________________ अम्बडचरित्रम् तृतीय . आदेशः // 26 // | इन्द्रजालमिदं मात-रथवा स्वप्नसन्निभम् / इति पृष्टाऽहं हे वत्से / सर्व सत्यं न संशयः // 24 // दाने तपसि शौर्ये वा विज्ञाने विनये नये / विस्मयो नैव कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा // 25 // . असौ महेशो जगतामधीशो माता भवानी भववल्लभेयम्। उमामहेशं प्रणमन्तु वत्से ! निःपातका यददहो भवन्तु // 26 // इति प्रोक्ते तयाऽऽवाभ्यां रुद्रपादा नमस्कृताः। तदा पृष्टं महेशेन वृद्धे ! का कन्यकादयी // 27 // वृद्धा प्राह नृपस्यैका द्वितीया मन्त्रिणः सुता / देव ! ते सेवकीभूते दर्शनाय तवेयतुः // 28 // ततो गाढतरं तुष्टः समाचष्टे महेश्वरः / याचेतान्नु वरं वत्से ! नत्वा न्यगदतांच ते॥२६॥ स्वामिन् तब मुखाम्भोज-सेवाहवावयोस्तदा / तद्भक्तिवचसा प्रीतः शङ्करः सर्वशङ्करः // 30 // हारं च राजकन्यायाः कर्मदण्डं ममार्पयत् / ईप्सितं क्रियते रूपं रत्नमालाप्रभावतः // 31 // " || विघ्नं वैरस्य रोगादि प्रयाति कर्मदण्डतः / इति प्रभावमाकर्ण्य पुनः प्रार्थित ईश्वरः // 32 // अस्माभिस्तव पादाब्ज दृश्यते सर्वदा यथा / तथा करोतु हे नाथ ! ततस्तुष्टो हि शङ्करः // 33 // I/A MA26 //