________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेशः // 33 // सोमचन्द्रनृपश्चन्द्रा राज्ञी चन्द्रयशा' सुता / सर्वे ऽपि विस्मयं प्राप्ता रञ्जिता स्वगृहं ययुः // 66 // तन्मुक्ता स्तम्भना ताव-द्देवी राजलसंज्ञका / विस्मार्य स्वप्नवन्नृत्यं सत्यं सा स्वगृहेऽगमत् // 67 // | पप्रच्छ पितृभ्यां वत्से ! केन त्वं विप्रतारिता / चतुष्पथे चटित्वा-यन्नतिता लजिता न हि // 68 // | साध्वदत् पितरो केन नैवाहं विप्रतारिता। एष मे भविता भर्ता हर्ता दुःखस्य निश्चितम् // 6 // आः पापे ! जल्पसि किं त्वं-पितृभ्यां धिक्कृता च सा / मौनं कृत्वा स्थिता सायं गता राजसुतान्तिकम् // 7 // तां प्रत्याह सखि ! स्पष्टं दृष्टं चन्द्रयशे वया। सा स्माह राजिके लोक-समक्षं नर्तितं त्वया // 71 // येन त्वं कारिता नृत्यं स एष पुरुषोऽस्ति कः / पारम्पयं त्वया ज्ञात-मस्ति तस्याथवा न हि // 72 // सोचे यदस्ति तत्सर्वं ममाग्रे कथयत्यसौ / अवलप्तिर्मनागस्य नास्ति काचिन्मया समम् // 73 // वार्तालापं च साकार-मम्बडस्य स्वरूपकम् / राजपुत्र्याः पुरः सर्वे कथयामास राजिका // 7 // 1. आपञ्चव हलन्तानां यथा वाचा निशा दिशा / समासान्तप्रत्यये कृत् आप्-इति भागुरि / / // 33 //