________________ अम्बड चरित्रम् // 4 // जगाद योगिनी भव्य-शकुनेन समागतः / त्वं भविष्यसि लक्ष्मीवान् सप्तादेशान्विधेहि मे // 25 // अम्बडः प्राह हे मात-रादेशं दिश मेऽधुना / तयोक्तं भो विना सत्त्वं कृतं कायें न सिद्धयति॥२६॥ K यतः साहसीआ लच्छी हवइ, नह कायरपरिसाण / काने कुण्डल रयणमय, कजलपुण नयणाण // 1 // सीह न जोइं चंदवल, नवि जोइ घणऋद्धि / एकलडो बहुआं भिडई जिहां साहस तिहां सिद्धि // 2 // .. एकाग्रमनसः सिद्धिः तवास्ति यदि साहसम् / तदा कुरु ममादेशं प्रसन्नमानसोऽवदत् // 27 // उवाच योगिनी तत्र दृष्ट्वा साहसिकं तकम् / शृणु भो दिशि पूर्वस्यां गुणवर्द्धनवाटिका // 28 // तस्यां विविधवृक्षायां वृक्षोऽस्ति शतशर्करः। समानय फलं तस्य तथेत्यानम्य सोऽचलत् // 26 // गच्छतः पथि तस्यागात् कमण्डलुपुरं पुरम् / तस्मिन् सरोवरे प्राप्ते-श्वाम्बडः पश्यतीदृशम् // 30 // वहमाना जलं कुम्भैः नरा नार्य इवानिशम् / अश्वारूढा स्त्रियो यत्र पुरुषा इव कौतुकम् // 31 // विपरीतमिति प्रेक्ष्य नरं कमपि पृष्टवान् / अहो स्वरूपमेतस्य पुरस्य दृश्यतेऽसमम् // 32 // स्त्रीणां कार्य नराः कुर्यः पुरुषाणां स्त्रियः पुनः / तेनोक्तं तिष्ठ मौनेन स्त्रियः श्रोष्यन्ति साम्प्रतम् // 33 // // 4 //