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________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 13 // ऊर्च चन्द्रावली ! स्पष्टं पश्यतु त्यजतु त्रपाम् / क्रीडायै वारको देयो जितं सूर्यस्य मण्डलम् // 22 // इत्यम्बडेन जल्पन्त्या तेन ज्ञापितवृत्तया। तयोपलक्षितः प्रोचे रे रे गर्दभ ! किं कृतम् ? // 23 // रे निष्ठुर ! कथं लोक-समक्षं च विगोपिता। त्वदीयं चेष्टितं सर्वं श्रुत्वा तत्सोऽम्बडोब्रवीत् // 24 // विरूपं चण्डि ! मावादीः स्मारय स्वकृतं पुरा। अहमुल्लालितस्तच्च, विस्मृतं सूर्यमध्यगः // 25 // रे मूढ ! त्वं न जानासि, करिष्ये नूतनं पुनः / तव रूपव्रतस्यैव-मिदमुद्यापनं हि यत् // 26 // अरे अजल्पिता तिष्ठ समुत्तिष्ठ रमस्व किम् ? / आसीना सभयं रन्तु पुनस्तेन समं तथा // 27 // सूर्यस्य वरसान्निध्या-दम्बडेन जितं तदा / चन्द्रया हारितं देवा-त्सेवां मे कुरु सोऽवदत् // 28 // सैवं प्रोवाच हे देव ! चरणौ शरणं तव / मां वृणीष्व तथा सोऽपि व तां लोकसाक्षितः॥२१॥ परिणीय स तां पश्चात् पप्रच्छ नगरस्य च / स्वरूपं विपरीतं तत् साऽवदच्छणु वल्लभ ! // 30 // इदं शक्तिमयं शक्तिः स्थापितं पुरमीदृशम् / अम्बडः प्राह हे कान्ते ! को विद्यानुभवस्तव // 31 // K उवाच सैवमाकाश-गामिनी चित्तकामिनी / आकर्षणी पुनस्तुर्या विद्यारूपविपर्यया // 32 // // 13 //
SR No.600425
Book TitleAmbad Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijayjinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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