________________ द्वितीय आदेशः गम्यते तत्र सावादीत् विना विद्यां खगामिनीम् / कथं यातु स पत्न्यै तां स्नेहादर्पयदम्बडः // 11 // अम्बड चरित्रम् ततस्तौ दम्पती व्योम्ना गतौ रोलगपत्तने / इव विद्याधरौ तत्र तदुद्यानेऽवतेरतुः // 12 // वने तस्मिन् स्वयं स्थित्वा प्रेषयत्तां पितुर्यहम्। पुत्रिकां पितरौ दृष्ट्वा चिरायुमुदमापतुः // 13 // // 23 // | पिता पप्रच्छ हे वत्स ! क्व गता कथमागता / आमूलचूलवृत्तान्तं कथयित्वेति साऽवदत् // 14 // | तवोद्यानेऽस्ति जामाता श्रुत्वा मातापिता मुदा। गत्वा सन्मुखमाकार्य तं च सोत्सवमानयत् // 15 // सर्वलोकसमक्षं च विस्तरेण स्वपत्तने / तत्रैव हंसभूपेन सुतां तेन व्यवाहयत् // 16 // | अग्रहीत्साटिकां राज-हंसी तत्प्रीतिवाक्यतः। कन्याभिः सप्तभिस्ताभिमुदा सोऽपि वृतोऽम्बडः // 17 // नृपदत्तार्द्धराज्यश्री-रष्टपत्नीसमन्वितः। अष्ट वर्षाणि तस्थौ स वत्सरं दत्तवारकः // 18 // | समये नृपमापृच्छय निजसैन्यसमन्वितः / अम्बडोऽष्टप्रियायुक्त-स्तदीपं नभप्ता ययौ // 11 // सैन्यं भुवि समानीय गगनागतोऽम्बडः / दूरतोऽस्थापयद् यद्वद् नैव जानाति कश्चन // 10 // हरिबन्धाभिधद्रीपे सङ्ग्रह्य तत्फलं जलम् / अम्बडो गतवान् यत्र योगी कमलकाञ्चनः // 1 // // 23 //