________________ पश्चम आदेशः | यच्चमत्क्रियते येन सर्व राजादिकं पुरे / देमती दीयमाना ते शोभते सर्वसाक्षिकम् // 84 // अम्बड प्रमाणमिति तेनोक्तं द्वितीये दिवसे ततः / राजसंसदि सेवायां कृत्वा पुष्पचतुस्सरम् // 85 // चरित्रम् | वजन्त्यां पुष्पजीविन्यां गृहीत्वा तवयं तदा / तस्य मध्येम्बडः किश्च विद्याचूर्णं मुमोच सः॥८६॥ गवा सा तत्र भूपाय ददावेकं चतुस्सरम् / वैरोचनप्रधानाय द्वितीयं च सुगन्धि यत् // 87 // आघ्राय तस्य सौरभ्यं प्रधानोभूपतीस्ततः। मस्तके दधतुः पश्चात् ययावारामिका गृहम् // 8 // अम्बडेन पुनस्तत्र पुरमन्त्रीशभूभुजाम् / प्रतोलीषु त्रिषु क्षिप्ता रक्षा सातिशया च सा // 81 // तिखा धूनयितुं लग्नाः प्रतोल्यास्तावता पुरे / सर्वेऽपि मिलिता लोकाः कोलाहलकरा भिया // 10 // इत्थमाहुर्मिथो लोका विरूपं किन्तु भावि भोः / भूतप्रेतपिशाचाद्या राक्षसाः कुपिताः किमु // 11 // (| सुदृढ नगरद्वारं राज्ञो द्वारं च मन्त्रिणः / अन्यथा कम्पते नैव वृक्षशाखेव वायुना // 12 // इत्थं पौरा भयभ्रान्ता राजानं सचिवं प्रति / कथयन्तोऽपि पश्यन्ति रक्षकास्तेऽपि मूर्छिताः // 13 // कुर्वन्ति राजवर्गीया उपचारं तयोर्घनम् / मनागपि गुणो नैव भिषग्भिभैषजैरपि // 14 // // 66 //