SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अम्बड चतुर्थ आदेशः चरित्रम् // 41 // यतः-साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थंभूता हि साधवः / तीर्थ फलति कालेन सद्यः साधुसमागमः // 10 // इति स्तुतिपरं भूपं तापसः प्रत्यबोधयत् / शिलासमानमहिला परं मजति मजयेत् // 41 // जे पढिआ जे पंडिया जे जगि ऊपर वट्ट / ते महिला फेरवीइ जिम फेरवीइ घरट्ट // 42 // दुःखं स्त्रीकुक्षिमध्ये प्रथममिह भवे गर्भवासे नराणां, बालत्वे चापि दुःखं मलमलिनवपुः स्त्रीपयः पानमिश्रम् // तारुण्ये चापि दुःखं भवति विरहजं वृद्धभावोऽप्यसारः, संसारे रे मनुष्या वदति यदि सुखं स्वल्पमप्यस्ति किश्चित् // 43 // अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः / नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः // 44 // रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः। इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा मूलतः कमलिनी गज उज्जहार // 45 // जरा धोबिणि धोयणि चली, धोया सघला देश / विण पाणी विण साबूए धूला कीधा केश // 46 // अस्थिरेण शरीरेण शुभं कर्म समाचरेत / संसारे पश्य यत्सौख्यं मधुबिन्दुसमं नृप ! // 47 // इत्थं तत्प्रतिबोधेन राजा वैराग्यप्राप्तवान् / राज्यं प्रदाय पुत्राय तापसव्रतमग्रहीत् // 48 // स्वयं लीलावती राज्ञा साद्धं जाता तपस्विनी / अचीकथनवाधानं व्रतादानान्तरायकृत् // 4 // | // 41 //
SR No.600425
Book TitleAmbad Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijayjinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy