विना विद्यां खगामिनीम् / कथं यातु स पत्न्यै तां स्नेहादर्पयदम्बडः // 11 // अम्बड चरित्रम् ततस्तौ दम्पती व्योम्ना गतौ रोलगपत्तने / इव विद्याधरौ तत्र तदुद्यानेऽवतेरतुः // 12 // वने तस्मिन् स्वयं स्थित्वा प्रेषयत्तां पितुर्यहम्। पुत्रिकां पितरौ दृष्ट्वा चिरायुमुदमापतुः // 13 // // 23 // | पिता पप्रच्छ हे वत्स ! क्व गता कथमागता / आमूलचूलवृत्तान्तं कथयित्वेति साऽवदत् // 14 // | तवोद्यानेऽस्ति जामाता श्रुत्वा मातापिता मुदा। गत्वा सन्मुखमाकार्य तं च सोत्सवमानयत् // 15 // सर्वलोकसमक्षं च विस्तरेण स्वपत्तने / तत्रैव हंसभूपेन सुतां तेन व्यवाहयत् // 16 // | अग्रहीत्साटिकां राज-हंसी तत्प्रीतिवाक्यतः। कन्याभिः सप्तभिस्ताभिमुदा सोऽपि वृतोऽम्बडः // 17 // नृपदत्तार्द्धराज्यश्री-रष्टपत्नीसमन्वितः। अष्ट वर्षाणि तस्थौ स वत्सरं दत्तवारकः // 18 // | समये नृपमापृच्छय निजसैन्यसमन्वितः / अम्बडोऽष्टप्रियायुक्त-स्तदीपं नभप्ता ययौ // 11 // सैन्यं भुवि समानीय गगनागतोऽम्बडः / दूरतोऽस्थापयद् यद्वद् नैव जानाति कश्चन // 10 // हरिबन्धाभिधद्रीपे सङ्ग्रह्य तत्फलं जलम् / अम्बडो गतवान् यत्र योगी कमलकाञ्चनः // 1 // // 23 // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चरित्रम् द्वितीय आदेश: // 24 // प्रच्छन्नसमयं ज्ञात्वा रूपं तद् योगिनोऽकरोत् / फलमिश्रं करे शाकं गृहीत्वा तद्गृहेऽगमत् // 2 // सस्नेहं जल्पितस्तेन शृणुतां मे वचः प्रिये ! / गृह्णन्तु प्रवरं शाकं संस्कर्त्तव्यमिदं द्रुतम् // 3 // निष्पादनीयमन्नं च सकालं किल भोक्ष्यते / अधुनेवागमिष्यामि कथयित्वेति सोऽगमत् // 4 // विमुच्य योगिनो रूपं काकीरूपेण सोऽम्बडः / मठिकायां समागत्य योगिनं तमजल्पयत् // 5 // स्वामिन्नुत्थीयतां सद्यो द्रुतमागम्यतां गृहे / निष्पन्नमशनं शाक-मात्मभिः सह भुज्यते // 6 // उत्थितः सस्मितं योगी काकिन्याः पुरतोऽचलत् / अद्य तावत् कलत्राभ्यां सकालं राद्धमुन्मना // 7 // अम्बडो ववले पश्चात् काकीरूपं विहाय सः / मठिकायां समागत्यान्धारिकामग्रहीत् द्रुतम् // 8 // | तदा सा रोदितु लग्ना हता तेन चपेटया। मत्कृतं रे न जानासि ? रुदन्ती रक्षिता ततः // 6 // मारसार इति प्रोक्तं सत्यं लोके प्रतिष्ठितम् / तां गृहीत्वा दले गत्वा राजहंस्यै समर्पयत् // 110 // ततो भूयोऽम्बडस्तस्य गहचर्या व्यलोकयत् / त्रयोऽपि रासभीभूता भूक्त्वा यावत्समुत्थिताः // 11 // उन्मत्ता लत्तया जन्ति भुत्कुर्वन्ति परस्परम् / वीक्षितु मीलिता लोकाः कौतुकेन हसन्ति च // 12 // // 24 // Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 25 // यतः-भल्लां तां भल्लिमकरई जां भल्ला न मलंति / भल्लाने भल्ला मिलई भला किस्यु करंति // 13 // तावद् गर्जन्ति मातङ्गा वने मदनिरालसाः। लीलोल्लालितलाङ्गलो यावन्नायाति केसरी // 14 // द्वितीय आगात् रूपं परावर्त्य सोऽम्बडो भोज्यहेतवे / न वेत्ति हृदयास्फोटो योगी कमलकाञ्चनः // 15 // आदेशः यतः-आगतश्च गतश्चैव दृष्ट्वा सिंहपराक्रमम् / अकर्णहृदयो मुखों यो गतः पुनरागतः॥ जेह नहीं आपणों सान ते किम प्रीछइ परतणी / तेह सिरिमाथइ कान चावारां वानरीउ भणइ 1 // इक आपणी न सान अने प्रीच्छविउ प्रीच्छइ नहि / तेहु माथइकान विहिकोरि काणां किया ? // 16 // ईदृशं कौतुकं दृष्ट्वा प्रत्यक्षमागतोब्रवीत् / हे योगिन्नम्बडः सोऽहं रे रे कागिणि नागिणि ! // 17 // पश्याहमागतो भूयो मां करिष्यथ कुकुटम् / इति पञ्चारयन् योगिन कुत्र तेऽन्धारिका भवेत् // 18 // सा ग्रहीता मया योगिन् ! तत्च्छु त्वा हृदि खिद्यति। तस्योपरि चटित्वाथ वाहयेद् योगिरासभम् // 16 // / हत्वा हत्वा चपेटाभिः काष्ठेन कमलं खरम / अम्बडो वैरभावेन वारं वारं विडम्बयेत // 120 // स्वस्थीकृतोऽम्बडस्तत्र निपत्य हस्तपादयोः। लोकैरकथि हे सिद्ध ! शिक्षालग्नास्य मुच्यताम् // 21 // 9 // 25 // प्रसन्नश्वाम्बडो वापी-जलपानेन तन्त्रयम् / चक्रे सहजरूपेण कागी नागी च योगिराट् // 22 // Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय अम्बडचरित्रम् आदेशः // 26 // ते सर्वेऽम्बडसिद्धस्य शासनं मेनिरे ततः। गृहीत्वा सोऽपि सर्वस्वं व्योम्ना रथपुरे ययौ // 23 // अन्धारिकासहितसैन्यकलत्रयुक्तः, कृत्वोपदां सकलवस्तु ननाम तां च / कार्य स्खया भवति गोरखयोगिनीतो लेभेऽम्बडो जगति वीरपदं यतश्च // 24 // कलत्रनवकोपेतः समेतः स्वपुरेऽम्बडः / श्रीमद्गोरखयोगिन्या मान्योऽसौ सुखमन्वभूत् // 25 // // इति श्री अम्बडकथानके गोरखयोगिन्या द्वितीयादेशः सम्पूर्णः // 2 // --* (5)*-- // अथ तृतीयादेशः // | समये तृतीयादेशं प्रवेशमिव सम्पदः / ययाचे सोऽपि लोभीव पुनर्गोरखयोगिनीम् // 1 // न्यगदत् योगिनी साधुः साधुः सत्त्वधरोऽम्बडः / हे वीर ! सिंहलद्वीपे सोमचन्द्रनृपोऽभवत् // 2 // 1 // 26 // Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेश: // 27 // तस्य चन्द्राभिधा पत्नी पुत्री चन्द्रयशा तयोः। भाण्डारे तस्य भूपस्य रत्नमाला भवेदरा // 3 // आनीयतामयं हार-समाहारः सुखश्रियाम् / गृहीत्वा तदचोऽचालीत् पाथेयमिव सोऽम्बडः // 4 // अतिक्रामन् पथं पान्थः इव सिंहलनामनि / दीपेऽगात् वनमैतिष्ट तत्रैकं विविधद्रुमम् // 5 // तत्रस्थश्चिन्तयेदेवं सत्त्ववानम्बडो हृदि / ममैष राजभवने प्रवेशो भविता कथम् // 6 // तावदेकां स्त्रियं पश्ये-चरन्तीं नवयौवनाम् / यस्या मूनि द्रुमः स्फारः कण्ठे हारस्सकोतुकम् // 7 // तादृशं वीक्ष्य दथ्यौ स सैव चन्द्रयशा भवेत् / पप्रच्छ पार्श्वमायान्तीं यासि चन्द्रयशा कुतः॥८॥ तया प्रोक्तं महामूढ ! वातुलः किन्तु वर्त्तसे / आकाशे किन्तु सुप्तोऽभूः सहसा यदि जल्पसि // 6 // अस्मि चन्द्रयशा नैव सैवास्ति राजकन्यका / वैरोचनप्रधानस्य सुताऽहं राजलाभिधा // 10 // अम्बडः प्राह हे भद्रे ! सत्यं ते वचनं वद। वृक्षयुक्तवनप्रायं दृश्यते मूर्ध्नि किं तव // 11 // तदा सा मुदिता प्राह तस्य वाक्यामृतप्लुता / आकर्णय सकर्ण ! त्वं वृत्तान्तं मूलचूलतः // 12 // अन्यदा राजकन्या सा द्वितीयाऽहं परस्परम् / श्रावां हि क्रीडितु लग्ने वने सस्नेहचेतसौ // 13 // // 27 // I M Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेशः // 28 // आवाभ्यां रममाणाभ्यां तत्र निर्भयमुत्तम ! / ददृशे जरती चैका रौद्रा नारी भयङ्करा // 14 // तां दृष्ट्वाऽऽवां ततो नष्टे पृष्टेऽधावत सावयोः / अग्रे तस्या क्व नश्यावः सत्त्वं धृत्वा स्थिते पुनः॥१५॥ वृद्धावादीत् युवां रे रे ममाग्रे च क्व यास्यथः। हे मातः ! प्रोक्तमावाभ्यां नमस्यावस्तव क्रमान् // 16 // सा वृद्धा स्माह सन्तुष्टाऽऽ-वयोविनयवाक्यतः। पुत्रीभ्यामिव हे वत्से नानेतव्यं भयं मनाक // 17 // K कैलासेऽहं गमिष्यामि तत्र देवो महेश्वरः। आगच्छतां मया सार्द्ध युवयोर्दर्शयामि तम् // 18 // आवाभ्यां कथितं मातः ! कथं तत्रैव गम्यते / श्रीमहेशः कुतः क्वाऽऽवां भवती क्या महत्यपि // 1 // K व्रज तत्र गृहीत्वाऽऽवां प्रसादं कुरु साम्प्रतम् / अस्मदीयं महद्भाग्यं दृश्यते देव ईश्वरः // 20 // शिवस्याहं प्रतीहारी शक्तिर्मम गरीयसी / इति वार्ता प्रकुर्वन्त्या कैलासेऽपि वयं गताः॥२१॥ वाक्य सांभली करी. गिरिकलासी. ईश्वरपार्वती तेणड आवासि / तेहनी कहीए हु पडिहारी, सक्ति अचिंत्य अछह मुज अपारि // 1 // कुमरीवाक्यं / आज भलू जे अम्हे तुम्ह पासइं, लेई जाओ गिरि कैलास / इम कहतां अम्हे तिहां गया, ईश्वर पार्वती दर्शन भया॥२॥ // 28 // Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् तृतीय . आदेशः // 26 // | इन्द्रजालमिदं मात-रथवा स्वप्नसन्निभम् / इति पृष्टाऽहं हे वत्से / सर्व सत्यं न संशयः // 24 // दाने तपसि शौर्ये वा विज्ञाने विनये नये / विस्मयो नैव कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा // 25 // . असौ महेशो जगतामधीशो माता भवानी भववल्लभेयम्। उमामहेशं प्रणमन्तु वत्से ! निःपातका यददहो भवन्तु // 26 // इति प्रोक्ते तयाऽऽवाभ्यां रुद्रपादा नमस्कृताः। तदा पृष्टं महेशेन वृद्धे ! का कन्यकादयी // 27 // वृद्धा प्राह नृपस्यैका द्वितीया मन्त्रिणः सुता / देव ! ते सेवकीभूते दर्शनाय तवेयतुः // 28 // ततो गाढतरं तुष्टः समाचष्टे महेश्वरः / याचेतान्नु वरं वत्से ! नत्वा न्यगदतांच ते॥२६॥ स्वामिन् तब मुखाम्भोज-सेवाहवावयोस्तदा / तद्भक्तिवचसा प्रीतः शङ्करः सर्वशङ्करः // 30 // हारं च राजकन्यायाः कर्मदण्डं ममार्पयत् / ईप्सितं क्रियते रूपं रत्नमालाप्रभावतः // 31 // " || विघ्नं वैरस्य रोगादि प्रयाति कर्मदण्डतः / इति प्रभावमाकर्ण्य पुनः प्रार्थित ईश्वरः // 32 // अस्माभिस्तव पादाब्ज दृश्यते सर्वदा यथा / तथा करोतु हे नाथ ! ततस्तुष्टो हि शङ्करः // 33 // I/A MA26 // Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | तृतीय अम्बर चरित्रम् आदेशः अस्मभ्यमर्पयामास त्रिदण्डाभिधपादपम् / आरूढ मेष यो यावत् कैलासं वर्द्धयिष्यति // 34 // || मदीयं युवयोर्वत्से ! दर्शनं कारयिष्यति। शुभं भवतु युष्माकं श्रीकण्ठो विससर्ज नौ // 35 // ततो मुमुचतुर्वृद्धा भूम्यामानीय नौ पुनः / एनमारुह्य कैलासं गत्वा संसेव्य शङ्करम् // 36 // मध्याह्न वल्यते पश्चात् स्थानके मुच्यते द्रुमः / भूयस्वभावरूपेण भूयते नित्यमुत्तम ! // 37 // अधुना गम्यते तत्र तदा पृष्टाम्बडेन सा / कथं स्थाष्णु वनं मूनि साध्वदच्छणु सत्तम ! // 38 // अन्यदा रूढवृक्षायां मयि यात्यां नमोऽध्वना / सूर्येण वीक्ष्य वैचित्र्य-मिति चिन्तितमीदृशम् // 3 // करालः कोऽपि कृत्वेति शक्तिरूपं बुभुक्षितः। मां भक्षयतुमायाति भूतलादूर्ध्वमेव किम् // 40 // विमृश्य सभयं भीतः संलीनो निजमण्डले / वलितां मानुषी ज्ञात्वा स्वच्छः पप्रच्छ तां रविः // 41 // पप्रच्छ वनिते! का वं गत्वा कुत्र समागता। यथाभूतं मया सर्व स्वरूपं कथितं रवेः॥४२॥ शिवभक्तां रविर्तात्वा मामवोचत हर्षतः / वरं वृणु मया प्रोक्तं शिवभक्तिर्ममास्तु वै // 43 // शिवभक्त्या तितुष्टेन सूर्येण निज कोशतः / अपूर्व तिलकं दत्तं मह्य येनाधिका तिः // 44 // // 30 // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड तृतीय चरित्रम् आदेशः रविः प्राह पुनर्वत्से ! त्वं याचस्व किमु दु तम् / मयोक्तं यदि तुष्टोऽर्क ! देयाः सहचरं वनम् // 45 // एवमस्तु निगद्यागा-भास्करो निजमण्डले / अहमागां निजस्थानं तदादिसहगं वनम् // 46 // राजकन्या द्वितीयाऽह-मुभयोरावयोरिति / शिवभक्तिं प्रकुर्वन्त्योः सुखेन यान्ति वासराः॥४७॥ कथयित्वेति तत्रत्या देवी राजलसंज्ञका / प्रविवेश पुरीमध्ये पृष्टे गादम्बडः स च // 48 // चतुष्पथे गता याव-दम्बडेनानुगच्छता / रक्षयाऽन्धारिकायाश्च छटिता स्तम्भिता च सा // 4 // स्वयं नटस्य रूपेण भूत्वा नृत्यममण्डयत् / माई ङ्गिको मृदङ्ग चावादयच्छन्दसा पुनः // 50 // कौतुकं तत्र पश्यन्ति जल्पन्तीति जना अहो / एक एव कथं नृत्यं कर्ता शुश्राव चाम्बडः // 51 // विद्यया बहुरूपिण्यै-कत्रिंशत् खेलिका व्यधात् / सर्वाश्व नर्तितु लग्ना दृश्यते हीनमेकया॥५२॥ ज्ञात्वेति विप्रतारिण्या राजीव विप्रतारिता / खेलिकीभूय तन्मध्ये नृत्यति स्वेच्छया स्वयम् // 53 // पूर्ण द्वात्रिंशताबद्धं नाटकं वीक्षितु वरम् / प्रवृत्ती राजलोकेऽभू-द्राजा राज्ञी सुताऽगमत् // 54 // स्वस्वकार्य विमुच्यायुः सर्वे नृत्यं विलोकितुम् / नृत्यन्ती राजिकां दृष्ट्वा राजकन्या जगाद ताम् // 55 // // 31 // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् | राजिके ! मण्डितं किञ्च त्रपाकारीति नर्तनम् / सा प्राह राजकन्येऽत्र त्वमेवागच्छ नर्त्तय // 56 // तृतीय | तदा राजसुता प्राह-पर्याप्तं सखि ! नर्त्तनैः। त्वमेव नृत्य निर्लज्जे ! राजिका सस्मितं जगौ / / 57 // || आदेश: मम चन्द्रयशे ! चित्ते नृत्यं स्यात् हृदयङ्गमम् / दृष्ट्वा राज्याः पिता माता ततो भूपं व्यजिज्ञपत् // 58 // // 32 // | हे राजन् केन धूर्तेन पुत्रिका विप्रतारिता। किं क्रियते नृपः प्राह-वैरोचन ! विचारय // 56 // | अम्बडः क्षणमात्रेण शिवरूपेण नृत्यति / ततोऽसौ विष्णुरूपेण ब्रह्मरूपेण विद्यया // 6 // सपञ्चशब्दवाद्यन रसालं नाटकं भवेत् / लोकश्च नृपतिर्वीक्ष्य जानातीति स्वचेतसि // 61 // क्षणमात्रमिदं नृत्यं न मुञ्चति तदा वरम् / स्वर्गीणं मानुषं किन्तु दृष्ट्वा सर्वं विसिस्मये // 2 // रञ्जितोऽपि जनो राजा दत्तं दानं चमत्कृतः / दीयमानमनल्पं च स्वल्पं गृह्णाति नैव सः॥६३॥ राजलोकैः तदा ज्ञातं निर्लोभकोऽप्यसौ नरः। सिद्धविद्याधरः कश्चि-विस्मयं प्राप्तवान् जनः॥६॥ तादृशे समये नृत्यं तद्यसर्जयदम्बडः / विद्युत् मात्कारवल्लोका वर्णयन्तो गृहं ययौ // 65 // // 32 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेशः // 33 // सोमचन्द्रनृपश्चन्द्रा राज्ञी चन्द्रयशा' सुता / सर्वे ऽपि विस्मयं प्राप्ता रञ्जिता स्वगृहं ययुः // 66 // तन्मुक्ता स्तम्भना ताव-द्देवी राजलसंज्ञका / विस्मार्य स्वप्नवन्नृत्यं सत्यं सा स्वगृहेऽगमत् // 67 // | पप्रच्छ पितृभ्यां वत्से ! केन त्वं विप्रतारिता / चतुष्पथे चटित्वा-यन्नतिता लजिता न हि // 68 // | साध्वदत् पितरो केन नैवाहं विप्रतारिता। एष मे भविता भर्ता हर्ता दुःखस्य निश्चितम् // 6 // आः पापे ! जल्पसि किं त्वं-पितृभ्यां धिक्कृता च सा / मौनं कृत्वा स्थिता सायं गता राजसुतान्तिकम् // 7 // तां प्रत्याह सखि ! स्पष्टं दृष्टं चन्द्रयशे वया। सा स्माह राजिके लोक-समक्षं नर्तितं त्वया // 71 // येन त्वं कारिता नृत्यं स एष पुरुषोऽस्ति कः / पारम्पयं त्वया ज्ञात-मस्ति तस्याथवा न हि // 72 // सोचे यदस्ति तत्सर्वं ममाग्रे कथयत्यसौ / अवलप्तिर्मनागस्य नास्ति काचिन्मया समम् // 73 // वार्तालापं च साकार-मम्बडस्य स्वरूपकम् / राजपुत्र्याः पुरः सर्वे कथयामास राजिका // 7 // 1. आपञ्चव हलन्तानां यथा वाचा निशा दिशा / समासान्तप्रत्यये कृत् आप्-इति भागुरि / / // 33 // Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् तृतीय आदेशः // 34 // | राजपुत्री वचस्तस्याः सत्यंमन्येत्यभाषत / वरमेनं वरिष्यामि वृणु त्वं तमपि स्वसः // 7 // प्रतिज्ञायेति पुरुषः प्रेषणीयः स एव हि / मम पार्वे यथा वार्ती समं तेन करोम्यहम् // 76 // प्रमाणमिति सोत्तस्थौ याता चाम्बडसन्निधौ / स्वामिन्नाकारिता सायं सत्त्वरं राजकन्यया // 77 // | स्वर्णवातायनस्येह-चिह्नन चतुराग्रणीः / तस्या वेश्मनि गन्तव्यं तदाकूतं तवोपरि // 7 // कथयित्वेति सा राजी जगाम स्वगृहं ततः / को वेत्ति चरितं स्त्रीणां दुर्गमं हि दिवौकसाम् // 7 // अम्बडो निशि कार्यार्थी ययौ राजसुतान्तिकम् / कन्यासन्मुखमागत्या-नमत्स्वागतपूर्वकम् // 20 // आसनस्थस्तया सोऽपि जल्पितः प्रेमभाषया / अभिप्रायेण कन्याया अम्बडस्तादृशं जगौ // 1 // पाश्चात्यरजनीयामे गन्तुकामस्य तस्य च / कन्यया दधतः प्रेम पत्रबीटकमर्पितम् / / 82 // ततस्तत्फलचूर्णेन भावितं हावभावतः। वलमानं ददौ तस्यै पत्रबीटकमम्बडः // 8 // यतः ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति / भुङ्क्ते भुञ्जयते चैव षट्विधं प्रीतिलक्षणम् // 4 // मुदा सुप्ता तदास्वाद्य-तन्नाम स्मरणादियम् / तदिधायागमत्सोऽपि स्वस्थाने कौतुकप्रियः // 5 // / // 34 // Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् | RA सखिवर्गेण पल्यङ्क प्रातदृष्टा हि रासभी / श्रागत्य कथितं राज्ञः सा वार्ता सर्वतोऽजनि // 86 // श्रुत्वाऽसमञ्जसं राजा का कथा रे चुकोप सः। तत्र पश्यति चागत्य राजकन्यां च तादृशीम् // 87 // राजवर्गो मिलस्तत्र पितामाता च दुःखभृत् / क्रियमणे प्रतीकारे तस्या नाभूद गुणोऽल्पकः // 8 // भूभुजाऽकथयत्कोऽपि कुर्यात् पुत्रीं यथास्थिताम् / सन्मानपूर्वकं तस्य स्वर्णकोटि ददाम्यहम् // 6 // अनेन लोभवचसा ये ये कुयुः प्रतिक्रियाम् / ते ते हि वितथा याता न तस्याष्टङ्किकालगत् // 10 // सोमचन्द्रनृपो दध्यो पृच्छयते मन्त्रिपुत्रिका / यथेतत्कारणस्यैष मार्गकी सुतासखी // 11 // ततो वैरोचनेनैतां देवीं राजलसंज्ञकाम् / आकार्य पृष्टवान् राजा राजकन्याप्रतिक्रियाम् // 12 // श्रूयते त्वं महेशस्य सेवकी तत्प्रसादतः / उपचारं च जानासि राजपुत्र्यास्तदा कुरु // 13 // स्वागतं राजिका प्रोचे पटहो नृप ! वाद्यते / दीयते तस्य राज्यार्द्ध कन्या चन्द्रयशा पुनः // 14 // यः करोति यथारूपां लभते तां स एव हि / तस्या वचनमात्रेण पृथ्वीनाथस्तथाऽकरोत् // 15 // अम्बडो निजरूपेण पस्पर्श पटहं ततः / यथा रूपामिमां कुर्वे जल्पितं यदि दास्यथ // 16 // // 35 // Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड तृतीय आदेश: चरित्रम् प्रधानैर्ज्ञापितः पुत्रीस्वभावाकारकारकम् / राजा सन्मुखमागत्य दत्वा मानं तमानयत् // 17 // राजकन्यां निराबाधां कुरु त्वं सिद्धपौरुष ! / राज्ञेति कथिते सोऽपि नाटयेत् ध्यानमम्बडः // 18 // वासरत्रितयं यावत् सर्वलोकसमक्षतः / तत्र होमादिकं कत्तु प्रवृत्ताऽऽडम्बरेण सः // 16 // यतः-शत्रुषु व्यवहारेषु संसदि स्वसुरोकसि / आडम्बराणि(रेण) पूज्यन्ते स्त्रीषु राजकुलेषु च // 10 // तद्धापी जलपानेन मन्त्रसाधनपूर्वकम् / यथा रूपां व्यधात्कन्यां धन्यानां धन्य एव सः॥१॥ | इति लोकैः स्तुतः सोऽपि सामान्यो नैव कोऽप्यसौ / य एव राजकन्यायाः खरीरूपमपाकरोत् // 2 // राज्यार्द्ध राजकन्यां च रत्नमालासमन्विताम् / मुदा तस्मै ददौ राजा विवाहोत्सवपूर्वकम् // 3 // वैरोचनप्रधानस्य पुत्री राजलदेविका / अम्बडं सा वृणोति स्म सर्वं मिलति भाग्यतः // 4 // तत्र स्थित्वा कियत्कालं पत्नीदितयशोभितः / अम्बडः सर्वमापृच्छय क्षेमेण स्वपुरं ययौ // 5 // | पुरो गोरक्षयोगिन्या विज्ञप्य सकलश्रियः! एकादशप्रियायुक्तः सुखं भुङ्क्ते सदाम्बडः // 10 // // इतिश्री अम्बडचरिते गोरखयोगिनीदत्तस्तृतीयादेशः सम्पूर्णः // 3 // // 36 // Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अथ चतुर्था देशः // अम्बड चरित्रम् // 37 // समेत्य समये सोऽपि पुनः गोरक्षयोगिनीम् / ययाचे तुर्यमादेशं बालवत्सुखभक्षिकाम् // 1 // . योगिनी सैवमादेश-मादिदेश चमत्कृता / अहो अम्बड ! वीरत्वं धीरत्वं तव चेच्छृणु // 2 // पत्तने नवलक्षेऽस्ति बोहित्थो व्यवहारिकः / मर्कटीं नवलक्षी स्यात् तद्गृहे तां समानय // 3 // तस्या श्रादेशमादाय गुरुवाक्यमिवाम्बडः / तत्पुरं प्रत्यगात्शीघ्र कार्यार्थी न विलम्बते // 1 // यतः-कोतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् / को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् // 5 // पन्था पादेन घातेन वैरी वातेन वर्षणम् / कार्यं स्यात्समुदायेन चतुष्कं च शनैः शनैः // 6 // गच्छतः पथि तस्यागात् वनमेकं महाऽद्भुतम्। सुगन्धनानापुष्पाणां सुगन्धैश्व विशेषतः // 7 // पश्यता चम्पकाशोकजातीबकुलकेतकीः / तत्र वृत्तान्तरे बाला दृष्टैका तेन यान्त्यपि // 8 // // // 37 // Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चतुर्थ आदेश चरित्रम् // 38 // दृष्ट्वा तामुर्वशीतुल्यां विद्युत्भात्कारसन्निभाम् / प्रेरितो दृष्टिरागेण प्रत्यधावत्तदाम्बडः // 6 // मध्ये सरोवरं यावत् क्वाप्यगानवयौवना / दृष्टाम्बडेन सर्वत्र न लेभे कुत्र बोधिवत् // 10 // विषादी तत्र तां बालां परिभ्राम्यति वीक्षितुम् / वियोगी रामवत्सोऽपि प्रतिजल्पति पादपान् // 11 // अहो वृक्षाः स्थिरा यूयं क्व दृष्टा युवती च सा / तदर्शन वियोगा कृपां कुरुत तन्मयि // 12 // उक्तश्च-विकलयति कलाकुशलं, हसति शुचिं पण्डितं विडम्बयति / अधरयति धीरपुरुष, क्षणेन मकरध्वजो देवः // 13 // गाहाण रसो महिलाण विभमो कविजणस्स वयणाई। कस्स न हरन्ति चित्तं बालाण य मुम्मणालावा // 14 // वनभीतरि अम्बड भमइ रुदन करइ तिणि दुक्खि / दोहिलइ दीहडला गमइ स्त्री स्त्री भाषइ मुखि // 15 // स्त्री दीठइ मनमोहीइ किम न वेधाइ विलास। वागुरि हरिण झबूकीइ किम न पाडइ ते पास // 16 // अकस्मादागमत्पुष्प-बटुकः कोऽपि तावता / अग्रे फलं विमुच्यैकं प्रणम्याम्बडमब्रवीत् // 1 // हे अम्बड ! समायातु त्वामाहात्यमरावती। श्रावासे वर्त्तते सैव श्रृत्वैवं हर्षितोम्बडः // 18 // अम्बडः प्राह हे मित्र ! कस्त्वं सा काऽमरावती / फलं च किमिदं पुष्ष-बटुकः प्राह तं प्रति // 1 // // 38 // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरे क्षत्रियकुण्डे च देवादित्यनृपो जयी। लीलावतीप्रिया तस्य तयोः प्रीतिरनुत्तरा // 20 // अम्बड- || गुणाकर भद्राकर-प्रभाकरमुखाः सुताः। तेषामपरमाताऽस्ति सपत्नी भावतोऽन्यदा // 21 // चरित्रम् भोजनार्थ तया राजा बाह्यप्रीत्या निमन्त्रितः। अशने किमपि क्षिप्त्वा भोजितः प्रतिपत्तितः॥२२॥ || भुक्त्वा समुत्थितो यावत् तावदाजा शुकोऽभवत् / राज्यं हि मलिनं प्रायो हाहाकारः पुरेऽजनि // 23 // कुमारैतिवृत्तान्तैविडम्ब्यापरमातृका निष्कासिता च देशान्ते सपत्न्या इति चेष्टितम् // 24 // उक्तश्च-नितम्धिन्यः पतिं पुत्रं पितरं भ्रातरं क्षणात् / आरोपयत्यकार्येऽपि दुर्वृत्ताः प्राणसंशये // 25 // नृपं कीरं निजोत्सङ्गे लात्वा लीलावती प्रिया। किं कर्त्तव्यं सशोकाऽस्थात् तदा राजशुकोऽवदत्॥२६॥ दातव्यं काष्ठभक्ष्यं मे पर्याप्तं जीवितेन च / राज्ञी कीरवचः श्रुत्वा राजवर्गो हि रोदिति // 27 // न छुट्टति विना भोगं कर्मणां जन्तवो जने / नटवत्परिवर्तन्ते ये नानाविधरूपतः // 28 // यतः-कर्म आगलि कोन सपराणु देव दानव अनइ रायराणु / इंबनइ परि जलवहिउं हरिचंदई भालडी मरण लाधु मुकुंदइ // 26 // 34 // Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 40 // रामो येन विडम्बितो वनगतश्चन्द्रः कलङ्कीकृतः, क्षाराम्बुस्सरितां पतिश्च नहुषः सर्पः कपाली हरः॥ मांडव्योऽपि च शूलपीडितवपुर्भिक्षाभुजः पाण्डवाः / नीतो येन रसातलं बलिरसौ तस्मै नमः कर्मणे // 30 // शुकरूपो नृपो दध्यो यस्यां धिग् स्मरघस्मरम् / इति स्त्रीचरितं स्मृत्वा मत्तु मिच्छुनेरेश्वरः // 31 // यतः-किं गहनं स्त्रीचरितं कश्चतुरो यो न खण्डितस्तेन / किं दारिद्र्यमसन्तोष एव किं लाघवं याचा // 32 // राजलोको भवेद् दुःखी किं कर्त्तव्यमतिर्जनः। तावन्नभस उत्तीर्णः कुलचन्द्राख्यतापसः॥३३॥ शान्तं पापं धृतिर्वोऽस्तु वाचमेवं समुच्चरन् / श्रागतः सचिवः सोऽपि स्तुतः स्वागतपूर्वकम् // 34 // अद्यास्मद्भाग्यमुत्कृष्ट-मद्यास्मदिवसो वरः। अद्य पुण्यसमाकृष्ट-स्त्वमकारणवत्सलः // 35 // आत्मरूपं नृपं कुर्वे सर्वे तदाक्यहर्षिताः / कारिता होमकर्मादि शान्तिकं च तपस्विना // 36 // उपचारप्रकारेण यावत्सप्तदिनं तदा / राजाऽभूनिजरूपेण तत्कालं कालयोगतः // 37 // उत्सवस्यैकसाम्राज्यमित्यभूदेकघोषणा / वाद्य षु वाद्यमानेषु गीतगानेन सर्वतः // 38 // | नगरे राजवर्गे च लीलावत्यां विशेषतः / हर्षप्रकर्ष एवाभूत् भूपस्तापसमब्रवीत् // 3 // | // 40 // Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ आदेशः चरित्रम् // 41 // यतः-साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थंभूता हि साधवः / तीर्थ फलति कालेन सद्यः साधुसमागमः // 10 // इति स्तुतिपरं भूपं तापसः प्रत्यबोधयत् / शिलासमानमहिला परं मजति मजयेत् // 41 // जे पढिआ जे पंडिया जे जगि ऊपर वट्ट / ते महिला फेरवीइ जिम फेरवीइ घरट्ट // 42 // दुःखं स्त्रीकुक्षिमध्ये प्रथममिह भवे गर्भवासे नराणां, बालत्वे चापि दुःखं मलमलिनवपुः स्त्रीपयः पानमिश्रम् // तारुण्ये चापि दुःखं भवति विरहजं वृद्धभावोऽप्यसारः, संसारे रे मनुष्या वदति यदि सुखं स्वल्पमप्यस्ति किश्चित् // 43 // अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः / नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः // 44 // रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः। इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा मूलतः कमलिनी गज उज्जहार // 45 // जरा धोबिणि धोयणि चली, धोया सघला देश / विण पाणी विण साबूए धूला कीधा केश // 46 // अस्थिरेण शरीरेण शुभं कर्म समाचरेत / संसारे पश्य यत्सौख्यं मधुबिन्दुसमं नृप ! // 47 // इत्थं तत्प्रतिबोधेन राजा वैराग्यप्राप्तवान् / राज्यं प्रदाय पुत्राय तापसव्रतमग्रहीत् // 48 // स्वयं लीलावती राज्ञा साद्धं जाता तपस्विनी / अचीकथनवाधानं व्रतादानान्तरायकृत् // 4 // | // 41 // Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ | আমি चरित्रम् // 42 // तपोवने तत्र तपस्विसङ्कले, लीलावती गर्भवती तपस्विनी। उदारगर्भा समये बभूव सा, तां तादृशीं वीक्ष्य नृपो मुनिर्जगौ // 50 // असमं किमिदं देवि ! तपोहानि त्रपाकरम् / स्थाष्णोरत्र तपः शोभा न शोभा विषयस्य च // 51 // साऽवदद् देव ! जानीहि गर्भो मे गृहवासजः / मयाऽसौ व्रतमिच्छिन्त्या विघ्नकृत्तेन नाकथि // 52 // निःकलङ्कमना काले संपूर्णेऽसूत सा सुताम् / मृताऽसौ सूतिरोगेण मृत्योर्वक्ति न च क्वचित् // 53 // यतः-गभेस्थं जायमानं सुखशयनगतं मातुरुत्सङ्गसंस्थ। बालं वृद्धं युवानं परिणतवयसं निःस्वमाढय धनाढयम् / वृक्षाग्रे शैलशृङ्गे नभसि पथिजले पञ्जरे कोटरे वा। पाताले वा प्रविष्टं हरति हि सततं दुनिवार्यः कृतान्तः॥ 54 // श्री बालस्स मायमरणं भजामरणं च जुब्बणारंभे / वुड्डस्स पुत्तमरणं तिन्नि वि गरूआई दुक्खाई // 55 // कूया कंठउ मतपडउ, म पडउ वली अवाह / म मरु बाला मावडी तरुणी केरो नाह // 56 // // 42 // Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् आदेशः // 43 // कूया कंठउ वली होअसि, होसइ वली अवाह / म मरु बाल मावडी तरुणी भलेरु नाह // 4 // रे रे उठी बप्पडी मुहूढां कीम मरोइ / यम राउलां चइजु फरइ कलिइ न मरइ कोइ // 8 // दुःखे सुखे भवेन्मृत्युर्योगे भोगे च जन्मिनाम् / अजन्मिनां पुनर्नेव तदजन्म विधीयताम् // 5 // इति शोकं नृपस्त्यक्त्वा पालयामास पुत्रिकाम् / श्रजल्पयत् तदा प्रौढी-भूतां नाम्नाऽमरावतीम् // 6 // रूपेण निर्जितेन्द्राणी-वाणी सर्वकलाश्रयात् / कामदेववनं दिव्य-यौवनं प्राप सा सुता // 61 // अन्यदा व्योममार्गेण गच्छता धनदेन सा / दृष्ट्वा व्यामोहितः सोऽपि कोऽपि स्त्रीषु पपात न // 2 // यक्षेश्वराय राजर्षिः पुत्रिकां दातुमिच्छति। न काङ्क्षति परं कन्या तं वरं हृदि नो वरम् // 63 // कामार्थी धनदस्तस्या लोभं दर्शयतीत्यतः / फलेनैकेन सहितः तस्यै रत्नत्रयं ददौ // 6 // ___ यतः-यत्रामिपं तत्र पतन्ति गृध्रा, यत्रोदकं तत्र पतन्ति जीवाः / यत्र श्रियः तत्र लगन्ति नार्यो, यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति // 65 // जगौ प्रभावमेकेन जलस्योपद्रवो न च / द्वितीयेनैव रत्नेन पावकोपद्रवो न तु // 66 // भूतप्रेतादिकक्षुद्रो-पद्रवो न तृतीयके / फलेन वाञ्छितं सर्व-मिति विज्ञाय तत्फलम् // 67 // // 43 // Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चरित्रम् आदेश: // 44 // मुनिकन्या ततःस्थाना-दुत्थाय धनदं सुरम् / पूज्यवत्तन्दुलैर्भक्त्या वर्धाप्य विनयाजगौ // 6 // हे बान्धव ! नमस्तुभ्यं ममैवासि सहोदरम् / अपूर्वा कुरु मे रक्षां यत्कस्याभिभवो न तु // 6 // ततो यक्षेश्वरस्तस्यां त्यक्त्वा कामविकल्पनाम् / स्वसारमिव मेने स कन्यां ताममरावतीम् // 7 // तस्या निर्विघ्नवासार्थं निष्पाद्य दिव्यशक्तितः / तटाकजलमार्गेण पातालभवनं व्यधात् // 71 // ततस्तस्याः पिता श्रीदमपृच्छत्तदरं च कम् / अवधिज्ञानतः सोऽपि ज्ञात्वा जल्पितवानिति // 72 // विद्यावानम्बडो नाम्ना वरो ह्यस्या भविष्यति / ऋषिः प्रोवाच हे श्रीद ! स एव ज्ञास्यते कथम् // 73 // अवदद्धनदो जाती-बकुलद्रुममध्यगम् / कन्या द्रक्ष्यति पुरुषं ज्ञातव्यो वर एव सः // 7 // कथयित्वेति यक्षेशो निजं धाम जगाम सः / विवाहावसरे तस्यास्तत्पिता तं गवेषयत् // 7 // ततोऽमरावती कन्या कदावासे कदावने / कदा क्रीडति कासारे सारे भर्तरि सुन्दरी // 76 / / रमयन्त्या तया दृष्टः क्रीडन् वृक्षान्तरे भवान् / अद्य नो माति हृदये हर्षोऽस्यास्तारतम्यतः // 7 // धनदार्पितमेतच्च यत्फलं तव दौकितम् / भवन्तं प्रत्यहं पुष्प-बटुकः प्रेषितस्तया // 78|| // 44 // Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् आदेशः // 45 // हे अम्बड ! गृहे तस्या दृष्टया पादावधार्यताम् / या त्वामुत्कण्ठते भावि-भर्तारं भाविवल्लभा // 7 // समं तेनाम्बडो वीरः सहर्ष तद्गृहे ययौ / आगतं वीक्ष्य तं नाथ-मभ्युत्थानं तया कृतम् // 8 // आसन्नं दौकितं नत्वा कन्यया बहुमानतः / उपविष्टोऽम्बडस्तस्य-मिलितो मनसा दृशा // 1 // यतः-अभ्युत्थानं तदालोके भयानं च तदागमे / शिरस्यञ्जलि संश्लेष-स्वयमासनढौकनम् // 82 // नमि न मुकई वइसणु हसीय न पूछह वत्त / तेह घरी किम जाईए रे हीयडा निसत्त // 3 // स तां पप्रच्छ हे भद्रे ! पिता ते तापसः कुतः / मिलनार्थं मया तस्य गम्यते नम्यते च सः // 8 // चिराय प्राप्तवानेष चिन्तयत्यमरावती। दृशोः पारणमत्रास्तु कन्यका बटुमब्रवीत् // 85 / / | आगच्छ तातमाहूय कथिते बटुकोऽव्रजत् / अन्वगादम्बडस्तावत् मुक्त्वा रत्नत्रयं च ताम् // 86 // / अग्रे याति बटुः स्पष्टं पृष्ठगो याति सोऽम्बडः / अर्द्धमार्गे जलस्यैव मत्स्येन गलितोऽम्बडः // 87 // | | बकेन गलितो मत्स्यो गृध्नेण गलितो बकः / सोऽपि व्योम्नि समुड्डीनो न पुष्पबटुनेक्षितः // 88|| | यावत्पश्यति पृष्टे स न पश्येत्तावदम्बडम् / द्रुतं तं वलितः पश्चात् जले सर्वत्र वीक्षितः // 8 // नैव दृष्टः कुतः सोऽपि कटिरे क्व गतोऽम्बडः / वलित्वा सोऽमरावत्याः स्वरूपं तादृशं जगौ // 10 // || // 45 // Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदेशः // तत् श्रुत्वा मूच्छिता कन्या पपात पृथिवीतले / ऊटजे बटुको गत्वा तातमाहृय चागमत् // 11 // अम्बड- AI ज्ञात्वा राजर्षिरात्मानं शोचयत्येव देवतः / यदरो दुर्लभः प्राप्तो भूयोऽभूद् दुर्लभो हहा // 12 // चरित्रम् || जनकः शीतलैवा तै-यस्या मूर्छामपाकरोत् / विरहेणाम्बडस्याम्बु-हीना मीना हि साऽभवत् // 13 // // 46 // VII क्षणं सरोवरस्थाने क्षणं च भवने वने / परं क्वापि रतिं नैव हा देव ! किमिदं कृतम् // 14 // यतः-रे विहिणा मा सजसि मा सञ्जसि माणसं जम्मं / जय जम्मं तय पिम्मं पिम्म तय मा वियोगस्स // सारसडां मोती चिणइ चिणइ तु मिल्हइ काइ / व्हाला माणस ज्यु मीलइ मीलइ तु विहडई काइ // 15 // रे विहि मग्गु किंपि तुह ज्युमनवंछित देइ / नेहइं बांधिया माणसां मा विछोह करेइ // 66 // उपालंभं यदित्थं सा देव ! रे वञ्चिता कथम् / अरोदीदसुखं धत्ते चित्ते दहति वल्लभम् // 17 // यतः-पावसिकालपवासो भज्जामरणं च जुव्वणारं मे / पढमसिणेह विओगो तिन्नि वि गरुआई दुक्खाई // 8 // _ दिणजाइ जणवत्तडी पणि रत्तडी न वि जाइ / एकरोगी नइरोगीआं सहजि सरीखुथाइ // 66 // शोचयन्ती स्वकर्मासौ कालं नयति दुःखिता। न कोऽपि बलवान् स्रष्टु-दैवं प्रति न शौर्यता // 10 // उक्तश्च- "त एवामी बाणास्तदपि वरलब्धं धनुरिदं, स एवाहं पार्थः प्रमथितसुरारातिपृतनः / // 46 // Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् // 47 // इमास्ता वृष्णीनां हरिचरणयुग्मैकशरणा, हियन्ते गोपालैर्विधरिह बलीयान् न पुरुषः // 1 // शक्तिर्यद्यस्ति कोन्तेय ! धनुः पूरय गाण्डिवम् / वयमाभीरकाः पार्थ न भीष्मद्रोणसूनवः // 2 // इतश्च गृध्रपक्षी सः कुक्षिभारसमाकुलः / कस्मिन् महति वृतेऽस्थाद्यतो नोडयितुं क्षमः // 3 // व्याधेन केनचित्तत्र भ्रमता तं विहङ्गमम् / स्थूलं दृष्ट्वा स बाणेन निहत्य पातितो भुवि // 1 // गृध्रेण च बको मुक्तो बको मीनं मुमोच सः। मीनेन मानवस्त्यक्तो जठरानलमूछितः // 5 // तादृशं मानवं दृष्ट्वा व्याधो विस्मयमाप्तवान् / सानुकूले विधौ किन्तु जन्तुर्जीवति भक्षितः // 6 // उक्तश्च-“अरक्षितं तिष्ठति देवरक्षितं, सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति / ___तस्मान्न शोको न च विस्मयो मे, पुराणमेतत् नृषु कर्मकारणम् // 7 // संजीव्य शीतवातेन प्रक्षाल्य वारिणाम्बडम् / लुब्धको लब्धचैतन्यं कृत्वा पप्रच्छ कारणम् // 8 // अम्बडो निजवृत्तान्तं निजगाद तदग्रतः। आकार्य स्वगृहे व्याधः सस्नेहं तमभोजयत् // 1 // यतः-सर्वत्र शुचयो धीराः पापाः सर्वत्र शङ्किताः / सर्वत्र दुःखिना दुःखं सर्वत्र सुखीनां सुखम् // 11 // दिने तस्मिन् स्थितस्तत्र व्याधेनावर्जितो निशि / शयितोऽजागरीत् मध्य-रात्रे पश्यति कौतुकम् // 11 // // 47 // Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेशः व्याधस्य पुत्रिका गेहा-निर्जगाम बहिस्तदा / अम्बडोऽपि समुत्थाय पृष्ठे तस्या शनैर्ययौ // 12 // / रथ्यायां पुरतस्तस्याः मिलिता तादृशी त्रयी / एका क्षत्रियतनया नामतो नागिणिः स्मृता // 13 // द्वितीया वणिक्सुता सोही तृतीया विप्रनन्दना। रामती नामतस्तिस्रो व्याधपुत्र्याऽमिलन समम् // 14 // // 48 // सर्वाः प्रत्येकमालिङ्गय कथितं व्याधकन्यया। समागच्छन्तु हे सख्यः पर्याप्तं क्रीडयाऽधुना॥ 15 // बोहित्थभवने यामो रूपिणीमिलने वयम् / प्रोचुस्ताः सखि हे साढे सहायः कोऽस्ति गम्यते // 16 // इति सर्वाः प्रकुर्वन्त्य-स्तत्र वार्ता परस्परम् / बभूवुर्बोत्कटीरूपाः क्रीडन्ति भ्रमरी ददुः // 17 // प्रच्छन्नीभूय सोऽपश्यत् यत्नश्यन्ति करोमि तत् / इति मत्वा स्वयं क्रूर-बोत्कटाऽजनि सोऽम्बडः // 18 // | रौद्र चकार बुक्कारं दधावे सोऽपि तां प्रति / अकस्मात्त्रासितास्तेन नष्ट्वा स्वस्वगृहं गताः // 16 // | मिलिताः प्रातरेकत्र गुह्य कुर्वन्ति ता मिथः / श्रात्मनामद्य कि रात्रौ संजातं त्रासकारणम् / / 120 // ज्ञायते नैव केनापि धूर्तेन भापिता वयम् / ज्ञास्यते सर्वमेवाद्य रात्रौ सद्यस्तदात्मभिः // 21 // प्रच्छन्नः श्रुतवान् सर्वं भव्यं चित्ते व्यचिन्तयत् / विगोपयामि सद्यता-स्तदा सत्योऽहमम्बडः // 22 // // 48 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् | आदेशः / / 88 // पुनस्तथैव रात्रौ ता मिलिताः करदीपिकाः। क्रीडन्त्यस्तम्भिता तेन च्छागरूपेण विद्यया // 23 // || चकितास्तास्तमित्याहु-महापुरुष ! को भवान् / अस्मान् लोके कथं दृष्ट्वा नाथ ! पातयसि स्फुटम् // 24 // | प्रातस्यिन्ति ये (चेत्) लोका वयं स्तम्भितविग्रहाः। मा विडम्बय भोऽस्मान् प्रसीद प्रकटीभव // 25 // || लजामहे वयं लोके वक्तव्यं तव तदद / मुश्च मुञ्च वयं दीनाः पादयोः पतितास्तव // 26 // | अजरूपोऽम्बडः प्राह रे रेऽहं भिडवीरकः / श्रूयतां पणबन्धेन कर्त्तव्यं तत्प्रयोजनम् // 27 // | अम्बडो मण्डयेदम्भ-मुरस्कुम्भ[स्तुम्भ]समुद्भवम् / वराको वेत्ति को मानं काष्ठकोटरकूटयोः // 28 // 4 पत्तने नवलक्षे यत् बोहित्थव्यवहारिणः। पुत्रिका रूपिणी नाम्ना तयाऽहं ददृशे पुरा // 26 // मत्तुल्या बोत्कटीरूपा समागत्य मया सह / तस्याश्च साक्षिकीभूय चेत्कुर्वन्तु ममेप्सितम् // 130 // तदाऽहमत्र युष्माकं स्तम्भ मुश्चामि नान्यथा / प्रतिपन्नं ततस्ताभि-वैचो मान्यमशक्तितः // 31 // कथयिष्यसि यत्सर्वं करिष्यामस्तथा वयम् / अस्मान मुञ्च परं वीर ! तेन मुक्ता वशीकृताः // 32 // छागीरूपाभिरेताभिः छागरूपोऽम्बडः स्वयम् / तस्या श्रावासमीन-मपूर्वमिति दृष्टवान् // 33 // // 4 // Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेश: | विष्वक् ताम्रमयो वप्रो विष्वक जलान्तखातिकाः। सप्तभूमिमितः पञ्च सहस्रसुभटेर्वृतः // 34 // | मध्ये मणिमया दीपाः स्थाने 2 ललध्वजाः। तस्मिन्नेवंविधे स्वर्णसौधे मर्कटिका भवेत् // 35 // (त्रिभिर्विशेषकम् ) अम्बडो वीक्ष्य तां बद्धां चित्ते विस्मयमाप्तवान्। किमिदं को गुणस्तस्याः सत्यमेषाय॑ते गुणैः // 36 // वायसः पञ्जरे स्वर्णे क्षिप्यते पान्थसूचनात् / तथैवंविधसौधेऽसौ मर्कटी गुणतोऽयंते // 37 // स्वदृष्टया सकलं दृष्टं ज्ञास्यते सर्वमुत्तरम् / तावदेकत्र मिलिता ताः सर्वा उपरूपिणीम् // 38 // | तया च सस्मितं पृष्टं सख्यो ! यूयमनीदृशः। छागीरूपाश्चतस्रोऽग्रे का छागी पञ्चमी पुनः // 3 // मुखमर्कटिकां दत्त्वा स्मित्वाताभिनिवेदितम् / भगिनि ! त्वं न जानासि यदस्मान् सखि ! पृच्छसि // 140 // विप्रतारयसि त्वं च किमस्मान स प्रति स्वसः ! / असौ पूर्वं त्वया दृष्टा वषे नो वेदम्यहं पुनः // 41 // रूपिण्याऽकथि सामर्ष रे रे दृष्टा मया कुतः / ततः सर्वाभिरुक्तं तत् सत्यमेषा वजा न हि // 42 // उग्रच्छागस्तवैवासौ माऽवद्य वद रूपिणि ! / स्वयं वेत्ति मुखे बषे न जाने विप्रतारणम् // 43 // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् // 51 // | तव स्वरूपमस्माक-मग्रे तेनाखिलं स्मृतम् / श्रायान्तु रूपिणीगेहे कुर्वन्तु मम वाञ्छितम् // 44 // साक्षिण्यः सन्तु मे तत्र मुञ्चामि स्तम्भितास्ततः / भिडवीराभिधो ह्येष-वरस्ते दास्यतीप्सितम् // 45 // KI, आदेशः अनेनैव वयं गाढं जडीकृत्य विडम्बिताः। प्रतिपन्नं यदाऽस्माभिः तदा मुक्ता जडीकृतात् // 46 // आगता कारणादस्मा-त्सामेतेन तेऽन्तिके / श्रुत्वेति रूपिणी भ्रान्ता प्राह बोत्कटमुत्कटम् // 47 // नाम्ना रे भिडवीर ! त्वं सत्यं कथय मे कथाम् / किमर्थं मां मुधा लोके दृष्टा पातयति स्फुटम् // 48 // अस्मादृशां बलं रात्रौ प्रभाते प्राणसंशयः। अञ्जलिस्ते स्वकीयत्वं रूपं प्रकटय प्रभो ! // 41 // त्वदर्शनेन हे वीर ! वशीभूतास्मि साम्प्रतम् / प्रसीद निजरूपेण प्रणामः पादयोस्तव // 150 // अम्बडः समयज्ञो हि संहृत्य छागरूपकम् / जातः सहजरूपेण दीप्यमानेन तत्क्षणम् // 51 // तं दृष्ट्वा मोहनं प्राप रूपिणी प्राह को भवान् / अब्रवीदम्बडो वीरः सिद्धोऽहं पुरुषः शुभे! // 52 // विश्वं गोरखयोगिन्याः प्रसादेन करे मम / दथ्यौ सा च न सामान्यः शक्तिमान्यो महानसौ // 53 // KI || रूपिणी प्राह हे सिद्ध ! वद किं वीक्ष्यते तव / अम्बडः स्माह हे भद्रे ! विना क्षुदे ण कर्णय // 54 // K Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चरित्रम् // 52 // मर्कटी नवलक्षाऽस्ति स्वस्तिकृत्तव रूपिणि / / साम्प्रतं देहि तां मह्य यथा पश्चात् ब्रजाम्यहम् // 55 // तदा जगाद सा वश्या सम्बन्धं मर्कटीभवम् / प्रथमं शृणु तं सिद्ध ! प्रसिद्धः शक्तिशक्तितः // 56 // सारचन्द्राभिधो देव-पूर्वमाराधितो मया। प्रसन्नीभूय सोऽप्येतां मह्य मर्कटिकां ददौ // 5 // प्रभावं सोऽवदत्तस्याः पार्श्वे या रक्षिता सती / ददाति सुखसौभाग्यं तस्य न स्यात् पराभवः॥५८॥ इयं प्रतिदिनं दत्ते नवरत्नानि सुन्दर ! / दिलक्षमूल्यमेकैकं तेनैवंविधरक्षणम् // 56 // वर्त्तते मर्कटी यत्र तत्राहं पार्श्ववर्तिनी / न भवामि विना चैना-मभावेन मृतिर्मम // 16 // काया रसवती यत्र छाया यत्र वनस्पतिः। वर्दीिपशिखा यत्र दृष्टिर्यत्र कनीनिका // 6 // तव चेदनया कार्य तदादौ मां विवाहय / भवन्तमन्वहं स्वामि-न्नेषा मामनुगा कपी // 62 // अम्बडः प्राह हे भद्रे ! पितरं त्वं निवेदय / अविमृश्य कृतं कर्म-शर्मणः संशयो भवेत् // 63 // यतः-सहसा विदधीत न क्रिया-मविवेकः परमापदा पदम् / वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धाः स्वयमेव सम्पदः // 6 // विचार्य विहितं कार्यं राज्यं भवति कर्तृणः / प्रपञ्चः क्रियते येन पिता ते मन्यते वचः॥६५॥ // 52 // Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेशः प्राह सा प्रथमा विद्यां गृह्णातु सिद्धिकारिणीम् / शृण्वत्र नगरस्वामी राजा विमलचन्द्रकः // 66 // तस्यास्ति विमला राज्ञी पुत्री वीरमती तयोः। केनचित्त्वमुपायेन पूर्व परिणयाशु ताम् / / 67 // उदहामि ततस्त्वां च प्रमाणमिति सोऽवदत् / विद्यां सिद्धिकरीं मह्य देहि तामप्यच्च सा // 6 // | तां विद्यामम्बडो नीत्वा दत्तां बोहित्थकन्यया / अत्याजयच्चस्रस्ताः छागीरूपं वशीकृताः // 6 // अम्बडस्य वचः कृत्वा प्रमाणं ताश्च सर्विकाः / वशीभूता गृहं जग्मु-रम्बडोऽगात्पुरान्तरम् // 170 // क्रीडार्थं वीक्ष्य गच्छन्तं हयारूढं चतुष्पथे। अजीचके नराधीशमम्बडो विद्यया तया // 71 // अम्बडोऽपि तथा कृत्वा स्वयं च जग्मिवान वने। को जानाति जनाकीर्णे राजमार्गे तथाविधे // 72 // तावता तुमुलो जातो नगरे तत्र सर्वतः / कटिरे कुटिलं कस्य बपुरे कौतुकं महत् // 73 // अजीभूतो भुवो भर्ता वार्ता सर्वत्र विस्तृता / किं कर्त्तव्यधियो लोका राजवर्गो विशेषतः // 7 // सर्वोऽपि लोको मिलितः सशोकः, सराजलोको हृदये सशङ्कः / तद्गोत्रिभीत्या नगरप्रतोलीं, दत्त्वा स्वसूत्रं कुरुते गृहस्य // 7 // // 53 // Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड बादर्श चरित्रम् // 54 // अन्तःपुर्यस्तदा सर्वा सगर्वाः अपि कातराः। पटुरेवं वरं भर्ता न पुनर्योषितां त्रपा // 7 // एवविधं पुरस्यैतत् चलचित्तं स्वरूपकम् / कियत्यपि दिने मत्वा कृपावानम्बडोऽभवत् // 77 // वनमध्ये ततो विद्यां स स्मृत्वा बहुरूपिणीम् / आत्मनः परितः सैन्यं विचक्रे चतुरङ्गिकम् // 78|| सुभटान् शिक्षयामास व्रजन्तु नगरान्तरे / स्वबुद्धया निजनाथस्य ज्ञातव्यं कथयन्तु भोः // 7 // यतः-जले तैलं खले गुह्य पात्रे दानं मनागपि / प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तार वस्तुशक्तितः // 10 // सीखिया बोलनइमविउं वरउं बिहुँ सुहमदीठ / उलटिया धन वावरइ ते केहीइ एकजनिठ 1 // 81 // | अम्बडप्रेषितास्तत्र सुभटाः प्राज्ञबुद्धयः। आगत्य नगरद्वारं पिहितं वीक्ष्य तेऽवदत् // 82 // | शृण्वन्तु नगरद्वार-पालका ! बालका इव / उद्घाटयन्तु भो वेगा-दस्मत् स्वामी समागमत् // 83|| असौ रथपुराधीशः सुश्रावेति पथि ब्रजन् / अजरूपोऽभवद्भपो नवलक्षपुरे हहा // 8 // सोऽपि वीक्षितुमायातो विद्यावान स्वजनप्रियः। कदा तस्य भवेद्भाग्यं तदोपायं करोत्यदः / 85 // श्रुत्वेति नगरद्वार-पालकैर्मन्त्रिणोऽकथि / तथैवं मुदिता भूयः सम्भूय तत्र चागमत् // 86 // // 54 // Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् | उद्घाटय नगरद्वारं प्रधानास्तद्भटैः सह / वने गत्वाऽम्बडं नेमु-रुपदापाणयो मुदा // 7 // यतः-विरला जाणंति गुणा विरला पालंति निद्धणा नेहा / विरला परकज्जकरा परदुःखे दुखिया विरला // 8 // रिक्तपाणिर्न पश्येच्च राजानं दैवतं गुरुम् / नैमित्तिकं च वैद्य च फलेन फलमादिशेत् // 86 // सत्कृतास्तेन तेऽमात्या अम्बडं च व्यजिज्ञपत् / कुरुष्व निजरूपेण भूपं रूपविपर्ययम् // 110 // एकाङ्गवरवीरत्वं परोपकृतितत्पर ! / परदुःखहर ! स्वामिन् कृपां कुरु प्रसन्नधीः // 11 // पुरमध्ये समायातु विकृतिर्यातु भूभुजः / स जगाद कथा स्तोका पूर्व पश्यामि धीसखा ! // 12 // ततः सोऽम्बड उत्तस्थौ वीरः स्वल्पपरिग्रहः / सोत्सवं पत्तने गत्वा तादृशं भूपमैक्षत // 13 // कृत्वा हाहेति सोऽप्याह-विषमा कर्मणां गतिः / कस्यचित् चेष्टितं पश्य कुर्वे भूपं निरामयम् // 14 // कि दास्यथ प्रधाना मे लभ्यते जल्पितं वचः। दातव्या सचिवैरुक्तं राज्याई राजकन्यका // 15 // अहो वीर ! किमेतच्च मूल्यं नैवोपकारिणः। दीयते यच्च तत्स्वल्पं यद्यशः सर्वतश्विरम् // 16 // यतः-न श्रीकुलक्रमायाता शास्त्रेषु लिखिता न च / खड्गेनाक्रम्य भुञ्जीत वीरभोग्या वसुन्धरा // 7 // // 55 // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् विदधातु स्वरूपेण भूपं विमलचन्द्रकम् / सोऽपि प्रमाणमित्युक्त्वा त्रिदिनं ध्यानमातनोत् // 18 // शान्तिकं भौतिकं कर्म होमहकादिपूर्वकम् / कृत्वा तजलपानेन स्वरूपेण नृपं व्यधात् // 16 // अभूत् जयजयारावः पत्तने मुमुदे जनः / वर्द्धापितोऽम्बडो राज-पत्नीभिर्मों क्तिकैस्तदा // 20 // प्रधानवचनात्तत्र नवलक्षपुराधिपः / आलिलिङ्गाम्बडं वीरं बहुसन्मानपूर्वकम् // 1 // राजा विमलचन्द्रेण कन्या वीरमती मुदा / अर्द्धराज्यं ददे तस्मै स्वोपकारी हि सोऽम्बडः // 2 // तत्तादृशं वरं ज्ञात्वा बोहित्थव्यवहारिणा। मर्कटी सहिता दत्ता रूपिणी परिणायिता // 3 // चतस्रोऽपि च ताः कन्या अम्बडः परिणीतवान् / सुखं तस्थौ कियत्कालं षटकन्यासहितोऽम्बडः // 4 // अम्बडः सर्वमापृच्छय कुशलेनाऽचलत्ततः। सुगन्धवनमागात्सोऽपश्यनत्रामरावतीम् // 5 // | रुदती निन्दति स्म स्वं मुनिकन्याऽमरावती / वरं प्राप्तं कथं दैव ! गृहीतं झटिति त्वया // 6 // धिर धिग् रे कानि कर्माणि कृतानि कटिरे मया। हस्तागतो गतो वीरो यो वृत्तो धनदोदितः॥७॥ यतः-काई किधुं दैवइं अवतार, आगलि आविओ गयु भरतार।। भवि मई कीधा केहां पाप, बालविछोहियां मुनिसन्ताप // 8 // Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् आदेश: // 57 // फोडी पालि कइ मोडी डालि, पेटिमई पाडी कह नई झाल / __ अक्षर घाल्या विहिऊंघती, देवउलंमा दिइ अमरावती // 6 // इति दृष्टाम्बडोऽरोदीन निशिथे तत्र कानने / आगात् पुष्पबटुस्तावत् दृष्ट्वा तमुपलक्षितः॥२१०॥ शीघ्रं पुष्पबटुर्गवा मुनिमाहूय चागमत् / दृष्टयाद्य दृष्टवान् वीरः पुत्री दुःखजलाञ्जलिः॥११॥ अम्बडः तं नमश्चक्रे ऋषिस्तस्याशिषं ददौ / धन्याऽमरावती कन्या यस्या वरयितेदृशः // 12 // अम्बडस्तत्र तां कन्यां तरुणीं परिणीतवान् / ऋषिराजकृतोदाहो निश्चितो भवति स्म सः॥ 13 // ततः स्थित्वा कियत्कालं कृत्वाऽयमहिषीं च ताम् / आपृच्छय मुनिराजेन्द्रमम्बडः स्वपुरं ययौ // 14 // गोरखयोगिनि आगलि सर्व-मुकी प्रणमइ नाणइ गर्व / योगिनि बोलि अम्बडवीर राजकरे तु साहस धीर॥१५॥ | अम्बडः पादयोस्तस्याः पतित्वा स्वपुरं गतः। ताभिः सकलपत्नीभिः सुखं भुङ्क्ते निरन्तरम् // 216 // // इति श्री अम्बडचरिते गोरखयोगिनीदत्तचतुर्थादेशः सम्पूर्णः // 4 // --09).-- // 7 // Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अथ पञ्चमादेशः॥ अम्बडचरित्रम् पश्चम आदेश: // 5 // प्रस्तावे पुनरागत्य योगिनी याचतेऽम्बडः / हे मातः ! पञ्चमादेशं देहि मे सोत्कचेतसः // 1 // सत्त्वसागरनामाऽस्तु तवाम्बडमहाभटः / स्वहस्तं मस्तके दत्वा जगौ गोरखयोगिनी // 2 // शृणु सौराष्ट्रदेशेऽस्मिन् देवकाभिधपत्तने / देवचन्द्रो नृपरतत्र कुरुते राज्यमुत्तरम् // 3 // बुद्धिसागरनाम्नाऽस्ति प्रधानस्तस्य तत्त्वतः। तदावासे महादीपो रविचन्द्राभिधोऽस्ति यः // 4 // तमानय तमादेश-मिव सम्बलमाप्य सः / नवा प्रमाणमित्युक्त्वा ययौ सौराष्ट्रमण्डलम् // 5 // पथि तस्यामिलविप्रः सन्मुखः सुखकाक्षिणः / अम्बडः प्राह कुत्रत्यः क्व यासि वद वाडव ! // 6 // अथोवोचत्तु भूदेवः समेतो देवपत्तनात् / उदीच्यां भूधरः शैल-स्तत्र सिंहपुरं पुरम् // 7 // राजा सागरदत्ताख्यः पुत्रः समरसिंहकः / रोहिणी पुत्रिका तस्य सुमुखीकुक्षिसम्भवा // 8 // तस्य राज्ञो भवेद्विद्या परकायप्रवेशिनी / वृद्धभावेन भूपालो राज्यं पुत्राय दत्तवान् // 1 // D // 58 // Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रम् // 56 // उवाच पुत्रिका तात | मह्य किमपि दीयताम् / नृपो विद्यां ददौ तस्यै प्रशस्यैकहृदेऽवदत् // 10 // समाकर्णय हे वत्से ! विद्यामेतां मनोरमाम् / कस्यापि गुणिनः पुंसो न शिक्षयसि यावता // 11 // विहाय भ्रातरं तावत् परस्य पुरुषस्य च / न द्रष्टव्यं मुखं ह्यषा यस्य विद्या पुनर्भवेत् // 12 // तेन विद्यावता पुंसा कर्त्तव्यं पाणिपीडनम् / तत्पितुर्वचनं नीत्वा प्रतिज्ञां पालयेत्सुता // 13 // तपसा मरणं प्रापत्सा तत्पिता कालयोगतः / तभ्राता राज्यकर्ताऽस्ति पुत्री प्रौढा कुमारिका // 14 // पालयन्ती पितुर्वाक्यं पर्वते भवनेऽथवा / कदाचित्सा गुहायां च तिष्ठन्ती रोहिणी भवेत् // 15 // तत्राहं यामि हे पान्थ ! विद्याग्रहणहेतवे। अम्बडः प्राह हे विप्र ! विद्या का तव सम्भवेत् // 16 // यतः-"विनयेन विद्या प्राधा पुष्कलेन धनेन वा / अथवा विद्यया विद्या चतुर्थ नास्ति कारणम् // 17 // उवाच वाडवो विद्या मोहिनी वर्त्तते मम / तद्विद्यया गृहीष्येऽहं सः स्माह शृणु वाडव ! // 18 // दुर्लभं दर्शनं तस्या विद्या चटति ते कथम् / विप्रेण कथितं सत्य–मुपायः क्रियते किमु // 1 // अब्रवीदम्बडो विप्र ! गम्यते तत्र पूर्वतः / विद्याऽस्त्यक्षयलक्ष्मीनां कारिणी वर्त्तते मम // 20 // // 5 // Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चम अम्बर चरित्रम् // 6 // ततः सिंहपुरे शीघ्रमुद्याने तौ च जग्मतुः / अम्बडः कूटबुद्ध-याह ब्राह्मणं प्रति सम्प्रति // 21 // | अहो पृथक पृथग मध्ये नगरं गम्यते स्वयम् / विद्यया ग्रहणोपायः सोऽपि कार्यः पृथक् पृथक् // 22 // || आदेशः | यथा चटति कस्यापि विप्रः सत्यममन्यत / को वेत्ति कस्यचिचित्तं ययौ विप्रोऽन्यतोऽम्बडः // 23 // कः काष्ठकोटरं वेत्ति, मायावीहृदयं तथा। अम्बडः प्राग् प्रतोल्यां द्राक् प्राविशत्पुरमध्यतः // 24 // कृत्वा रूपविपर्यासं मठासीनी भवेच्च सः / कथयन्ती निमित्तानि पौरलोकेन वेष्टिता // 25 // माक्षिकं मक्षिका यदत् तदन्नागरिकस्त्रियः। नाटयन्तीं महाच्यानं परितस्तामवेष्टयन // 26 // तच्छु त्वा विप्रमागत्य तां पप्रच्छ तपस्विनीम् / मनश्चिन्तितविद्यायाः सिद्धिर्भवति वा न वा // 27 // विचिन्त्य साऽऽह हे विप्र ! तव कार्य न सिद्धयति / वालयित्वा मनः सोऽगात् दृष्ट्वा लाभ हि सोद्यमः॥ 28 // साऽभूत् सर्वत्र विख्याता ख्याता क्षितिपवेश्मनि / तां विज्ञाय निमित्तज्ञां राजकन्या समाह्वयत् // 21 // यतः-पाखण्डेन मही व्याप्ता गड्डरीयप्रवाहतः / स्वार्थे भ्राम्यन्ति सर्वेऽपि न लोकः परमार्थवित् / 30 // // 60 // Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः // 61 // सा प्राह प्रेषिता दासी किं कार्य राजकन्यया / नत्वाह चेटिका मातः ! कुमारी चतुरा भवेत् // 31 // भवदर्शनसोत्कण्ठा भवद्वचनरागिणी। सदृशः सदृशाकाङ्क्षी शुभाशुभपरो जनः // 32 // उक्तश्च-मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्ग / मूर्खाश्च मूर्ख सुधियः सुधिभिः, समानशीलव्यसनेषु सख्यम् // 33 // हंसा रच्चन्ति सरे भ्रमरा रच्चन्ति केतकीकुसुमे / चन्दनवने भुजङ्गा सरिसा सरिसेण रचन्ति // 34 // ईदृग्वचनचातुर्यात् हर्षिता सा ययौ ततः। अापतन्तीमिमां दृष्ट्वा कन्या सन्मुखमुत्थिता // 35 // राजकन्या तदा तृप्ता तदाशीर्वचनामृतैः / उत्ततार ततश्चित्तात् कदाग्रहविषं किमु // 36 // यतः-वाणी जेह तणेहिं फणिविसहरविस ओतरह / जेहिं न भेद्या तेहिं ते नर मार्नु ढाढसी // 37 // भेद्या ते नरभेदीइ अणरस किम भेदंति / सेलडी जमला सीचीई एरंड गल्या न हुँति // 38 // लगित्वा पादयो राज-कन्या पीठममण्डयत् / साशीर्वचनवदना प्रसन्ना समुपाविशत् // 31 // मिथः कुशलप्रश्नेन प्रीतिर्जातोभयोस्तयोः / भोज्याय रक्षिता तस्थौ सार्यिका स्वार्थसाधका // 40 // चर्वणस्य पृथक् दन्ताः दर्शनस्य पृथक् पुनः। श्रात्मनः सा निरीहत्वं पुरस्तस्याः प्रकाशयेत् // 11 // पमान सामना // 61 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेश: // 62 // राजप्रतिग्रहोऽस्माक-मयोग्यो योगभेजुषाम् / भिक्षान्नमुचितं कन्ये ! मन्ये संसारमस्थिरम् // 42 // | धर्म एव सुखं कर्ता हर्ता सोऽपि विराधितः / जीवः खेदं मुधा चित्ते धत्तेऽन्यसुखवीक्षणात् // 43 // यतः-रे चित्त ! खेदमुपयासि कथं वृथा त्वं, रम्येषु वस्तुषु मनोहरतां गतेषु / पुण्यं कुरुष्व यदि तेषु तवास्ति वाञ्छा, पुण्यविना नहि भवन्ति समीहितार्थाः // 44 // तदाण्या रञ्जिता कन्या पण्डितां पृच्छति स्म ताम्। मातः! श्रावय ते भाग्यं वैराग्यं नवयौवने // 45 // पण्डिता प्राह हे वत्से ! मा पृच्छेर्भवचेष्टितम् / पूर्व रागस्मृतेर्लोपस्तपसो मे भवत्यपि // 46 // भूयोरपि पृच्छन्तीं तादृशीं वीक्ष्य रोहिणीम् / दध्यौ मार्जारिकाहस्ते सम्पूर्ण चटितं पयः // 47 // गल्लझलरि झाकारि कपोलकल्पनाऽधुना / कथं न क्रियते फल्गु-वल्गुवेलामवाप्य या // 48 // | विचिन्त्येत्याह सा वत्से ! मत्स्वरूपं तु पृच्छसि / अकथं कथयिष्यामि पुरस्ते भक्तिरुत्तरा // 4 // शृणु सूरीपुरस्वामी सूरसेनो नृपो जयी। तस्याहं पुत्रिका नाम्ना माणिकीजातमात्रतः // 50 // दैवयोगान्मृता माता दुःखतो बालपालनम् / सबलायुः प्रमाणेन प्रौढाऽभूवं च लालिता // 41 // // 62 // Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड पश्चम आदेशः चरित्रम् मुक्ताऽहं लेखशालायां पित्रा पठनहेतवे / चतुःषष्टिकलाशास्त्रं पठन्तीं नवयौवनाम् // 12 // | प्रेक्ष्य मां माणिभदोऽपि खेचरस्तत्र आगतः / उत्पाटय व्योममार्गेण गतो वैताढयपर्वतम् // 53 // // तेनाहं पाठिता गौरीप्रज्ञप्तीप्रमुखाः कलाः / ततो मां परिणेतु स सज्जोऽभून्मदनातुरः // 54 // तावत्तस्य सुतो भद्र-वेगविद्याधरोऽपि माम् / दृष्ट्वा रूपवती मोहा-न्ममार पितरं हहा // 55 // हाहाकारोऽभवत्तत्र तावत्तत्पुरनायकः। आगत्य वेगविद्याभृत् भद्रवेगं व्यनाशयत् // 56 // स्वरूपं तादृशं दृष्ट्वा स्वरूपं निन्दितं मया। धिग् रूपं जन्म धिक् स्त्रीणां घिग् रागं मरणं वरम् // 57 // उक्तश्च-न गणेइ कुलकलंक न गुरूवएसं न सीलपन्भंसं / मारेई पियवंधं धिद्धी रागाउरो पुरिसो // 5 // उत्पन्नो मत्कृतेऽनर्थः किमर्थं जीव्यते मया / मर्तुकामाऽभवं नूनं पार्श्ववापीमगां रयात् // 5 // तटस्थवृक्षमारुह्य तत्र पातं वितन्वती / तावद्ध गेन धृताऽहं वेगिना खेचरेन्दुना // 60 // मोहेन स्वीकृता तेन भेजे सांसारिक सुखम् / अन्यदाऽन्यस्त्रियासक्तो न जल्पयति मां स च // 61 // मयाऽसौ वारितोऽनेक-प्रकारैर्न च तिष्ठति / तदा मम समुत्पन्नं वैराग्यं भाग्ययोगतः // 62 // // 63 // Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः // 64 // यत:-"कस्सवि कोइ न इट्ठो इक्कं चिय इट्ठ अप्पणो कज्ज / कजाविडियाण परं परसंसारियाण सव्वे वि // 63 // उक्तञ्च-न गंगा गांगेयं सुयुवतिकपोलस्थलगतं, न वा शुक्तिमुक्तामणिरुरसिजा स्वादरसिकः / न कोटीरारूढः स्मरति च सवित्री मणिचयः, ततो मन्ये विश्वं स्वसुखनिरतं स्नेहविरतम् // 64 // ईदृशं चिन्तयित्वेति विरता कामभोगतः। विद्यया व्योमगामिन्या गङ्गातीर्थमगां श्रिये // 65 // जगृहे स्नातया तत्र मया मस्त्रासदर्शनम् ? / ततः प्रभृति सर्वत्र भुवि चित्रं निरीक्ष्यते // 66 // | एवं नानाविधाश्चर्यं पश्यन्तीह समागता। उद्घाटितं मया वक्ष-स्तवाग्रे वं वद स्वकम् // 67 // परपंसो मुखं वत्से ! कथं वं नैव पश्यसि / अनिष्टं केन सञ्जातं तदिष्टं हि मृगीदृशाम् // 6 // राजकन्याह हे मात-स्तातस्य वचनं ह्यदः। ज्ञायते त्वयि दृष्टायां प्रतिज्ञा पूरिताऽभवत् // 6 // | तादृशं मिलितं पात्रं पात्रं विद्यारसस्य च / विद्यां गृहाण सार्याह-किं कायं ममविद्यया // 70 // यतः-अयाचितानि दानानि देयानि किल भारत ! / अन्नं विद्या च कन्या च त्रितयं देयमर्थिने // 71 // पुनर्दथ्यो महासिद्धा सत्यमाभानको जने / रसे दानं रुषा घातो रसे याते न तु द्वयम् // 72 // कन्या प्रोक्तस्ववृत्तान्ता तस्यै विद्यां ददौ बलात्। श्रागच्छन्तीं श्रियं विद्यां को दक्षः प्रतिषेधयेत्॥७३॥ // 64 // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चम आदेशः | नत्वा कन्या जगौ मात-निदृष्टया विलोकय / एतद्विद्यायुतो भावी वरो वा न भवेन्मम // 7 // अम्बड चरित्रम् प्रसीद वद भो आर्य ! कार्येऽस्मिन् मा विलम्बय / दध्यौ सा हृदि मार्जार-मुखं पतितमूषकम् // 7 // तन्न्यायानाटयित्वाथ ध्यानाडम्बरयोगतः / सहासमाह हे कन्ये ! मन्येऽहं दृश्यते वरम् // 7 // // 65 // मध्ये स्वल्पदिनं समेष्यति वरोश्चात्रैव ऋद्धयान्वितः, कन्या हर्षितमानसाह स कुतोऽभिज्ञानतो ज्ञास्यते॥ | कृत्वा ध्यानमवोचत प्रियमयं ते पुष्पनीविस्त्रिया, हस्ते कञ्चुकमद्भुतं कुसुमं यः प्रेषयेत्सप्रियः // 77 // | व्रजामि स्वस्ति ते तां च कन्या रक्षति साग्रहम् / नोतिष्ठल्लिङ्गिनां प्रायः स्थितिरेकत्र नोचिता // 78 आपृच्छय कन्यका सैव ययौ शीघ्रगतिस्ततः / पुनरप्यम्बडो भूत्वा गतो देवकपत्तने // 7 // | उत्तीर्णो राजकीयायाः पुष्पजीविस्त्रिया गृहे / मोहिनी विद्यया तत्र तनुते जनमोहनम् // 8 // मालाकारसुता तन्वी देमती नाममोहिता / दृष्ट्वा तत्सुभगं रूपं मातरं प्रति साऽवदत् // 81 // मातरेनं मया साकं सुभगं परिणायय / प्रमाणमिति मात्रोक्तं पुनरूचेऽम्बडं प्रति // 2 // 1| वरं वरयते कन्या तत्सत्यं तव दीयते / अहो सौभाग्यभण्डार ! चमत्कारं हि दर्शय // 83 / / Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चम आदेशः | यच्चमत्क्रियते येन सर्व राजादिकं पुरे / देमती दीयमाना ते शोभते सर्वसाक्षिकम् // 84 // अम्बड प्रमाणमिति तेनोक्तं द्वितीये दिवसे ततः / राजसंसदि सेवायां कृत्वा पुष्पचतुस्सरम् // 85 // चरित्रम् | वजन्त्यां पुष्पजीविन्यां गृहीत्वा तवयं तदा / तस्य मध्येम्बडः किश्च विद्याचूर्णं मुमोच सः॥८६॥ गवा सा तत्र भूपाय ददावेकं चतुस्सरम् / वैरोचनप्रधानाय द्वितीयं च सुगन्धि यत् // 87 // आघ्राय तस्य सौरभ्यं प्रधानोभूपतीस्ततः। मस्तके दधतुः पश्चात् ययावारामिका गृहम् // 8 // अम्बडेन पुनस्तत्र पुरमन्त्रीशभूभुजाम् / प्रतोलीषु त्रिषु क्षिप्ता रक्षा सातिशया च सा // 81 // तिखा धूनयितुं लग्नाः प्रतोल्यास्तावता पुरे / सर्वेऽपि मिलिता लोकाः कोलाहलकरा भिया // 10 // इत्थमाहुर्मिथो लोका विरूपं किन्तु भावि भोः / भूतप्रेतपिशाचाद्या राक्षसाः कुपिताः किमु // 11 // (| सुदृढ नगरद्वारं राज्ञो द्वारं च मन्त्रिणः / अन्यथा कम्पते नैव वृक्षशाखेव वायुना // 12 // इत्थं पौरा भयभ्रान्ता राजानं सचिवं प्रति / कथयन्तोऽपि पश्यन्ति रक्षकास्तेऽपि मूर्छिताः // 13 // कुर्वन्ति राजवर्गीया उपचारं तयोर्घनम् / मनागपि गुणो नैव भिषग्भिभैषजैरपि // 14 // // 66 // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् पञ्चम आदेशः // 67 // द्वितीये दिवसेऽभूतां शृगालौ शब्दकारिणौ / तृतीये दिवसे नग्नौ पुरे भ्रमणशालिनौ // 15 // | चतुर्थे दिवसे रक्षा-रेणुकई मलेपिनौ / कौतुकं केऽपि पश्यन्ति दूयन्ते केऽपि चेतसि // 16 // पञ्चमे दिवसे राजा नृत्यति स्म चतुष्पथे। मर्दलं वादयेन्मन्त्री तस्मादेवं ध्वनिर्भवेत् // 17 // राजा च सचिवो भावी गई भो गर्भवागिति / एके हसन्ति शृण्वन्ति कौतुकं हि नवं नवम् // 18 // षष्ठेऽपि दिवसे राजा मन्त्री रोदति नृत्यति / बुम्बापातं च कुरुते सप्तमे दिवसे ततः॥ 11 // हतविप्रहतं दृष्ट्वा-ब्रवीदारामिकाम्बड ! / अहो वीर ! कुरु स्वस्थमतिदुःस्थं हि वजेयेत् // 10 // उक्तश्च-अत्याचारमनाचार-मतिनिन्दा हतिस्ततिः / अतिक्रोधः स्वयं हन्ति अति सर्वत्र वर्जयेत // 1 // ततोऽम्बडः प्रतोलीस्ता विद्यया व्यधित स्थिराः। जहर्ष पौरलोकोऽयं कोऽयं सिद्धपुमानिह // 2 // विज्ञाय तत्स्वरूपं हि प्रतिरूपं सुपर्वणः / सम्भूय राजवर्गस्तं प्रशस्तं प्राह सादरम् // 3 // अहो सिद्धनरत्वं हि प्रभुत्वं तव शोभते / राजानं च प्रधानं च कुरु वीर ! निरामयम् // 4 // अम्बडः कथयामास हं हो राजनरा यदि। राजानं च प्रधानं च निराबाधं करोम्यहम् // 5 // 1 // 67 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् पञ्चम आदेश: // 68 // यदा ममार्द्धराज्यं च राजकन्यां च मन्त्रिणः। रविचन्द्रप्रदीपं हि वाञ्छितं यदि दास्यथः॥६॥ | प्रमाणमिति तद्राक्यं निश्चिकायाम्बडस्ततः / शान्तिकच्यानहोमाद्या-डम्बरेण स्वविद्यया // 7 // राजानं च प्रधानं च विततान निराकुलम् / पुरे महोत्सवो जातः सर्व हर्षमवापयत् // 8 // राजवर्गीयमनुजैः पट्टराज्ञीनिदेशतः / प्रतिपन्नवचःस्थैर्यादिज्ञप्य नृपमन्त्रिणौ // 1 // अर्द्धराज्यं च मदिरावती भूपतिकन्यका / वैरोचनप्रधानस्य पुत्री की रमञ्जरी // 11 // | रविचन्द्रप्रदीपञ्च सर्व तस्मै ददे मुद्दा / स एवारामिकापुत्री-देमती परिणीतवान् ।११।त्रिभिर्विशेषकम् // | पञ्चविंशतिदिवसांस्तत्र स्थित्वाऽम्बडो महान् / आपृच्छय स्वजनं सर्व स्वीयं नीत्वाऽम्बडोऽचलत् / 12 // आगासिंहपुरं सोऽपि ससैन्यः सपरिग्रहः / तावदग्रेवजच्चैकं मृतकं पश्यति स्म सः // 13 // श्रापतन्तीति तदनु रुदन्त्यका नितम्बिनी / महाविलापं कुर्वन्ती दृष्ट्वा तामम्बडोऽवदत् // 14 // कथं रोदिषि हे नारि ! जातं हरति चान्तकः / अनेके राजरकाद्या याता यास्यन्ति यान्ति च // 15 // यतः-पुरन्दरसहस्राणि चक्रवर्तिशतान्यपि / निर्वापितानि कालेन प्रदीप इव वायुना // 16 // // 68 // Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः अहमारामिका वोर ! मृतोऽसौ नन्दनो मम / देवेन दण्डिता तेन करिष्ये काष्ठभक्षणम् // 17 // अवादीदम्बडो मूर्खे ! मरणं केन वार्यते / कल्पे मरिष्यसि त्वं च साह सत्यं वदस्यहो // 18 // उक्तश्च-दीहरपवाससहपंथिएण, धम्मेण कुणह संसग्गं / सव्वो जणो नियत्तइ, तुमए सह तेण गंतव्वं // 16 // सर्वेषामेकसरणिः संसारस्तेन कथ्यते / आकर्णय सकर्ण | वं मातुर्मोहः सुते महान् / / 120 // सदैवमस्य पार्वेऽहं मरणे दैवयोगतः / नाभूवमेकवारं स मया साकं न जल्पितः // 21 // तेनाऽहं काष्ठभक्षं च करोमि किं करोमि भोः। अहो मोहपिशाचो हि असतो राजरङ्कयोः // 22 // | अम्बडोऽवक् कथमपि त्वं मरन्तीह तिष्ठसि / साऽभाषत दुःखसखा त्वमेको वीर ! वर्त्तसे // 23 // | एककृत्वाऽधुना पुत्रो यदि मां जल्पयत्ययम् / काष्ठभक्षं न कुर्वेऽहं मृतो जाने न जीवति // 24 // इति निश्चित्य तदाक्य-मरक्षदम्बडः शबम् / परकायप्रवेशस्य विद्यया तमजीवयत् // 25 // | सती विद्या गता कार्ये रम्यः स्यात्सङ्ग्रहः कृतः / सर्पसङ्ग्रहसान्निध्याद् भर्ता हि गृहमागतः॥२६॥ // 66 // Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बर चरित्रम् पश्चम आदेश: // 70 // त्रा भृतकं तावदुत्थाय जगाद मातरं प्रति / कथं रोदिषि हे मात-मरणं प्राप्तवानहम् // 27 // श्री सुखेन जीव जननि ! मा रोदीर्वज वेश्मनि / मृतो न जीवति प्रायः कायः पतति निश्चितम् // 28 // निगद्य ति तथाऽभूवं मृतकं वह्निसात्कृतम् / विस्मिताऽऽरामिका चित्ते हर्षिताम्बडमब्रवीत् // 21 // परोपकारप्रवण ! मम जीवितदायकः / समागच्छतु साकार्य-गृहेऽगादम्बडान्विता // 130 // अम्बडं प्रीणयामास गौरवेण च मालिनी / अम्बडः प्राह तां राज-भवने यासि वा न वा // 31 // तयोचे यामि तत्रैव राजकीयास्मि मालिनी / साऽगादम्बडवृत्तान्तं सुश्राव राजकन्यका // 32 // परकायप्रवेशस्य विद्यया मृतजल्पनम् / आरामिकामुखे श्रुत्वा रोहिणी मुमुदेतराम् // 33 // तदाऽस्य रोहिणी क्षेमसन्देशमकथापयत् / अम्बडोऽस्यै करे तस्याः प्रेषीत्कुसुमकञ्चुकीम् // 34 // भ्रातुः समरसिंहस्य सन्धां पूर्णा स्वसाऽवदत् / मालिनीगृहसंस्थेन विवाहय वरेण माम् // 35 // सम्पूर्णप्रतिज्ञा कन्यां सुरङ्ग पर्यणापयत् / अम्बडः प्रीणितस्तेन चतुरङ्गचमूवृतः // 36 // रोहिणीप्रमुखाः कन्याः चतस्रस्तत्समन्वितः / योगिनीं साक्षिकं कृत्वा सुखं भुङ्क्ते पुरं गतः॥३७॥ // 7 // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् अनेकविद्याधनपूरितो हि, सत्त्वाप्तसिद्धिः सुकृतैकबुद्धिः / तद्योगिनी वाक्यवशोऽम्बडश्च, द्वाविंशतिक्षेत्रसुखानि भुङ्क्ते // 138 // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नसरिविरचिते अम्बडचरिते गोरखयोगिनीदत्तपञ्चमादेशः सम्पूर्णः // 5 // आदेश: // 71 // // अथ षष्ठादेशः॥ -+| पूर्यादेशं प्रकृतिविषमं योगिनीगोरखाख्याः पादौ, नत्वा पुनरपि वचः प्रार्थयेदम्बडोऽयम् / सामान्योऽसौ नहि बहिरहो मध्यतः सत्त्वशाली, ताहग ज्ञात्वा मुदितहृदया सैव वाक्यं प्रदत्ते // 1 // अम्बडः समये प्राह सहास्यानम्य योगिनीम् / देहि मे षष्ठमादेशं सन्देशमिव सत्वरम् // 2 // योगिनी स्माह हे वीर ! पुरे कर्मकरोडिके / देवचन्द्रनृपस्तत्र कुरुते राज्यमुत्तरम् // 3 // |1171 // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 72 // सोमेश्वराभिधो विप्रः पुरोधास्तस्य धार्मिकः / गृहे तस्यास्ति सर्वार्थशङ्करं दण्डमानय // 4 // तथेत्यस्या वचो नीत्वा सखीवत्सहसोऽचलत् / व्रजतः पथि तस्यैका समागान्महती नदी // 5 // | तत्र चित्रं जलस्योर्ध्वं रम्भास्तम्भविनिर्मिताम् / कदलीदलसच्छिन्नां मठीमेकां ददर्श सः // 6 // तन्मध्ये हरिणी चैका स्वर्णशृङ्खलयन्त्रिता / तस्याः पार्वे स्थितो योगी व्यञ्जयेद्रातमुन्मुना // 7 // तं रक्षकमिवान्विष्य दध्यौ किमपि कारणम् / ज्ञास्यते पुनरेषो हि हन्तव्यो नैव पातकम् // 8 // सत्त्वे सिद्धिर्विचिन्त्येति कृतवान् रूपमुक्कटम् / तं धृत्वा गगने निन्ये विद्यया स्तम्भिता मठी // 6 // यतः--तां फणिंद फणमंडप मांडइ, जां पडइ गरुडतणइ नवि फांडइ / . ताम हस्ति मदिमावत गाजइ, जाम केसरि नाद न वाजइ // 10 // मल्लयुद्धं तयोर्जात-मम्बडो बलवत्तरः / आस्फाल्य पर्वते तेन हतो योगी हि पातकी // 11 // जे योगी हूँतु सपराणु अंबडि कीधु तेनिपराणु।। परवंचक कहु किमऊबलइ पापी पाप आवी नइ मीलइ // 12 // जयं प्राप्यागमन मठयां पश्यति स्वर्णपूरुषम्। श्वेता रक्ता च कम्बे हे कुण्डलं चन्द्रमण्डलम् // 13 // // 72 // Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेशः बुद्धिमान्नम्बडो दृष्ट्वा रक्तकम्बां करेऽकरोत् / तत्स्पृष्ट्वा हरिणीरूपा जाता स्त्री नवयोवना // 14 // लक्ष्मीर्यास्यति गोविन्दे वीरश्रीवीरमन्दिरे / यस्य यत्र भवेत्स्थानं स तत्रैवाश्रयेत्खलु // 15 // अम्बडस्य यदासैव लभ्यास्यात्तमवाप्नुयात् / योगिनः कथमन्यस्य तुम्बिका रङ्कगा यथा // 16 // ____ उक्तश्च-प्राप्तव्यमर्थ लभते मनुष्यो, देवोऽपि तल्लङ्घयितुं न शक्तः। ___ तस्मान्न शोचा(को)न च विस्मयो मे, यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् // 17 // रूपेण मूर्तिमदम्भा-रम्भागर्भसकोमलाम् / सर्वाभरणसम्पूर्णा तां दृष्ट्वा समवणेयत् // 18 // यतः-वक्त्रं पूर्णशशी सुधाऽधरलता दन्ता मणिश्रेणयः, कान्तिः श्रीगमनं गजः परिमलस्ते पारिजातद्रुमः / वाणी कामदुधा कटाक्षलहरी सा कालकूटच्छटा, तत्कि सुन्दरि ! चैतदर्थममरैरामन्थिदुग्धोदधिः / / 16 // || विस्मितः प्राह हे भद्रे ! स्वरूपं वद साऽवदत् / धन्यस्त्वं कर्मणा प्राप्तो यद्वैरं मम वालितम् // 20 // कन्ये ! कस्य सुता नृपस्य चटिता हस्ते कथं योगिनः, कः स्वर्णः पुरुषः सकुण्डलमिति श्रुत्वा शरद्वारिदृग् / सैवं प्राह सगद्गदं गुरुतरं दुक्खं गतं मामकं, भाग्यं मेऽद्य परोपकाररसिक ! प्रस्तावमाकर्णय // 21 // // 73 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 74 // अकलौ कलिङ्गदेशे पुरं भोजकटाभिधम् / वैरसिंहनृपस्तत्र प्रियाऽस्य कमलाभिधा // 22 // / तयोरेकः सुतः प्रौढो नाम्ना समरसिंहकः / सुता रत्नवतीत्यस्मि श्रूयतां वृत्तमग्रतः // 23 // तत्राहं विपरीतशिक्षितहयं चारुह्य यामि द्रुतम् , नित्यं पारदपूरिते डमडमे कूपे तदामन्त्रणे। पार्वे कुत्र ममैव रूपमसमं दृष्ट्वा स्मरातॊऽभवत् , योगी सोऽपि समागमत् नृपसभामध्येऽन्यदा चित्रकृत् // 24 // रम्भास्तम्भं सभामध्ये प्रकटं कृतवान् स च / आसनादिप्रतिपत्त्या-ऽत्यर्थं भूपेन सत्कृतः // 25 // कन्थामुद्रादिकर्योगा-भरणैर्भूषिताङ्गकम् / ईदृशं योगिनं दृष्ट्वा चमच्चक्रे सभाजनः // 26 // उपविश्य स्वयं पीठे-ऽध्यात्मसाधनमाश्रयेत् / अकलं योगिनो गेहं स(आपरं तादृशो नहि // 27 // चच्चरे चचरे रामः पर्वते पर्वते शिवः / शुकवत्तत्त्वतो नैव कालज्ञानं प्रकाशयेत् // 28 // राजा पप्रच्छ योगीन्द्र ! भवान भ्राम्यति भूतले / किं दर्शय चमत्कारं दर्शयामिति सम्प्रति // 26 // // 74 // Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् षष्ठ आदेश: // 75 // योगी जगाद नरनायक ! पश्य रम्भा-स्तम्भ विदारय तथा नृपतिश्चकार। मध्यात्ततो निरगमन्नवयौवनस्त्री, दृष्ट्वा सभानरपतिश्च चमच्चकार // 30 // इन्द्रजालमथो सत्यं राजा पप्रच्छ योगिनम् / उवाच स च राजेन्द्र ! सत्यमेतत् कथां शृणु // 31 // राजन् ! राजपुराधीशो मणिवेगाख्यखेचरः। रत्नमाला सुता तस्य तद्योग्यवरचेतसः // 32 // वां तस्या रमणं योग्यं ज्ञात्वा तां स्तम्भगर्भगाम् / विधायानयमत्राहं त्वं युधिष्ठिरसत्त्यवाक् // 33 // वाचा सबल हे राजन् ! प्रसिद्धिस्तव सर्वतः / स्वीकुर्यास्त्वं ततः पूर्व मदीयवचनं कुरु // 34 // राजा जगाद योगीन्द्र ! कार्यं वद विधीयते / सोऽवदद्रिषकुम्भाभो-मुखे मधुपिधानकः॥ 35 // परकार्यकराः स्वल्पा निजकार्यकरा घनाः / धन्यस्त्वमेव राजेन्द्र ! त्वया राजन्वती मही // 36 // कृष्णाष्टमीदिने सन्ध्या-समये सावधानतः / श्रीपर्णिका नदीतीरे विद्यां साधयतो मम // 37 / / सातव पुत्रिका साधं वं भवोत्तरसाधकः / वचनं देहि मे राजन् प्रमाणमिति सोऽवदत् ॥३८॥युग्मम् // मुग्धत्वादिति राजानं पातयित्वा वचश्छले / ययौ योगी यथास्थानं श्रुत्वा दूयन्ति मन्त्रिणः॥३१॥ // 75 // Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पष्ठ आदेश: राजसूत्रधरास्ते हि भक्त्या भूपं व्यजिज्ञपत् / स्वामिन् ! विपर्ययो जातः सहस्रचक्षुषस्तव // 40 // अम्बड ईदृशः कुटिलो योगो धार्यते नैव कोविद ! मुखे मिष्टो मनोदुष्टो कामिनो दुर्जना इव / / 41 // चरित्रम् | उक्तश्च-जिह्व कैव सतां मुखे फणभृतां स्रष्टुश्चतस्रो मता, ताः सप्तैव विभावसोनियमिता षट्कार्तिकेयस्य च / // 76 // पौलस्त्यस्य दशा भवत्फणपतेजिह्वा सहस्रद्वयं, जिह्वालक्षसहस्रकोटिनियता नो दुर्जनानां मुखे // 42 // हन्त रत्नवतीं पुत्री कथं तां ग्राहयेत् सह / ज्ञेयः कपटगर्भोऽयं प्रजापाल ! निहालय // 43 // 4. राजा जगाद सत्यं भो युष्मदीयं वचो हितम् / तस्य वाचा मया दत्ता का पृच्छा जलपानतः॥४४॥ यतः-दिग्गजकूमकुलाचल-फणिपतिविधृतापि चलति वसुधेयम् / प्रतिपन्नममलमनसां, न चलति पुंसां युगान्तेऽपि / / 45 // | इति चिन्तयतो राज्ञः तत्सन्ध्यायां नरेश्वरः / आयातु कथयन्नैवं स योगी शीघ्रमागतः // 46 // वत्सलः प्रतिपन्नेषु सज्जो गन्तुमभून्नृपः / योगिना जल्पितो राजन् ! क्व पुत्री सहगामिनी // 47 // | नरेन्द्रः प्राह योगीन्द्र ! सा लध्वी किं करिष्यति / क्षमोऽहं सर्वकार्येषु जगौ योगी सुनिष्ठुरम् // 48 // // 76 // Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ अम्बडचरित्रम् आदेश: // 77 // वाचा भ्रष्टो भवान् भावी वचनं जीवनं सताम् / तस्मिन् याते मृतप्रायः कायवानपि तादृशः॥४॥ यतः-उत्तरदिशि नवि उन्नईइ उन्नईइ तु वरसेइ / सुपुरिसवयण न उच्चरइ उच्चरइ तु करेइ // 5 // अस्मदीया पुनर्विद्या तां विना नैव सिद्धयति / योगिनं कथ्यते नैव कथ्यते चेद्विधीयते // 51 // | यदि त्वं शोभानाकाङ्क्षी तदा पालय मे वचः / अन्यथा यामि श्रुत्वेति सभयं तां नृपोऽग्रहीत् // 52 // ततो राजा सुतायुक्तो जगाम योगिना समम् / श्रीपर्णी च नदीतीरे गिरिस्तत्र मठी भवेत् // 53 // पार्वे स्थाप्य नृपं योगी वने गत्वा समागमत् / कम्बाद्वितयमानीय वह्निकुण्डं चकार सः / / 54 // आक्षिपेत् मां मठीमध्ये हताऽहं श्वेतकम्बया। मृगीभूतं नियन्त्र्येति स ययौ वह्निकुण्डके // 55 // K ततो होमादिकं कर्तुं प्रवृतः सोऽपि वीक्ष्य तत् / यः किंकर्तव्यतामूढः प्रोढः किं कुरुते नृपः॥५६॥ यतः-अहगिलइ सिडइ पिट्ट', नहु गिलइ गलंति नयणाई / अहविसमा कजगइ अहिणा छच्छंदरी गहिया // 57 // मन्त्रोचारं पुनः कुर्वन् समाप्ते होमकर्मणि / योगी जजल्प राजानं, गृहाण गुटिकात्रयम् / / 58 // वह्निकुण्डे त्रयं हुत्वा स्वयं नामय मस्तकम् / त्रिवारं प्रणमन् बहि विद्या सिद्धयतु योगिनः // 51 // // 77 // Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् // 70 // श्री इत्युक्ते च तथाऽकार्षी-द्राजा यावदधोऽभवत् / दुष्टेन योगिना तावत् हत्वा क्षिप्तः स पावके // 60||||| द्वात्रिंशलक्षणो राजा सुवर्णपुरुषोऽभवत् / तं गृहीत्वा मठीमध्ये मुमोच मम सन्निधौ // 61 // आदेशः बी ततो विद्याप्रभावेण गुप्तमार्गेण यो मठीम् / चालयित्वा जलस्योवं रतिया पार्श्वतः स्थितः॥६२॥ समेतो मम भाग्येन पितुर्वैरमवालयत् / सनाथा नाथ ! चाभूवं तवापूर्ववलं महत् // 63 // अम्बडेन ततः पृष्टं वृत्तान्तस्तावकः श्रुतः / हे भद्रे ! मूलवृत्तान्तं कुण्डलस्यावगच्छसि // 64 // तदा रत्नवती प्राह ममैवागच्छतः पथि / योगिना कथितं काली-देवताराधिता मया // 65 // प्रसन्नीभूतमनसा ददौ मे स्वर्णकुण्डलम् / प्रभावोऽस्य कथितो यद् गगने यदि मुच्यते // 66 // चन्द्रवत् पृथ्वीपीठे तेजः सृजति सर्वतः / श्रुत्वेति सर्ववृत्तान्त-मम्बडोऽभूत् स्वरूपभाक् // 67 // दीप्तमम्बडवीरस्य रूपं दृष्ट्वा व्यचिन्तयत् / न सामान्यो महासत्वः कन्या तं प्रत्यभाषत // 68 // स्वामिन् ! त्वमेव मे भर्ता हर्ता मे सङ्कटस्य च / मां स्वीकुरु स्वयं देव ! यथा वलितवस्तुवत् // 6 // // 78 // गान्धर्वेण विवाहेन कन्यां रत्नवी मुदा / अम्बडः परिणिन्ये च सा पति प्रत्यवोचत // 70 // Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 7 // हे नाथ ! मत्पितू राज्ये गम्यते तत्र निश्चितम् / भ्रातुः समरसिंहस्य वृत्तान्तं तस्य कथ्यते // 71 // / | प्रमाणं कथयित्वेति नीत्वा रत्नवतीं सह / गतो गगनमार्गेण तदुद्यानमवातरत् // 72 // | परितः पश्यति पुरं वेष्टितं बहुवैरिभिः / रत्नावत्याकथि स्वामिन् ! गोत्रिणो नवशत्रवः॥ 73 // एते नृपं मृतं श्रुत्वा ग्रहीतुमागताः राज्यम् / निर्जितास्ते विलोक्यन्ते स्वामिस्तव बलं महत् // 7 // अम्बडः प्रेरितः पत्न्या करे नीत्वा च मुद्गरम् / दधावे गगने कृत्वा रौद्र रूपं भयङ्करम् / / 75 // दृष्ट्वा तं राक्षसप्रायं भीता नष्टा दिशोदिशम् / जितं 2 नभो वाणी समुत्पन्नाः समन्ततः // 76 // प्रतौलीमुत्कला जाता रत्नवत्यन्तरे गता। भ्रातुः समरसिंहस्य मिलिता रोदिति स्म सा // 77 // पितुःस्वरूपमाकर्ण्य स्वसारं साश्रु रब्रवीत् / किं करोमि नरः प्रौढः प्रेर्यमाणः स्वकर्मणा // 7 // निवर्तयित्वा तच्छोकं पप्रच्छ भगिनीं वरम् / शत्रुजेता स कुत्रास्ति साऽऽहोद्याने स्वसुः पतिः // 7 // मुदा समरसिंहोऽपि सोत्सवं सन्मुखं ययौ / अम्बडं बहुमानेन निजावासे समानयत् // 8 // अम्बडः प्रीणितस्तेन राज्ये समरसिंहकम् / अस्थापयद् रत्नवत्या सहितस्तत्र तस्थिवान् // 81 // KI // 7 // Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ अम्बर चरित्रम् आदेशः // 80 // | अन्यदा पश्चिमे यामे रजन्यां वासवेश्मनः / अनुक्त्वा रत्नवत्याश्च निरगात् यत्नतोऽम्बडः // 82 // | अतिक्रान्तः पथः कूर्मकरोडिनगरं ययौ / विप्रं सोमेश्वरं गेहं सोऽपृच्छवनपालकम् / / 83 // अजल्पत् सोऽपि हे पान्थ, सोमेश्वरसमा द्विजाः। अत्रैव बहवः सन्ति किमभिज्ञानमस्ति ते // 4 // न वेत्ति तच्च मौनेन जगाम नगरान्तरे / कामदेवस्य भवने स्थितो रात्रौ च सुप्तवान् / / 85 // नायाति निद्रानयनेऽम्बडस्य, सोमेश्वरस्यैव हि चिन्तयाऽपि / प्रासादमध्ये वनिता च काचित्, समागता तावदपश्यदेषः // 86 // शनैः 2 तच्चरितं विलोकते, प्रासादमध्यादरपुत्रिका त्रयी। स्त्रीरूपमादाय समागमत्तदा, तां कन्यकां प्रीतिभरादवोचत // 7 // हे चन्द्रकान्ते ! कथमद्य रात्रौ, विकालमागादद सा जगाद। राजालयात् हे सखि ! साम्प्रतं मे, तातो हि सोमेश्वर आजगाम // 8 // उत्सूरं तेन मे जातं पुत्रिकाभिः ततः समम् / चन्द्रिका नर्तितुं लग्ना कामदेवाग्रतो मुदा // 8 // // 0 // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् षष्ठ आदेश: // कुर्वन्तीष्वपि निःशङ्क विनोदं तासु तावता / अम्बडोऽयं सहुङ्कारं कृत्वा सहासमुत्थितः // 10 // || अरेकारे निगो ति त्रासितास्तेन दूरतः। अन्योन्यं सभयं प्राहु-रकाले कस्य रौद्रवाक् // 11 // स्थित्वा क्षणान्तरं कन्या चन्द्रकान्ता जजल्प तम् / 1 // कोऽस्ति मध्ये निशीथेऽस्मिन् किनामा कठिनस्वरः // 12 // अम्बडः प्राह हे बाले ! पश्चिमात्पथिकोऽस्म्यहम् / पञ्चशीर्षकनामाहं प्रासादे कोणके शयी // 13 // पुत्रिकाः प्राहु रे कान्ते ! सोमेश्वरसुतां प्रति। अद्य वासवदत्ताया मिलनाथं हि गम्यते // 14 // श्रात्मनां सङ्गमे तस्याः सञ्जाता दिवसा घनाः / सहायो वीक्ष्यते कोऽपि गृह्यते पथिको ह्यसौ // 15 // एकाहं सममस्माभिः पञ्चशीर्ष ! समेष्यसि / सारथिर्भव पाताले गमिष्यामो वयं ध्रुवम् // 16 // एष्यामि यदि मे वाञ्छा विद्यां दास्यथ हे स्त्रियः। प्रमाणीकृत्य तस्योक्तं ताः सर्वा बहिरागताः॥१७॥ आरूढा बालकक्रीडा-सदृशीं शकटीं च ताः। श्रपश्यदम्बडश्चित्रं विना वृषभयोजनम् // 18 // | आगच्छोपविशात्रैव वदति स्माम्बडस्तदा / विना धुर्यं कथं यानं तदुक्तं किं करिष्यसि // 16 // // 8 // Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेशः // 82 // तत्रारूढस्य तदाक्यात् तत्करे जोत्रमर्पयत् / असौ यन्ता न सामान्यो-भयमस्यास्ति नात्मनाम् // 10 // भणित्वा मन्त्रमेताभि-रुक्त रे शकटि ! व्रज / साऽचलद्वायुवेगेन रङ्गन किमु तत्पथि // 1 // अर्द्धमार्गे गता यावत् स्तम्भिता तेन विद्यया / न चलेप्रेरिता ताभिः ज्ञातं सारथिकारणम् // 2 // उवाच सारथिरियं विद्या मे यदि दीयताम् / तदा चलत्यसौ नूनं नान्यथा सत्यमेव च // 3 // | विमृशन्ति मिथः सर्वाः किं युक्त समयो बली। चिन्तयित्वेति तस्मै ता ददुर्विद्यां तदर्थिताम् // 4 // ततः सारथिना मन्त्रैः शकटी चलिता रयात् / साऽपि वासवदत्ताया गृहेऽगादिव मोहिता // 5 // एषो ह्यधिक श्रात्मभ्यो दृश्यते ता अचिन्तयत् / स्वविद्या जगृहे येन सिद्धेनार्द्धपथे यतः॥६॥ | तासां सन्मुखमागत्या-मिलदासवदत्तिका / कुशलप्रश्नसंश्लेष-सुधापल्लविता मिथः // 7 // दत्तानि नागपत्राणि तया वासवदत्तया / सर्वाणि फलपुष्पाणि सारथेस्ताः करेऽपयत् // 8 // तं दृष्ट्वा सविधे तासां पृष्टं वासवदत्तया। असौ कः पुरुषोऽपूर्वः ता ऊचुः पथिको ह्ययम् // 1 // तावदासवदत्ताया नागश्रीगृहतो मुदा / श्रामन्त्रणं समायातं स्वामिन्यायातु सत्वरम् // 110 // ||82 // Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् षष्ठ आदेश: // 3 // उपविष्टाऽस्ति नागश्री-श्चञ्चचतुरिकान्तरे / ततः सोत्कण्ठहृदया गतास्तास्तत्र सोऽम्बडः // 11 // | नागश्रिया समुत्थाय सर्वासां स्वागतं कृतम् / चन्द्रकान्ता च पत्राणि तदाऽयाचत सारथिम् // 12 // | क्षिप्त्वा तत्फलचूर्णं च वालयित्वा सबीटकम् / अप्पयच्चन्द्रकान्तायाः कान्ताया इव वल्लभः॥१३॥ | बीकटं चर्वयित्वा च प्रीत्या विप्रसुता मनाक् / ददौ नागश्रिया हस्ते तत्क्षणं भक्षितं तया // 14 // नागश्री रासभी जाता व्याकुला विप्रनन्दना। चतस्रः तावता यन्त्रनिहताः श्वेतकम्बया // 15 // निहत्य सारथिः पश्चा-दारुह्य शकटीं ययौ / पुरे चतुष्पथे चित्रं लोकानामुदपादयत् // 16 // नागश्रीर्गर्दभी जाता मृगी चान्या चतुष्टयी। पाताले तुमलो जातः कुटिलं केन निर्मितम् // 17 // सर्वत्र शोधनं कर्तु लग्ना पातालयोषितः / न ज्ञायते परं कोऽपि तावदासवदत्तया // 18 // कथितं चन्द्रकान्तायाः सारथिस्ते न दृश्यते / शकटी सापरं नास्ति स कृत्वा कुटिलं ययौ // 11 // यतः-तां भल्ला भल्लि मकरइ जां भल्ला न मलंति / भल्ला नई भल्लां मिलइ तु भल्ला काइ करंति // 120 // तद्धर्त्तचेष्टितं ज्ञात्वा किं कर्त्तव्यमनास्ततः / पश्चान्मृगीचतुष्कं तत् गतं कर्मकरोडिके // 21 // // 83 // Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 84 // प्रासादेऽस्थात् त्रिकं मृग्या चन्द्रकान्ता मृगी पुनः / सोमेश्वरगृहे याता धूर्त्तवञ्चनलजिता // 22 // | लोकाः कौतुकिनस्तत्र पश्यन्ति च हसन्त्यहो / आरूढः शकटीं याति विनाधुर्यो महानयम् // 23 // चन्द्रकान्ता मृगी जाता सोमेश्वरदिजाङ्गजा / तस्या वृत्तान्तमाकण्ये राजा मनसि पीडितः // 24 // पुरोहितस्य पूज्यस्य सुता जाता मृगी हहा।। विदग्धः कोऽपि मुग्धोऽस्याः यः करोति प्रतिक्रियाम् // 25 // विज्ञाय पौरलोकोक्त्या तादृशं पञ्चशीर्षकम् / राजा विस्मयमापन्नो गत्वा तं प्रत्यभाषत // 26 // हे सिद्धपुरुष त्वं च पुरमध्ये चतुष्पथे / शकटीं च विना धुर्यो चालयिष्यसि वायुवत् // 27 // कस्त्वं क्रीडसि देवो वा सिद्धविद्याधरोऽथवा / प्रसादं कुरु मौनेन स्थित्वा स क्षणमब्रवीत् // 28 // श्रहं विद्याधरो राजन् ! विद्यया क्रीडयाम्यहम् / ततो राजादिलोकोऽस्य पादयोरलगत्तराम् // 21 // स्वामिन् ! स्वकीयरूपेण कृपया प्रकटीभव / क्षणं स्थित्वाऽम्बडश्चक्रे दिव्यरूपं निजं तदा // 13 // असौ विद्याधरः सत्यं विचिन्त्येति नृपोऽवदत् / अहो त्वं सिद्धपुरुषः परकार्ये सुरद्रुमः // 31 // // 4 // Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ आदेश: | क्रियते तव विज्ञप्ति-विनयेन सुदेववत् / प्रज्ञप्तिप्रमुखा विद्या यस्य स्यात्स महाधनी // 32 // अम्बड ___उक्तञ्च-न चौरहार्य न च राजपाद्य, विदेशगमने न च भारवाहम् / चरित्रम् एतद्धनं सर्वधनप्रधानं विद्याधनं सत्पुरुषा वहन्ति // 33 // | इष्टाऽसौ मम पूज्योऽपि सोमेश्वरपुरोहितः / चन्द्रकान्ता सुता तस्य तत्सखी पुत्रिकात्रयी // 34 // ताः चतस्रो मृगी रूपा विरूपा केन निर्मिता / कुरु स्वभावरूपेण-दास्यामो वाञ्छितं तव // 35 // | राज्यार्द्ध राजकन्या च दातव्या देवसुन्दरी / इति राजवचो नीत्वा सोऽवददर्शयन्तु ताम् // 36 // समेहि सोमेश्वरवेश्मनीह, जाता कुरङ्गी तनया सुरङ्गी। उक्ते सति क्षमापतिना तदैवं, तत्रागमत् सच्छकटीस्थितोऽयम् // 37 // || तयोपलक्षितः सोऽयं सचिह्न पञ्चशीर्षकम् / कथितं भोः कृतं भव्यं वयं लोके हि लजिताः // 38 // || अम्बडः प्राह हे चन्द्र-कान्ते ! मम समर्पय / सर्वार्थशङ्करं दण्डं सर्वकार्यस्य साधकम् // 3 // १.न चौरहार्य न राजहार्य न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी / व्यये कृते वर्द्धति नित्यमेव, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्-इत्यन्यत्र / // 5 // Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पष्ट आदेश: तदा तव मृगीरूप-मपाकुर्वे च साऽवदत् / कथं जानासि हे वीर ! तं दण्डं मम पार्श्वगम् // 14 // अम्बड जाने गोरक्षयोगिन्या-श्चमत्कृत्याऽऽह विप्रजा। अङ्गीकुरु पुरा नाथ ! मामेताश्चतुः पुत्रिकाः // 41 // चरित्रम् जीवितेश ! चिरं जीव यत्राहं तत्र दण्डकः / सन्जीकुरु स्वरूपेण मृगीरूपेण लज्यते // 42 // // 86 // | कथं विगोपिता लोके किमस्माभिविनाशितम् / यदि गोरखयोगिन्या मान्योऽस्माकमपि प्रियः॥४३॥ | कृपां कृत्वाऽम्बडस्तस्मात् प्रसादादानयच्च ताः। त्रिदिनी ध्यानमाधाय रक्तकम्बां करेऽग्रहीत् // 44 // पञ्चशीर्षस्तया हत्वा मन्त्रोच्चारणपूर्वकम् / तासां च चन्द्रकान्ताया मृगीरूपमपाहरत् // 45 // ततश्चतसृभिस्ताभि-दिव्यरूपाभिरम्बङः / वृत्तो लोकसमक्षं यः सर्वार्थसिद्धिदण्डभृत् // 46 // पुरोधा मुमुदे राजा निजचित्ते विसिष्मिये / तादृग विद्याधरं वीक्ष्य तस्मै राजसुतां ददौ // 47 // प्रतिपन्नो वचःपालो भूपालोऽपि पुरोहितः / अम्बडं प्रीणयामास पञ्चपत्नीसमन्वितः॥४८॥ श्रन्यदा चन्द्रकान्ता तं कान्तं काले व्यजिज्ञपत् / पाताले स्वसखीलोके दृश्यतेऽत्यसमञ्जसम् // 4 // लज्जते तेन हे नाथ ! नागश्रीस्तादृशी खरी / तथा करोतु रूपेण सुखेन जायते सखी // 150 // 86 // Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् आदेशः // 7 // अम्बडो वचसा तस्याश्चन्द्रकान्तासमन्वितः। ययौ तत्र पुरे रात्रौ तद्वापीजलपानतः // 51 // निजरूपेण तां चक्रे वक्रेतरमनाः स च / हर्षदण्डं समयेति तया नागश्रिया वृतः // 52 // लोके बभूव नो याव-चतुष्कं मङ्गलभ्रमः / तावत्कौमार्यमाचख्युवरवध्वोः शतं गृहम् // 53 // एवं वासवदत्ताऽपि तं व सदृशं वरम् / पुण्येन प्राप्यते सर्व मिलन्ती श्रीमिलत्यपि // 54 // अम्बडः प्रत्यगाच्छीघ्रं पातालात्तालमेलतः। आगत्य तत्पुरे भूप-मापप्रच्छ पुरोधसम् // 55 // भुञ्जानः सप्त सौख्यानि सप्तपत्नीसमन्वितः / ततो भोजकटद्रङ्ग सोत्कण्ठं च गतोऽम्बडः // 56 // सुस्थानवासः सुकुलं कलत्रं, पुत्रः पवित्रः स्वजनानुरागः।। न्यायाच वित्तं स्वहितं च चित्तं, सुस्वामिता सन्ति सुखानि सप्त // 27 // उक्त्वा समरसिंहस्य नीत्वा रत्नवतीप्रियाम् / दण्डद्वितयसंयुक्तो ययौ रथपुरेऽम्बडः // 5 // सर्वार्थशङ्करं दण्डं हर्षदण्डसमन्वितः / अग्रे गोरखयोगिन्या डुढौके प्रणनाम च // 51 // हे अम्बड ! महासत्त्व वीर ! त्वं पृथिवीतले / उक्तं गोरखयोगिन्या सुखं भुत्व निरन्तरम् // 16 // | // 7 // Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम अम्बड चरित्रम् आदेश: इत्याशिषं गृहीत्वा स नवा गोरखयोगिनीम् / स्वस्थानं गतवान् स्वस्थस्त्रिंशत्पत्नीसुखं भजेत् // 161 // // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नसूरिविरचिते अम्बडचरिते गोरखयोगिनीदत्तषष्ठादेशः सम्पूर्णः // 6 // _ -(क)॥ अथ सप्तमादेशः॥ // 8 // सा पूर्या देशं प्रकृतिविषमं योगिनी गोरखाख्या, पादौ नत्वा पुनरपि वचः प्रार्थयेदम्बडोऽयम् / सामान्योऽसौ न हि बहिरहो मध्यतः सत्त्वशाली, तादृग् ज्ञात्वा मुदितहृदया सैवमादेशदात्री // 1 // आदेशं सप्तमं देहि मातर्गोरखयोगिनि / / हे अम्बड ! महासत्त्व शृणु सोवाच तं प्रति // 2 // दक्षिणस्यां दिशि स्फारस्सोपारपुरपत्तने / चण्डेश्वरनृपस्तत्र तन्मूर्ध्नि स्याच्छिरोमणिः // 3 // पच्छेडकोऽस्ति तन्मध्ये तमानय श्रियं भज / सहायवत्तमादेशं नीत्वा नत्वाऽथ सोऽचलत् // 1 // // 8 // Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् सप्तम आदेश: // 86 // अतिक्रान्तः पथः सोऽपि सोपारसविधं ययौ / नानाविधतरुयामा-भिरामारामशोभितम् // 5 // M नारिंग जंबीरक बीजपूर-राजादनीसुन्दरनालिकेरी। हन्तालतालो सहकारशाली प्रदेश एवंविध आविभाति // 6 // वृक्षावली खाधफलानि वीक्ष्य, कां नालिकेरी गतवान् ग्रहीतुम् / यावत्स पाणिं क्षिपतीह तावत् , शाखास्थशाखामृग एनमाह // 7 // अहो पूरुष ! त्वं वचो यन्मदीयं, समाकर्णय प्राक् ततस्तं गृहाण / भवानन्यथा मृत्युमाप्नोति साधोऽ-ब्रवीदम्बडस्तकपे ! कारणं किम् // 8 // X| उवाच वानरो वीर ! शृणु त्वं पश्य सन्मुखा / दृश्यते वाटिका तस्याः पायें स्यात् यमपर्वतः // 6 // | तत्पृष्ठे सहकारोऽस्ति फलं तस्य समानय / यथाफलं त्वमाप्नोसि श्रुत्वेति तत्र सोऽगमत् // 10 // | अतिपदिस्मितः पाणिः सहकारफलग्रहे / उच्चैरुच्चैवजेच्छाखा-चूतस्योपरि सोऽचटत् // 11 // तावत्स चाम्र उड्डीनो व्योम्ना बहुलकानने / गवाऽस्थात्तत उत्तीर्णः पश्यति स्मेति सोऽम्बडः // 12 // // 86 // Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् / // 40 // सप्तम आदेशः समीपेऽग्निमध्ये पुरन्ध्रीनराणां, पथं द्रष्टवान् गन्तुमागन्तुमेव / पुनमेटेलस्यैव धोकारनादं, शृणोत्यद्भुतं सोऽम्बडश्चित्रमाप // 13 // इतस्ततोऽम्बडः पश्ये-नचाम्रो न च वानरः / अनाहतः स्वरो जातः किमभूदिन्द्रजालवत् // 14 // तावदागात् पुमान्नेकोऽनेकशृङ्गारशोभितः। सहासं कौतुकं दृष्ट्वा पृष्टस्तेनाम्बडेन सः // 15 // अहो सत्पुरुष ! कस्त्वं किमिदं वह्निकुण्डकम् / सधोङ्कारं च किं नृत्यं सत्यं कथय सोऽवदत् // 16 // हे अम्बड ! शृणु स्पष्टं वृत्तान्तं कथयाम्यहम् / पातालवासिसश्रीकं यलक्ष्मीपुरपत्तनम् // 11 // राजहंसाभिधोत्रागां वृक्षरूपेण खेचरः। विद्याभृद्धानरः सोऽपि प्रेषितस्त्वनिमन्त्रणे // 18 // अथो नाटकवृत्तान्तं शृणु त्वं सावधानतः। पुरात्र सुन्दरपुरे खेचरेन्द्रः शिवङ्करः॥११॥ अपुत्रः सोऽपि पुत्रार्थ-मुपायान् बहुशोऽकरोत् / परं पुत्रोऽभवन्नैव फलं दत्तेन लभ्यते // 20 // अन्यदैकः समायातस्तापसो विश्वदीपकः / फलमेकं च पुत्रार्थं समर्प्य तस्मै सोऽवदत् // 21 // | शिवङ्करमहाराज ! भवता चार्ध भार्यया / भक्षितव्यं फलं चैतद् यथा स्यात्तव सन्ततिः // 22 // // 8 // Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 31 // शिवरेण तत् जग्धं न चलेन भवितव्यता / आधानं कर्मयोगेन दधौ विद्याधराधिपः // 23 // उक्तश्च-"उदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः / सप्तम विकसति यदि पद्म पर्वताग्रे शिलायां, न चलति विधियोगात् भाविनी कमरेखा // 24 // आदेश: तदैव लजितो राजा स्वयं समनि तिष्ठति। विततान जने वार्ता छन्नमतन्न तिष्ठति // 25 // उक्तश्च-चंदकला छुरमुडी चोरीरमियं च छन्नपावाई / एए गोविजंता, जंती य दिने पायडा हुँति // 26 // सप्तमासादनूभूता भूपस्य जठरे व्यथा। न रतिर्भोजने क्वापि न शय्यायां न केलिषु // 27 // ॐ स्वरूपं तस्य भूपस्य न भूतं न भविष्यति / महत्या पीडया जाताः प्राणाः कण्ठगता इव // 28 // सम्भूय खेचराः सर्वे विमृश्यन्ति परस्परम् / अजनिष्ट जने लज्जा वक्तु नो याति कस्यचित् // 26 // ___ महत् कौतुकं यत्त्रपाकारि लोके, यदाधानमासीन्नरस्योदरे हि / जनाः प्राहुरित्थं मिथश्चित्रवार्ता, न कर्णे श्रुतं कूपरे कूर्चमेव // 30 // श्रा एकेन कथितं भो भोः-चिन्ताजाले पतन्तु मा / स एकः सेव्यते स्वामी यत्तत्कष्टाद्विमुच्यते // 31 // || ||1 // उक्तश्च-कार्य शर इव मूदं प्रथमं परिमोचयन्ति ते विरलाः / कङ्कतकदन्तका इव लब्धप्रसराश्च तेऽपि घनाः // 32 // Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: / / 82 // | उत्पत्तिः सर्वविद्यानां धरणेन्द्रो यथात्मनाम् / मूलं विहाय को मूढः शाखायां विलगत्यहो // 33 // अपरै र्दैवतैः किन्नु पूज्यो विद्याभृतां गुरुः / ध्यातव्यः स च कोऽप्यस्ति यो ध्यायत्येकमानसः // 34 // उक्तश्च-ध्यानमूलं गुरोर्मू त्तिः पूजामूलं गुरोः क्रमः / मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा // 35 // | अन्ये विद्याधराः सर्वे मौनं कृत्वा स्थितास्तदा / नैव दुष्यति यत्पावं तस्य हास्यं समेत्यपि // 36 // तत्र शुभङ्करभ्रात्रा भणितं सौदरेण च / अहं ध्यायामि सोऽप्याशु ध्यानं कत्तु मुपाविशत् // 37 // तेनैव विधिना ध्यातः प्रत्यक्षो धरणोऽभवत् / शिवङ्करस्य नैरुज्यं ययाचे तं शुभङ्करः // 38 // || यस्य वृक्षस्य शाखायां कुरुते गरुडः स्थितम् / कथं तत्र प्रसप्पेन्ति सपोः स्युदंपवर्जिताः // 3 // | न रात्रिरुदिते सूर्ये सागरे न तु रेणवः। विषं नैव सुधापाने ज्ञाने नैव च संशयः // 40 // // येषां शिरसि हे देव ! स्वादृशो भवतीश्वरः / कथं त एव पीड्यन्ते यथा सडुकरी मही // 41 // | प्रसीद धरणाधीश / धराधीशे शिवङ्करे। आधानवेदनात्यागं कुरुष्व त्वं सुखेन च // 42 // तुष्टः सन्तोषितः स्तोत्रैविद्याधरनमस्कृतः। जहार वेदनां तस्य दुष्करं किं सुपर्वणाम् // 43 // // 12 // Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समप्त आदेश: | प्रसन्नः पुनरूचे सः कृपया धरणेश्वरः / प्रसूतिसमये भूप ! स्मरणीयः शुभङ्करः // 44 // अम्बड विद्याभृतां निगद्य ति स्वस्थानं धरणो ययौ। शिवङ्करस्य भूपस्य तथाऽगाद् गर्भवेदना // 45 // चरित्रम् भूपस्य विवृधे गर्भः पुरुषस्य हि लाञ्छनम् / नारीणां हर्षसन्दर्भो गर्भो भवति वृद्धिमान् // 46 // // 43 // || विद्याधरजनाः सर्वे हर्षिता हृदि विस्मिताः / उदकः कीदृशो भावी चिन्ताशल्येन पीडिताः॥४७॥ यतः-चिन्ता चिता उभे तुल्ये चिन्ता स्याद्विन्दुनाऽधिका | चिता दहति निर्जीवं चिन्ता जीवन्तमप्यहो॥४८॥ नव मासा अतिक्रान्ता एवम्भूतस्य भूभुजः / जन्मकाले स्मृतो भूयो द्रुतं धरण आययौ // 4 // श्रागतो धरणस्तस्य सुखप्रसवमातनोत् / अचिन्त्यमहिमा ज्ञेयो दिव्यशक्तिप्रमाणतः // 50 // प्रसूतस्तनयो दिष्टया दृष्टया यावद्विलोकितः / तावदाजा मृतो हन्त मन्तव्यः कृत्रिमो भवः // 51 // उक्तश्च-तित्थयरा गणहारी सुरवइणो चक्कि केसवा रामा / संहरिया ही विहिणा का गणणा इयर लोअस्स // 1 // क्वचित् वीणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितम् , क्वचिदम्या रामा क्वचिदपि जरा जर्जरतनुः / क्वचिद्विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि सुरामत्तकलहः, न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः // 52 // // 6 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम अम्बडचरित्रम् आदेश: // 4 // विषमं वीक्ष्य संसारं सारं सुकृतमेव च / तस्मात्तदेव कर्त्तव्यं मोक्तव्यं शोककारणम् // 53 // इत्थं प्रबोध्य धरणः शोकं च निरवर्त्तयत् / जातमात्रं सुतं राज्ये स्थापयत्तस्य भूपतेः // 54 // धरणेन्द्रः स्वयं तत्र धात्रीरूपेण तस्थिवान् / त्रिवर्षं पालयामास प्रेमतः कृपयाऽथवा // 55 // नामचूडामणिं तस्मै ददौ धरणनायकः / तत्तस्य राज्यरक्षार्थं पातालनगरं व्यधात् // 56 // | अग्निकुण्डस्य मध्येन गन्तु तत्र पथं व्यधात् / शत्रूणां गोत्रिणां चैव दुर्लङ्घय जायते यतः॥४७॥ | तत्र पातालनगरे चूडामणिनरेश्वरः। विमुच्य सुन्दरं पुरं वसति स्म जनस्ततः // 58 // प्रासादं रचयामास महोत्तुङ्ग सतोरणम् / प्रतिमां पार्श्व देवस्या-ऽस्थापयद्धरणनायकः // 5 // ____ अनादिसिद्धा जगति प्रसिद्धा, प्रदत्तकामा महिमाभिरामा। कल्याणकी जनविघ्नहन्त्री, श्रीपार्श्वदेवप्रतिमा विभाति // 6 // उच्चैरुवाच धरेणेन्द्रो भो भोः शृण्वन्तु खेचराः। त्रयोविंशतितीर्थेश-प्रतिमाा निरन्तरम् // 61 // जन्मतो लघवो वृद्धा अनु षोडश वत्सरीम् / चतुर्दश्यष्टमीराकाऽमावास्यापञ्चमाष्वहो // 62 // // 14 // Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड सप्तम चरित्रम् आदेश: पञ्चपर्वसु चैतेषु स्नात्रपूजाविशेषतः / अग्रे श्रीपार्श्वनाथस्य कर्तव्यं नाटकं मुदा // 3 // यः कुर्यात्तस्य साम्राज्यं सुखं निर्विघ्नमन्वहम् / पुण्यैर्दोषा विलीयन्ते मारुतैरिख रेणवः // 6 // विना पूजां विना नृत्यं ये करिष्यन्ति भोजनम् / विद्याभ्रशश्च कुष्टित्वं तेषां भवति निश्चितम् // 65 // इति तेषां ह्यसौ दण्डः प्रचण्डः कर्णकोटरे / धरणेन्द्रो ददौ शिक्षा प्रजानामिव राजवत् // 66 // | धरणेन्द्रः पुनः स्नेहात् चूडामणिनृपस्य च / सिंहासनं महास्फारं चन्द्रकान्तमणीमयम् // 6 // तस्यासनाय दत्त्वाऽसौ जगाम भुवनं निजम् / तदाहि खेचराः कुर्युः स्नात्रपूजादि नाटकम्॥६॥युग्मम् श्रूयते च धोङ्काराः श्रीपार्श्वभवनेऽधुना। अम्बडः प्राह हे हंस ! गम्यते तत्र वीक्षितुम् // 6 // | प्रमाणमिति मार्गेण वह्निमध्येन तौ गतौ / प्रासादे पार्श्वदेवस्य प्रतिमां वीक्ष्य हर्षितौ // 7 // | अम्बडः पृष्टवान् हंसमेतद्देवस्य लक्षणम् / कीदृशं मित्र ! जानासि तदा मे वद सोऽवदत् // 71 // काश्यां पुराश्वसेनस्य नृपस्य तनयोजनि / चतुर्दशमहास्वप्न-ज्ञातसर्वज्ञतागुणः // 72 // वामाकुक्षिभवो नील-वर्णो नवकरोन्नतः / कमठस्मयहन्ताऽयं स्वामी भुजगलाञ्छनः // 73 // // 5 // Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड सप्तम आदेश: जित्वा यवनराजानं परिणिन्ये प्रभावतीम् / महामन्त्रेण यश्चक्रे ज्वलन् सप्पं फणीश्वरम् // 7 // || दत्त्वा सांवत्सरं दानं मत्वा भवस्वरूपकम् / प्रव्रज्य जितकामोऽयं केवली प्राप नि तिम् // 7 // चरित्रम् अवतारजन्मदीक्षा केवलनिर्वाणपञ्चकल्याणी। श्रीपार्श्वजिनेन्द्रस्य प्रोक्ता यदाजहंसेन // 76 // // 66 // || इति श्रुत्वाऽम्बडो भक्त्या प्रणनाम पुनर्जिनम् / कृत्वा पूजां नवनवैः स्तवनैः स्तौति साञ्जलिः // 7 // यदृष्टिः करुणासमुद्रलहरी स्पष्टा च सौम्यं मुखं, रूपं सर्वजनाभिराममतुलं शान्तो रसो मूर्तिमान् / आपजन्मजराविपत्तिहरणो योऽचिन्त्यचिन्तामणिः, स श्रीपार्श्वजिनेश्वरो विजयते त्रैलोक्यचूडामणिः // 7 // // इति श्रुत्वाऽम्बडस्तत्र पवित्रमानसो मुदा / श्रपूर्व नाटकं चक्रे यद्विद्याधरमोहनम् // 7 // ततः पप्रच्छ तं हंसं सप्रशंसं स चाम्बडः / किमर्थमहमानीतः स स्माह शृणु चान्यदा // 80 // चूडामणि पोऽकार्षीद भोजनं च विनार्चनम् / प्रमादो हि महावैरी छलान्वेषी शरीरिणाम् // 81 // | // 16 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् समप्त आदेश: // 7 // यतः-मज्ज विसयकसाया निद्दा विकहा य पश्चमी भणिया। एए पंच पमाया जीवं पाडंति संसारे // 2 // ____ आलसनिदा अनंतभय-गेहदुछंडी नारि / लच्छि भणइ सुपनंतरी नावु तेह घरिचारि // 3 // तत्क्षणं भूपतेविद्या-भ्रष्टत्वं समजायत / हाहाकारस्तदा जज्ञे य आधारः स चापतत् // 8 // आराधितस्ततो देवः प्रत्यक्षो धरणोऽभवत् / मौनेन स्थम्भवत्तस्थौ जल्पितोऽपि न जल्पति // 5 // अदृश्योऽजनि तत्कालं धरणेन्द्रस्तदा क्रुधा / ततश्चूडामणेर्भार्या सर्वाहारं न्यषेधयत् / / 86 // यतः-प्रीणाति यः सुचरितैः पितरं स पुत्रो, यद्भत्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम् / तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं य-देतत् त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते // 87 // एकविंशति वासरान् बभूवोपोषिता च सा / धरणेन्द्रो ददौ स्वप्नं तस्यै मृतकमूर्तये // 8 // मया हि नियमो नीतः कर्तुमस्य प्रतिक्रियाम् / तपसस्ते प्रभावेन वक्ष्ये रुग्नाशपद्धतिम् // 8 // सोपारकपुरासन्ने वने देवभ्रमाभिधे / आगतोऽस्त्यम्बडो वीर थानेतव्यः स एव हि // 10 // श्री करिष्यति प्रतीकारं निर्विकारी नृपो भवेत् / इत्युक्त्वाऽजनि सोऽदृश्यः स्वप्नदृष्टं तयाऽकथि // 11 // तदर्थं त्वं मयानीतो गम्यते तत्र सम्प्रति / अग्निमध्येन मार्गेण तौ गतौ तत्पुरं रयात् // 12 // | // 7 // Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेशः दृष्ट्वा विद्याधरैः सोऽपि सत्कृतो बहुमानतः। अष्टाह्निकां जिनस्तात्र-पूजानृत्यमकारयत् // 13 // प्रक्षाल्य कूर्मदण्डं च तज्जलं पायितो नृपः / चूडामणिनिराबाधो जातो विद्यासमन्वितः // 14 // अभूजयजयारावः प्रभावः सोऽम्बडस्य च / चकार पारणं राज्ञी समं विद्याधराम्बडैः // 15 // उत्कृष्टं मङ्गलं धर्म उत्कृष्टं जिनपूजनम् / उत्कृष्टं देवसानिध्यमुत्कृष्टं ब्रह्मणः सुखम् // 16 // | ततश्चूडामणी राजा पुत्री मदनमञ्जरीम् / अम्बडाय ददौ विधा-धनं विवाहपूर्वकम् // 17 // | अपूर्वानेकवस्तूनि चन्द्रकान्तमणीमयम् / यदत्तं धरणेन्द्रेण विष्टरं तस्य सोऽर्पयत् // 18 // || स्थित्वाऽम्बडः कियत्कालं मुस्कलाप्य नृपं ततः / स्वकीयपरिवारेण ययौ सोपारपत्तने // 11 // सर्वसैन्यं वने मुक्त्वा योगिरूपेण निर्ययो / पुरमध्ये समागत्य योगेन रञ्जयेजनान् // 10 // सर्वोऽपि स्वस्वकार्यार्थी चमत्कारमनुव्रजेत् / अम्बडोऽपि हि पाखण्डं मण्डयेत्कार्यसिद्धये // 1 // स पुनर्भूपगेहस्य प्रवेशं लभते न च / स्वकार्यविषयोत्कण्ठः कालं नयति चिन्तयन् // 2 // | तावद्वसन्त आयात ऋतुराजो वनश्रिया / राजा च सकलो लोकः तत्र रन्तुगतो वने // 3 // KIE8 // Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 8 // अन्यस्मिन् दिवसे राज-तनया सुरसुन्दरी / वसन्तखेलने याता सखीजनवृता बहिः // 4 // कूपकण्ठे समासीने लभ्यते वारकः कदा / अम्बडश्चिन्तयन्नेव-मन्वगात् राजकन्यकाम् // 5 // राजकन्या समासीना सहकारतरोस्तले / संस्मरन् मोहिनी विद्यां स योगी तत्र तस्थिवान् // 6 // साश्चर्यं योगिनो रूपं दृष्ट्वा मोहमुपेयुषीम् / आशीर्वचनमायाता-मादिशत् प्रति तां नताम् // 7 // | अङ्गवङ्गकलिङ्गादि-कुरुकोशलजाङ्गलाः / मरुमण्डलकाश्मीर-लाट कर्णाट मालवाः // 8 // काशी-गुर्जर-सौराष्ट्र-मेदपाटतिलङ्गकाः / इत्यादिदेशवा” च पारेभे सुखदायिनीम् // 6 // | एवंविधकथां कुर्वन्नुत्थायान्यत्र स व्रजेत् / तावदाजसुता तस्य प्रेमबद्धा तमन्वगात् // 11 // न तिष्ठत्यनुगच्छन्ती वार्यमाणा सखीजनैः। भूपाय कथितं सर्वं कन्यावृत्तं यथास्थितम् // 11 // (सकोपं भूपतिः प्राह-योगीरेकोऽस्ति दम्भधीः / ईदृशः कपटी यस्तु मत्सुतां विप्रतारयेत् // 12 // धावत 2 रे रे धावन्ति स्म च ये भटाः। ते सर्वे मोहनं प्राप्ता आसीना उपयोगिनम् // 13 // ततो राज्ञा स्वसेनानीः प्रेषितस्तं प्रति क्रुधा / आपतन्तं तकं ज्ञात्वा वेतालो भूय सोऽभ्यगात् // 14 // KI188 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 10 // जीवितव्यं गृहीत्वा रे क्व यास्यसि ममाग्रतः / सेनानीः सभयं नष्ट्वा भूपतेः शरणं गतः // 15 // राजाऽपि सन्मुखोऽधावत् हन्यतां हन्यतामयम् / इत्युक्तैः सुभटैमुक्ता बाणाः प्राणहराश्च ये // 16 // | त एव तस्य वपुषि वज्रवन्न लगन्ति च / राजा दध्यौ न सामान्यो योगी कः सिद्धपूरुषः // 17 // | मुमुक्षुर्यावता बाणं त्राणं पुत्र्याश्च भूपतिः / तावता योगिना सर्वे स्तम्भिता विद्यया भटाः // 18 // | दृश्यन्ते ते स्थिता ध्याने चित्रेषु लिखिता इव / सङ्गता योगिराजस्य पुरतः सेवका इव // 11 // | तदा योगी समुत्थाय नृपतेः मौलिमध्यतः। पच्छेटकश्च जग्राह न जीवग्राहकः स च // 120 // | कृतकार्यस्ततः पश्चादा-गत्य समुपाविशत् / विलोकन्ते जनाश्चित्र विचित्रं दम्भवैभवम् // 21 // सा राजा च स्तम्भिता योधाः प्रसारितदृशस्तथा / पश्यन्ति विस्मिता यदत् मूषकाः पीतपारदाः // 22 // | अन्ये साञ्जलयः पौरा विज्ञप्ति तस्य कुर्वते / प्रकटीभव हे सिद्ध ! प्रसीद मुकलं कुरु // 23 // विहाय योगिनो रूपं स्वरूपं कृतवान् कृती / पुनामोहिता कन्या यया दृष्टो हि तादृशः // 24 // मुच्यतां नाथ ! मे तातो विज्ञप्त इति कन्यया / अम्बडस्तम्भनादाजा राजवर्ग व्यमोचयत् // 25 // // 10 // Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् // 10 // सर्वे चमत्कृता लोका विशेषाद्विस्मितो नृपः। अद्भुतं तं वरं वीक्ष्य ददौ तां सुरसुन्दरीम् // 26 // सप्तम वनस्थं सैन्यमानीतं पत्नी मदनमञ्जरी / सोपारकपुरे शोभा नित्यशो भाति सोऽम्बडः // 27 // आदेश: हस्त्यश्वरथसन्मानी दानं भोजनपूर्वकम् / अम्बडः प्रीणितस्तस्थौ वर्षं तत्र सहर्षभृत् // 28 // समये भूपमापृच्छय सैन्यपत्नीद्रयान्वितः / क्षेमेण स्वपुरे सोऽगात गुणगानेन विश्रुतः // 21 // अग्रे गोरक्षयोगिन्या दौकितं सर्वमेव तत् / द्वात्रिंशदयितायुक्तः सशक्तः सुखमन्वभूत् // 130 // सप्तसौख्यधरो वीरः सप्तव्यसनवर्जितः / सप्तद्वीपवती पृथ्वी विख्यातोऽजनि सोऽम्बडः // 31 // राजन् ! मम पिता सोऽपि लोपितारातिरम्बडः / विद्यासिद्ध इति जने धत्ते नाम द्वितीयकम् // 32 // नित्यं गोरखयोगिन्या-स्त्रिकालं नमतः क्रमान। पितुः प्रथमपत्न्यां च चन्द्रावल्यां सुतोऽजनि॥३३॥ सोऽहं कुरुबको नाम्ना भाग्यनाम्ना विवर्जितः / तदाऽष्टवार्षिकोऽभूवं भूषितोऽजनकर्द्धिभिः // 34 // K अन्यदा गतवान् तातो नन्तु गोरक्षयोगिनीम् / पराक्(पुरा)चकार सा ध्यानकुण्डिकां तस्य मोहतः॥३५ | | // 10 // अधस्तस्या हरिश्चन्द्रनृपकोशमदर्शयत् / अधिष्ठितोऽग्निवेताल-स्तत्र तस्याश्च नित्यशः // 36 // Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड चरित्रम् // 10 // सान्निध्येन च योगिन्याः सिद्धिसाध्यविशेषतः / प्रसन्नो भूय वेतालो मत्पितुः कोशमर्पयत् // 37 // पिता तस्योपवेशाय चूडामणिनृपार्पितम् / ददौ सिंहासनं प्रीत्या प्रीतिरादानदानतः // 38 // सप्तम यतः ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति / भुङ्क्ते भोजयते चापि षड्विधं प्रीतिलक्षणम् // 36 // आदेश: पिता तस्मै ददौ भुक्त्यै द्वात्रिंशदिवसान बलीः / सन्तुष्टोऽजनि वेतालोऽवश्यं दानेन सर्वतः // 140 // k योगिनीवचनात् स्वर्ण-नरं कोशे मुमोच सः / तथैवामुद्रयत्कोशं सश्रीकं मत्पिता पुनः // 41 // एतच्च सकलं वृत्तं राजन् ! विक्रमसिंहकः / द्वात्रिंशन्मितमातृणां मुखेन ज्ञातमस्ति मे // 42 // / कालेऽगाद्योगिनी स्वर्गे प्रायः प्राणा विनस्वराः / अविनस्वरमेकं हि धर्मरूपं यशो वपुः // 43 // यतः-यशः शरीरं भुवने निवेश्य, स्वगं गताः पुण्यशरीरभाजः। तेषां महद्भूतमये शरीरे, गतेऽपि का हानिरहो प्रदिष्टा // 44 // जीवंतस्स इह जसो कित्ती मुयस्स परभवे धम्मो / सुगुणस्स य निगुणस्स य अयसो अकित्ती अहम्मो य // 4 // अतिक्राम्यति यं कालं विना गोरखयोगिनीम् / अमातृकमिवापत्यं मत्पिताऽभूदनाथवत् // 46 // // 12 // यस्याः प्रसादतो लक्ष्मी-रियती प्राप्तवान् पिता। सा कथं विस्मृतिं याति स्मारयेत्तद् गुणाश्च ताम् // 47 // KI Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 103 // शोकं निवर्तयामास गुणांस्तस्याः स्मरन् पिता / अन्यदाऽगात्सपत्नीको वने क्रीडनहेतवे // 48 // तस्यैवं रममाणस्य गुरोर्बभूव दर्शनम् / कुमारो गणभृत्केशी यः श्रीपार्श्वजिनान्वयः // 4 // | किञ्चिन्नत्वा पिता तस्य पुरतः समुपाविशत् / गुरुर्धर्मोपदेशं च ददौ तस्मै जिनोदितम् // 15 // यतः-जैनो धर्मः प्रकटविभवः सङ्गतिः साधुलोके, विद्वद्गोष्ठी वचनपटुता कौशलं सत्कलासु / साध्वी लक्ष्मीश्चरणकमलोपासनं सद्गुरूणां, शुद्धं शीलं मतिरमलता प्राप्यते प्राज्यपुण्यैः // 51 // अम्बडः प्राह तत्सत्यं भवद्भिर्यच भाषितम् / पून नमतं किञ्च न परं सांख्यदर्शनात् // 52 // तद्यथा-सांख्या निरीश्वराः केचित् , केचिदीश्वरदेवताः। सर्वेषामपि तेषां स्यात् , तत्त्वानां पञ्चविंशतिः // 53 // तद्यथा-साङ्ख्या देवः शिवः कैश्चित् मतो नारायणः परैः। उभयोः सर्वमप्यन्य-तत्त्वप्रभृतिकं समम् // 54 // यदेव जायते भेदः प्रकृतेः पुरुषस्य च / मुक्तिरुक्ता तदा सांख्यैः ख्यातिः सैव च भण्यते // 55 // // 103 // Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 104 // सांख्यः शिखी जटी मुण्डी कषायाद्यम्बरोऽपि च / वेषेऽनास्थैव सांख्यस्य पुनस्तत्त्वे महाग्रहः // 56 // अम्बडं प्रत्यवाक् पुज्यः सांख्यं स्यात् बिन्दुमात्रकम् / पयोराशिं न जानाति भवान कूपस्य दर्दुरः // 57|| यतः-अविदितपरमानन्दो वदति जनो विषय एव रमणीयः / तिलतैलमेवमिष्टं येन न दृष्टं घृतं क्वापि // 5 // अपि च--विपुलहृदयाभियोगे खिद्यति काव्ये जडो न रखें स्वे / निन्दति कुश्चककारं प्रायः शुष्कस्तना नारी // 6 // पुनः-संतप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते, मुक्ताकारतया तदेवनलिनीपत्रस्थितं राजते। स्वातौ सागरशुक्तिसंपुटगतं तदज्ञायते मौक्तिकं, प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणो संवासतो जायते // 16 // पश्य जैनमते प्रातः केवलज्ञानभास्करे। वस्तुवत्तत्र दृश्यन्ते तत्त्वानि नव नान्यतः // 61 // उक्तश्च-जीवाऽजीवा पुन्नं पावासवसंवरो य निजरणा / बंधो मुक्खो य तहा नवतत्ता हुँति नायव्वाः // 6 // एतद्विवरण दुग्धपानीयव्यक्तिवद् गुरुः / चक्रे वक्रेतरमना राजहंसो यथा तथा // 63 // प्रतिबोधमिति श्रुत्वा प्रसन्नो लघुकर्मतः। मिथ्यात्वशल्यनिर्मुक्तः सञ्जातोऽम्बड श्रास्तिकः // 64 // सादरं पूज्यमाकार्य स्वगृहं प्रत्यलाभयत् / पुनः प्ररूपयामास सम्यवत्वं तस्य योगतः // 65 // // 104 // Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड सप्तम आदेश: चरित्रम् भूतप्रेतपिशाचादिशक्तयो यान्ति दास्यताम् / सम्यक्त्वमेकचित्तेन पालितं गृहमेधिना // 66 // अम्बडः प्राह हे पूज्य ! सम्यक्त्वं किश्च कथ्यते / गुरुराह महाभाग ! वीतरागः सुरार्चितः // 6 // स्वर्णरूप्यरत्नमयप्राकारत्रयराजितः / रागादिदोषनिमुक्तः छत्रत्रयचतुर्मुखः // 6 // // 10 // यतः-अन्तराया दानलाभ-वीर्यभोगोपभोगकाः। हासो रत्यरतीभीतिर्जुगुप्साशोक एव च // 6 // कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निदा चाविरतिस्तथा। रागो द्वेषश्च नो दोषा-स्तेषामष्टादशाप्यमी // 17 // इत्यष्टादशदोषैर्यो वर्जितो गुणगर्जितः / प्रक्षीणदुष्टकर्मारिः सर्वारिष्टविनाशकः // 71 // प्रातिहार्याष्टकोपेतः सर्वज्ञः सर्वदर्शकः / चतुस्त्रिंशदतिशयः पञ्चत्रिंशद्रचोगुणः // 72 // अनन्तगुणसम्पन्नः प्रसन्नः सर्वजन्तुषु / ईदृशो देवदेवोऽयं प्रथमं तत्त्वमुच्यते / / 73 // तद्भाषितो दयामूल-धर्मस्तत्त्वं द्वितीयकम् / धर्मोपदेशकः पञ्च-महाव्रतधरो गुरुः / / 74 // || तृतीयं तत्त्वमादिष्टं सम्यक्त्वमिदमुच्यते / विषयेऽस्मिन् महाभाग ! सन्देहं मा कृथा मनाक् // 7 // साक्षात् सम्प्रति वीक्षस्व विद्यमानो जिनेश्वरः / श्रीवर्द्धमाननामैव-मनन्तद्धिः प्रवर्त्तते // 76 // // 10 // Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम अम्बडचरित्रम् आदेशः // 106 // गुरूणां वचनं सत्यं मन्यमानोऽम्बडोऽब्रवीत् / इन्द्रजालं विना चित्रं कथमुत्पद्यते प्रभो ! // 77 // गुरुः प्राह समागच्छ दर्शयामि तथाविधम् / सम्भावयन् महाश्चय गुरुणा सह सोऽगमत् // 78 // वैशाल्यां च तदा पुर्या श्रीवीरः समवासरत् / चतुःषष्टिसुराधीश-सेव्यमानपदद्रयः // 7 // अम्बडस्तत्र सन्दिष्टमार्हतं गुरुणा सह / ततोऽप्यधिकमद्राक्षी-दिस्मितोऽमस्त सत्यवत् / / 180 // दयौ स ईदृशं क्लृप्तं बहुविद्याप्रसादतः / एतत्समवसारस्य तुल्यं नापैति यत्परम् // 81 // का रूपेण तेजसा स्फूर्त्या मूर्त्या वचनविस्तरैः। अनन्तद्धिर्महावीरो दृष्टः सर्वसुखप्रदः॥ 82 // प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नं, वदनकमलमङ्कः कामिनीसङ्गशून्यः। करयुगमपि यत्ते शस्त्रसम्बन्धवन्ध्यं, तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव // 83 // KI स्वामिवाणी स्वामिरूपं स्वामितेजो महाऽदभुतम् / सुधाया अधिकं मेने वत्रः श्रुत्वाऽम्बडः प्रभोः // 8 // | देवतत्त्व गुरुतत्त्व-धर्मतत्त्वत्रयीमयः / सत्यो देवाधिदेवोऽसौ मोक्षसौख्यविधायकः॥८५ // मिथ्यात्वं हृदि मिथ्याऽभूत् मत्पितुर्जिनधर्मतः / अशौचपटलो व्यर्थः पवित्रगोमयात् यथा // 86 // // 10 // Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम अम्बडचरित्रम् आदेश: // 107 // यतः-कतिपयपुरस्वामी कायव्ययैरपि दुर्घहो, मतिवितरिता मोहेनाहो मया न श्रुतः पुरा / त्रिभुवनपतिर्बध्याराध्योऽधुना स्वपदप्रदः, प्रभुरपि गतस्तत्प्राचीनो दुनोति दिनव्ययः॥८७॥ | यदघिरेणुपीयूष-पानतस्तृप्तमानसः / अयाचत जिनं वीरं सम्यक्त्वं प्राप मत्पिता // 8 // | संसारसागरे मजन कर्मभारेण भारितः / कर्णधारसमानेन प्रभो!ऽहं भवतोद्धृतः // 8 // इति केशिगुरु स्तुत्वा नत्वा तचरणाम्बुजम् / सम्यक्त्वरत्नमादाय मत्पिता गृहमागमत् // 110 // इन्द्रियाणामजेयत्वात् कामकल्लोललोलितः / पुनमुञ्चति गृह्णाति सम्यक्त्वं दुर्लभं भवेत् // 11 // दर्शने दर्शने धर्मः कर्ममार्गविधायकः / स्थाने स्थाने न सम्यक्त्वं मोक्षतत्त्वप्रकाशकम् // 12 // _उक्तश्च-शैले शैले न माणिक्यं मोक्तिकं न गजे गजे / साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने // 63 // जानन् सम्यक्त्वमाहात्म्य-मगम्यं बहुकर्मणः / सम्यक्त्वे दृढता नासी-च्छैथिल्यानिजचेतसः // 14 // वारानष्टादशैवं तु गृहीतं मुक्तमेव तत् / श्रीवीरस्तद् दृढीकत्त सुलसां तामदर्शयत् // 15 // सुलसाऽम्बडद्रष्टव्या वाक्यं वीरजिनेशितुः। धर्मोपदेशवेलायां दथ्यौ श्रुत्वेऽति सोऽम्बडः // 16 // ययाऽयं निजरागेण वीतरागोऽपि रञ्जितः / सुरासुरसभामध्ये पक्षपातोऽन्यथा कथम् // 17 // ||107 // Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तम आदेशः तद् पमथ तबृद्धि-स्तस्या लवणिमाऽथवा / किमेतदर्शनेनास्या येन रागो जितोऽर्हता // 18 // अम्बडचरित्रम् || ज्ञातं हि मत्कृते ज्ञातनन्दनो दर्शयेच्च ताम् / सतां परगुणग्राहः परोपकृतिलक्षणम् // 16 // | मनोऽतिमात्रं स्त्रीमात्रे ध्यावा राजगृहं ययौ / तस्याः स्थैर्यपरीक्षार्थ चक्रे रूपचतुष्टयम् // 20 // // 10 // | स्वयम्भूः पार्श्वसावित्री गावित्रीति परिग्रहः / अक्षसूत्रं दधद्वेदा-नुचरंश्चतुराननः॥१॥ गोपुरे दिशि पूर्वस्यां ब्रह्माऽभूदम्बडः स्वयम् / / सर्वो लोकः समायातः किं नाऽगात् सुलसाऽलसा // 2 // युग्मम् // दक्षिणस्यां पुरद्वारे विष्णुरूपोऽम्बडोऽभवत् / नृत्यगीतकलाटोप-गोपस्त्रीपरिवेष्टितः // 3 // उक्तञ्चकस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं, नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुः करे कङ्कणम् / | सर्वाङ्गे हरिचन्दनं मलयजंकण्ठे च मुक्तावली, गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः॥ 4 // K अपि च-अङ्गनामङ्गनामन्तरे माधवो, माधवं 2 चान्तरे चाङ्गना। एवमाकल्पयत्ताण्डवं सुन्दरं, संजगी वेणुना देवकीनन्दनः // 5 // // 10 // Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बड सप्तम आदेश: चरित्रम् // 10 // ततः-तडित्वानिव यो गर्जन श्यामवर्णश्चतुर्भुजः / द्रष्टुं सर्वजनोऽप्यागात् दृप्तेव सुलसा न तु॥६॥ | प्रतीच्यामम्बडोऽन्येद्य : प्रादुरासीन्महेश्वरः / पार्वत्या सह यः क्रीडन् दधचन्द्र त्रिलोचनः // 7 // जटावान् वृषभारूढः सर्पभूषो गणाश्रितः। पश्यत्येतं जनं सर्वं व्यग्रां किं सुलसां न ताम् // 8 // युग्मम्॥ कौबेर्यामम्बडो जातो भावितीर्थेशवर्णिकः / पञ्चविंशजिनेन्द्रस्य छायां चक्रे स्वविद्यया // 1 // तदर्शने जनोऽभ्येति श्रुत्वा साऽथ सखीमुखात् / विद्यमाने जिने नान्यः सा दथ्यौ व्योम्नि नो रविः // 10 // ज्ञात्वेति धर्मधीस्तत्र नागमन्नागगेहिनी / अम्बडोऽगात् जिनोक्तायास्तस्या गेहं चमत्कृतः // 11 // दिने ब्रह्मरूपं यथा भूतमादौ, द्वितीये मुकुन्दस्य शिवं तृतीये। चतुर्थे जिनं पञ्चविंशं स चक्र, समग्रं समेतं पुरं सा तु नागात् // 12 // ततस्तं सुलसा मत्वा भणित्वा धर्मबान्धवम् / सम्यक्त्वेऽद्रढयत् सोऽपि गुरुवत्ताममन्यत // 13 // उक्तञ्च-भो भव्या जिनधर्मस्य द्वारं 1 मूलं 2 प्रतिष्ठितम् 3 / आधारो 4 भाजनं चैव 5 निधि 6 सम्यक्त्वमेव हि // 14 // | // 10 // Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 110 // मुत्तुं दंसणदारं न पवेसो धम्मनयरम्मि / देइ लहुं मुक्खफलं दंसणमूले दढंमि धम्मदुमे // 15 // नंदइ वयपासाओ देसणपीढंमि सुपइदंमि / सम्मत्तमहाधरणी आहारो चरणजीवलोगस्स // 16 // सुयसीलमणबरसो दंसणवरभायणे धरई / मूलत्तरगुणरयणाणं सम्मत्तं अक्खयनिहाणं // 17 // वर्द्धमानं जगद्भानुवर्द्धमानजिनान्न तत् / प्रवर्द्धमानसम्यक्त्वं यदस्ति सुलसास्त्रियाः ? // 18 // उक्तश्च-धन्ना सलाहिणिज्जा सुलसा आणंद कामदेवा य / जेसिं पसंसइ भयवं दङ्वयत्तं महावीरो // 16 // अम्बडस्य मुखात् श्रुत्वा वैशाल्यां वीरतीर्थपम् / अभिगम्य नमश्चक्रे सुलसा पञ्चषान क्रमान // 220 // उक्तञ्च-अणुसो य सुद्दो लोगो, पडिसो य आसवो सुविहियाणं / अणुसो उ संसारो पडिसो उ तस्स उत्तारो॥२१॥ | कृष्णचित्रलतातुल्यां सुलसां हृदि भावयन् / सम्यक्त्वं पालयामास त्रिधा शुद्धया ततोऽम्बडः // 22 // चिरं भुङ्क्त्वा सुखं राज्यं ददौ मह्य विरागवान् / द्वात्रिंशद्रमणीमुक्त्वा धर्मध्यानपरोऽभवत् // 23 // | काले संलेखनां कृत्वा मत्पिता धर्मलेश्यया / स्वर्गगामी बभूवाशु प्रांशुलभ्यं फलं तरोः॥२४॥ द्वात्रिंशदयिता भर्तृ-विरहातुरमानसाः / दिवं जग्मुर्जनन्यो मे स्त्रीणां रमणजीवनम् / / 25 // सौभाग्या येऽपि ते जग्मुर्भाग्यहीनोऽस्मि तस्थिवान्। राज्यं निर्गमितं सर्वं विना पुण्यं न तिष्ठति // 26 // ||110 // Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 11 // यतः-अभ्यासकारिणी विद्या लक्ष्मीः पुण्यानुसारिणी / दानानुसारिणी कीत्तियुद्धिः कर्मानुसारिणी // 27 // स्मृतेर्मे गोचरे ज्ञातं द्रव्यजातं भवेत्पितुः / कथं भजामि दारिद्रय कोशमुद्घाटयामि तम् // 28 // गत्वाकार्ष पुरा तत्र-योगिनीध्यानकुण्डिकाम् / यावदुद्घाटिते कोशे ददर्श जननी मया // 21 // | राजन् ! जातं ममाश्चर्य पृष्टा मातरिदं च किम् / उचे चन्द्रावली जाता व्यन्तर्यः सकला वयम् // 230 // अस्मिन् सिंहासने मोहात् पुत्रिकाभूय संस्थिताः। अत्रायातः कथं वत्स ! किमर्थं सोऽवदत् श्रिये // 31 // नास्ति भाग्यं तव स्वस्ति व्रज त्वं भाग्यभोग्यताम् / ततो नत्वा गतः पश्चात् तं तथा कृतकौशकम् // 32 // दथ्यौ कमपि पुरुषं सभाग्यं चाग्रतः कृत्वा। कार्य करोमि मे यदत् तसिद्धयति सुनिश्चितम् // 33 // तेनाहमागतो राजन् ! त्वमेव भाग्यवानसि / मया ज्ञातोऽस्ति भाण्डारो ज्ञात्वा कुरु यथोचितम् // 34 // श्रुत्वा विक्रमसिंहो राट् ययौ कुरूबकान्वितः / तत्र यावत्पुरा कुर्यात् योगिनीकुण्डिकां ततः॥३५॥ अनाहतस्तत्र बभूव शब्दः, प्रयासमेवं कुरु मा वृथा स्यात् / भावी नृपो विक्रम उज्जयिन्यां, स एव भोक्ता विभवं हि नान्यः॥ 36 // // 111 // Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 112 // | ततो राजा गतस्तस्य चक्र जीवनवृत्तिकाम् / दुर्वलस्य बलं राजा जज्ञे कुरु बकः सुखी // 37 // यत्पुर्यामुज्जयिन्यां सुचरितविजयी विक्रमादित्यराजा, वैतालो यस्य तुष्टः कनकनरमदादिष्टरं पुत्रिकाश्रि / अस्मिन्नारूढ एवं निजशिरसि दधौ पञ्चदण्डातपत्रं, चक्रे वीराधिवीरः क्षितितलमनृणां सोऽस्ति सम्वत्सराङ्कः // 38 // इत्थं गोरखयोगिनी वचनतः सिद्धोऽम्बडः क्षत्रियः, सप्तादेशवराः सुकौतुकभरा भूता न वा भाविनः / द्वात्रिंशन्मितपुत्रिकादिचरितं यद् गद्यपद्यन तत्, चक्रे श्रीमुनिरत्नसूरिविजयी स्तादाच्यमानं बुधैः // 3 // // इत्याचार्यश्रोमुनिरत्नसूरिविरचिते अम्बडचरिते गोरखयोगिनीदत्तसप्तमादेशः सम्पूर्णः // 7 // समाप्तमिदं श्री मुनिरत्नसूरीश्वरविरचितं अम्बडचरित्रम् | // 112 //