________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः अहमारामिका वोर ! मृतोऽसौ नन्दनो मम / देवेन दण्डिता तेन करिष्ये काष्ठभक्षणम् // 17 // अवादीदम्बडो मूर्खे ! मरणं केन वार्यते / कल्पे मरिष्यसि त्वं च साह सत्यं वदस्यहो // 18 // उक्तश्च-दीहरपवाससहपंथिएण, धम्मेण कुणह संसग्गं / सव्वो जणो नियत्तइ, तुमए सह तेण गंतव्वं // 16 // सर्वेषामेकसरणिः संसारस्तेन कथ्यते / आकर्णय सकर्ण | वं मातुर्मोहः सुते महान् / / 120 // सदैवमस्य पार्वेऽहं मरणे दैवयोगतः / नाभूवमेकवारं स मया साकं न जल्पितः // 21 // तेनाऽहं काष्ठभक्षं च करोमि किं करोमि भोः। अहो मोहपिशाचो हि असतो राजरङ्कयोः // 22 // | अम्बडोऽवक् कथमपि त्वं मरन्तीह तिष्ठसि / साऽभाषत दुःखसखा त्वमेको वीर ! वर्त्तसे // 23 // | एककृत्वाऽधुना पुत्रो यदि मां जल्पयत्ययम् / काष्ठभक्षं न कुर्वेऽहं मृतो जाने न जीवति // 24 // इति निश्चित्य तदाक्य-मरक्षदम्बडः शबम् / परकायप्रवेशस्य विद्यया तमजीवयत् // 25 // | सती विद्या गता कार्ये रम्यः स्यात्सङ्ग्रहः कृतः / सर्पसङ्ग्रहसान्निध्याद् भर्ता हि गृहमागतः॥२६॥ // 66 //