________________ सप्तम अम्बडचरित्रम् आदेशः // 106 // गुरूणां वचनं सत्यं मन्यमानोऽम्बडोऽब्रवीत् / इन्द्रजालं विना चित्रं कथमुत्पद्यते प्रभो ! // 77 // गुरुः प्राह समागच्छ दर्शयामि तथाविधम् / सम्भावयन् महाश्चय गुरुणा सह सोऽगमत् // 78 // वैशाल्यां च तदा पुर्या श्रीवीरः समवासरत् / चतुःषष्टिसुराधीश-सेव्यमानपदद्रयः // 7 // अम्बडस्तत्र सन्दिष्टमार्हतं गुरुणा सह / ततोऽप्यधिकमद्राक्षी-दिस्मितोऽमस्त सत्यवत् / / 180 // दयौ स ईदृशं क्लृप्तं बहुविद्याप्रसादतः / एतत्समवसारस्य तुल्यं नापैति यत्परम् // 81 // का रूपेण तेजसा स्फूर्त्या मूर्त्या वचनविस्तरैः। अनन्तद्धिर्महावीरो दृष्टः सर्वसुखप्रदः॥ 82 // प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नं, वदनकमलमङ्कः कामिनीसङ्गशून्यः। करयुगमपि यत्ते शस्त्रसम्बन्धवन्ध्यं, तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव // 83 // KI स्वामिवाणी स्वामिरूपं स्वामितेजो महाऽदभुतम् / सुधाया अधिकं मेने वत्रः श्रुत्वाऽम्बडः प्रभोः // 8 // | देवतत्त्व गुरुतत्त्व-धर्मतत्त्वत्रयीमयः / सत्यो देवाधिदेवोऽसौ मोक्षसौख्यविधायकः॥८५ // मिथ्यात्वं हृदि मिथ्याऽभूत् मत्पितुर्जिनधर्मतः / अशौचपटलो व्यर्थः पवित्रगोमयात् यथा // 86 // // 10 //