________________ अम्बड चतुर्थ | আমি चरित्रम् // 42 // तपोवने तत्र तपस्विसङ्कले, लीलावती गर्भवती तपस्विनी। उदारगर्भा समये बभूव सा, तां तादृशीं वीक्ष्य नृपो मुनिर्जगौ // 50 // असमं किमिदं देवि ! तपोहानि त्रपाकरम् / स्थाष्णोरत्र तपः शोभा न शोभा विषयस्य च // 51 // साऽवदद् देव ! जानीहि गर्भो मे गृहवासजः / मयाऽसौ व्रतमिच्छिन्त्या विघ्नकृत्तेन नाकथि // 52 // निःकलङ्कमना काले संपूर्णेऽसूत सा सुताम् / मृताऽसौ सूतिरोगेण मृत्योर्वक्ति न च क्वचित् // 53 // यतः-गभेस्थं जायमानं सुखशयनगतं मातुरुत्सङ्गसंस्थ। बालं वृद्धं युवानं परिणतवयसं निःस्वमाढय धनाढयम् / वृक्षाग्रे शैलशृङ्गे नभसि पथिजले पञ्जरे कोटरे वा। पाताले वा प्रविष्टं हरति हि सततं दुनिवार्यः कृतान्तः॥ 54 // श्री बालस्स मायमरणं भजामरणं च जुब्बणारंभे / वुड्डस्स पुत्तमरणं तिन्नि वि गरूआई दुक्खाई // 55 // कूया कंठउ मतपडउ, म पडउ वली अवाह / म मरु बाला मावडी तरुणी केरो नाह // 56 // // 42 //